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ज्ञानवाद : एक परिशीलन बुद्धि से संदेह का विनाश पाया जाता है । इस प्रकार ईहा ज्ञान संशय का पश्चाद्भावी निश्चयाभिमुख ज्ञान है ।
नन्दी सूत्र में ईहा के लिए निम्न शब्द व्यवहृत हुए हैं— आयोगनता, मार्गणता गवेषणता, चिन्ता, विमर्ष । तत्त्वार्थभाष्य में ईहा, ऊह, तर्क, परीक्षा, विचारणा और जिज्ञासा ये शब्द आए हैं । ४०
अवाय
मतिज्ञान का तृतीय भेद अवाय है । ईहा के द्वारा ईहित पदार्थ का निर्णय करना अवाय है । दूसरे शब्दों में विशेष के निर्णय द्वारा जो यथार्थ ज्ञान होता है, उसे अवाय कहते हैं । जैसे उत्पतन, निपतन, पक्षविक्षेप आदि के द्वारा " यह वक पंक्ति ही है, ध्वजा नहीं है" ऐसा निश्चय होना अवाय है । ४१ इसमें सम्यक्, असम्यक् की विचारणा पूर्णरूप से परिपक्व हो जाती है और असम्यक् का निवारण होकर सम्यक् का निर्णय हो जाता है । विशेषावश्यक में एक मत यह भी उपलब्ध होता है कि जो गुण पदार्थ में नहीं है, उसका निवारण अवाय है । और जो गुण पदार्थ में है उसका स्थिरीकरण धारणा है । भाष्यकार जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण के मत से यह सिद्धान्त सही नहीं है | चाहे असद्गुणों का निवारण हो, चाहे सद्गुणों का स्थिरीकरण हो, चाहे दोनों एक साथ हों - सब अवायान्तर्गत हैं । ४२ तात्पर्य यह है कि अवायज्ञान कभी अन्वयमुख से प्रवृत्त होकर सद्भूत गुण का निश्चय करता है, कभी व्यतिरेकमुख से प्रवृत्त होकर असद्भूत का निषेध करता है और कभी-कभी अन्वयव्यतिरेकमुख से प्रवृत्त होकर विधान और निषेध दोनों करता है ।
नन्दीसूत्र में अवाय के पर्यायवाची निम्न शब्द आये हैं--आवर्तनता, प्रत्यावर्तनता, अवाय, बुद्धि, विज्ञान और षट्खण्डागम में अवाय, व्यवसाय, बुद्धि-विज्ञप्ति, आमुण्डा और प्रत्यामुण्डा ये पर्यायवाची नाम हैं | ४ ३
तत्त्वार्थभाष्य में अवाय के लिए निम्न शब्द व्यवहृत हुए हैं—अपगम, अपनोद, अपव्याध, अपेत, अपगत, अपविद्ध, अपनुत । ४४
ये सभी शब्द निषेधात्मक हैं । उपर्युक्त पंक्तियों में विशेषावश्यक भाष्य में जिस मत का उल्लेख किया है, संभवतः यह वही परम्परा हो । अवाय और अपाय ये दो शब्द हैं । अवाय विध्यात्मक है और अपाय निषेधात्मक है। राजवार्तिक में प्रश्न उठाया है कि अवाय शब्द ठीक है या अपाय ठीक है ? उत्तर दिया है कि दोनों ठीक हैं। क्योंकि एक के वचन में दूसरे का ग्रहण स्वतः
३६ हा संदेहवा विचारबुद्धीदो संदेह विणासुवलंभा ।
४० (क) नंदीसूत्र सूत्र ५२, पृ० २२, पुण्यविजयजी ( ख ) तत्त्वार्थ भाष्य १।१५
४१ (क) प्रमाणमीमांसा १।१।२८ (ख) सर्वार्थसिद्धि १।१५।१११।६ ४२ विशेषावश्यक भाष्य १८६ ४३ (क) नंदीसूत्र सूत्र ५३
( ख ) षट्खण्डागम १३ |५|५| सूत्र ३६ ४४ तत्त्वार्थसूत्र भाष्य १११५
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धवला १, ६-१, १४, १७३
आजका अभिन्दन
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