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परिशिष्ट
सुखकामी मनुष्य और सुख का रूप धर्माचार का मूल मन्तब्य यथार्थ सुख की 3 प्राप्ति है । यहाँ यह अपेक्षित है कि सच्चे सुख के स्वरूप को पहचाना जाय और दुःख के साथ उस की आपेक्षिक स्थिति को भी समझा जाय । जैन साहित्य में इस विषय का विषद विवेचन उपलब्ध होता है । दुःख के कारणों की खोज की गई है और उनको निर्मूल करने के उपाय भी सुझाये · गये हैं । दुःख के समाप्त हो जाने की स्थिति, सुखानुभव की प्राथमिक आवश्यकता है। जैन मान्यतायें दुःख के कारण रूप में 'कर्मबन्धन' को स्वीकारती हैं। इस बन्धन के क्षीण हो जाने पर ही वास्तविक और उत्तम सुख उपलब्ध होता है । इस विचार के समर्थन में निम्न उक्ति उल्लेखनीय है
जैनाचार : एक विवेचन
देशयामि समीचीनं धर्म-कर्म निवर्हणम् । संसारदुःखतः सत्वान् यो धरत्युत्तमे सुखे || 2 अर्थात्–“मैं कर्मबन्ध का नाश करने वाले उस सत्यधर्म का कथन करता हूँ जो प्राणियों को संसार के दुःखों से छुड़ाकर उत्तमसुख में धरता है ।"
स्पष्ट है कि संसार में दुःख हैं । प्राणियों के अपने कर्म ही इन सांसारिक दुःखों के मूल कारण हैं और धर्म उन्हें दुःख - मुक्त कर उत्तम सुख की प्राप्ति करा सकता है। कौन सचेतन प्राणी सुख का परित्याग कर स्वेच्छा से दुःख का वरण करने को तत्पर हो सकता है ? सभी की कामना सुख के
'रत्नकरण्ड श्रावकाचार' - श्री समन्तभद्र स्वामी
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- राजेन्द्र मुनि शास्त्री,
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लिए ही होती है, प्रयत्न भी इसी दिशा में किये जाते हैं । यह बात अन्य है कि वे प्रयत्न उत्तमसुख के पक्ष में होते हैं अथवा नहीं और वे प्रयत्न समुचित होते हैं अथवा नहीं। यह सुख की लालसा दुःख की प्रतिक्रिया है । दुःख कदाचित् जागतिक जीवन का एक दृढ़ और कटु सत्य है । दुःख की परिधि से कोई बच नहीं पाया है । लौकिक दृष्टि से 'अभाव' दुःख का कारण है । अभाव की पूर्ति से हो सुख का आगमन भी मान लिया जाता है । अन्नाभाव के कारण क्षुधा का दुःख है और अन्नप्राप्ति पर सुखानुभव होने लगता है। किंतु दुःखित तो अभावग्रस्त पाये ही जाते हैं; सम्पन्न जन भी किसी न किसी दुःख के शिकार रहते हैं । धनाधिक्य यदि भौतिक सुख की उपलब्धि कराता है तो सन्तानाभाव अथवा अन्य किसी कारण से मानसिक संताप बना रहता है । व्याधि भी दुःख का कारण हो सकती है, व्यावसायिक ऊँच-नीच से भी चिन्ता और मानसिक क्लेश संभव है । सार यह कि सामान्यतः दुःख इस जागतिक जीवन का एक अनिवार्य अंग है और मनुष्य का सुखकामी होना भी एक शाश्वत सत्य है ।
और
प्रश्न यह है कि इस दुःख से छुटकारा पाने सुख प्राप्त करने के लिए कारगर उपाय क्या है ? भारतीय संस्कृति में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-ये ४ साधन सुखार्थ सुझाये गये हैं । मोक्ष पारलौकिक सुख का साधन है । इहलोक के सुखों के लिये प्रथम ३ साधनों का विधान है । इन तीन
कुसुम अभिनन्दन ग्रन्थ : परिशिष्ट
साध्वीरत्न ग्रन्थ
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