________________ 320 | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन प्रन्य 000000000000 000000000000 NER JALA पापा SC. TRANSP ACC ..... HTTARA 41 आचा० श्र.१, अ० 5, उ०३। 42 आचा० श्रु. 1, अ० 3, उ० 2 / 43 आचा० श्र.१, अ० 3, उ०२। 44 सूत्र० श्र०१, अ० 8, गा० 23 / 45 सूत्र० श्र.१, अ०६, गा० 2-3 / 46 सूत्र० श्र०२, अ०६, गा० 36 / 47 सूत्र० 01, अ० 11, गा० 11 / 48 सूत्र० श्रु० 1, अ० 11, गा०६। 46 सूत्र० 01, अ० 11, गा० 21 / 50 सूत्र० श्रु० 1, अ०११, गा० 34 / 51 सूत्र० श्रु.१, अ० 11, गा० 38 / 52 सूत्र० श्रु०१, अ० 14, गा० 15 / 53 सूत्र० श्रु०१, अ० 14, गा०२७ / 54 सूत्र० श्र०२ अ० 1, सू०१ / 55 सूत्र० श्र०२, अ०५, गा०३३ / 56 सूत्र० श्र. 2, अ० 2, गा०१५ / 57 आचा० श्रु०१, अ० 2, उ०६ / 58 आचा० श्र.१, अ०२, उ०२। 56 आचा० श्रु०१, अ०२, उ०२। 60 सूत्र० श्रु० 1, अ०८, गा० 23 / 61 सूत्र० श्र०१, अ० 10, गा० 22 / 62 सूत्र० श्र.०१, अ० 12, गा०२२। 63 सूत्र० श्रु०१, अ० 15, गा० 15 / 64 सूत्र० श्रु. 1, अ० 15, गा० 12 / 65 सूत्र० श्रु०१, अ० 15, गा० 16 / 66 सूत्र० श्रु०१, अ० 15, गा० 25 / 67 सूत्र० श्र०१, अ०१५, गा० 24 / 68 सूत्र० श्रु० 1, अ० 2, उ० 3, गा० 15 / 66 सूत्र० श्रु. 1, अ०२, उ०१, गा० 8-11 / 70 सूत्र० श्रु० 1, अ० 2, उ० 1, गा० 14-15 / 71 सूत्र० श्रु०१, अ० 7, गा०३० / 72 सूत्र० श्रु०१, अ०४ उ०२ गा०२२। 73 सूत्र० श्रु०२ अ० 4, सू०११ / 74 सूत्र० श्रु० 2, अ०२, सू० 35 / 75 आचा० श्र० 1, अ० 3, उ०२। 76 आचा० श्र. 1, अ० 3, उ०१। 77 आचा० श्रु०१, अ० 3, उ०३ / 78 आचा० 10 1, अ० 3, उ० 3 / 76 आचा००१, अ०२, उ०६ / 80 आचा० श्र.१, अ०२, उ०२। 81 सूत्र० श्र०२, अ० 2, सू०४८ / 82 सूत्र० थ०१, अ० 2, उ० 3 / 83 आचा० 101, अ० 2, उ०६ / 84 आचा० श्र 01, अ०५, उ०३ / 85 आचा० 10 1, अ०४, उ०४। 86 आचा० श्र०, अ०६, उ०४। 87 सूत्र० श्र०१, अ० 3, उ०४; गा० 22 / 88 सूत्र थ०१, अ०१५, गा०५। 86 मग० श०५, उ०६। 60 भग० श०१२, उ०६। 61 दश० अ०४, गाथा 14-25 / 62 सवणे णाणे विण्णाणे, पच्चक्खाणे य संयमे / अणण्हए तवे चेव, वोदाणे अकिरिया सिद्धि / (ख) स्थानांग अ० 3, उ० 3, सू० 160 / 63 ठाणांग-अ०२, उ०२, सू०६३ / 64 ठाणांग-अ०५, उ०३, सू० 462 / 65 ठाणांग / अ०४, उ०१, सू०२३५ / 66 तत्वार्थ० अ० 10, सू०२। 67 उत्त० अ० 30, गाथा 5-6 / 68 उत्त० अ०१२, गा० 45-47 / 66 उत्त० अ० 32, गा० 2, 3 / 100 उत्त० अ०२३, गा०७०-७३ / 101 उत्त० अ० 3 / 102 ज्ञाता धर्म कथा अ०८ / 103 उत्तराध्ययन के उनतीसवें अध्ययन में बहत्तर सूत्र है उनमें से यहाँ केवल त्रयोदश सूत्रों का सार संक्षेप में लिखा है / क्योंकि इन सूत्रों में ही मुक्ति की प्राप्ति का स्पष्ट निर्देश है। 104 यहाँ “पहिज्जमाणे पहीणे" भग० श० 1, उ० 1, सूत्र के अनुसार बादर कषाय की निवृत्ति का प्रारम्भ होना भी निवृत्ति माना गया है। 105 (1) सम्यक्त्वमोहनीय, (2) मिथ्यात्वमोहनीय, (3) मित्र मोहनीय / 106 (1) क्रोध, (2) मान, (3) माया, (4) लोभ / NON - - I maa - artara For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org