________________
जैनधर्म और इस्लाम में अहिंसा : तुलनात्मक दृष्टि
कहना भी यही है कि जो अपने क्रोध को जब्त नहीं करता, या जिसमें जब्ते नफस नहीं है, वह जन्नत को प्राप्त नहीं कर सकता । इस्लाम में धर्म के मामले में जोर-जबरदस्ती का आदेश नहीं है - और सूरे बक़र से फितना-फसाद को कत्ल करने से भी सख्त माना है
धर्म के विषय में कोई जबरदस्ती नहीं, दुनिया में फसाद पैदा मत करो । फसाद, शरारत कत्ल से अधिक सख्त हैं ।
" जिसने बिना कारण किसी को कत्ल किया, फसाद फैलाया, उसने तमाम आदमियों को कत्ल कर डाला ।" और जिसने किसी व्यक्ति को बचा लिया, गोया उसने तमाम इन्सानों को बचा लिया |
'कुरआन' में स्पष्ट उल्लेख है कि खुदा के, रहमान के बन्दे वे हैं जो जमीन पर नर्म चाल चलते हैं और नाहक किसी जीव को हलाक नहीं करते ।
शर, फितना, फसाद, कत्ल तशद्दुद सभी हिंसा की श्रेणी में आने वाले शब्द हैं। उर्दू में साधारण बोलचाल में हम 'अद्म तशद' को अहिंसा का समानार्थक मान सकते हैं, लेकिन अहिंसा शब्द अधिक व्यापक तथा बहुआयामी है । इस्लाम में ज्यादती या हिंसा के विषय में कहा गया है कि 'जो तुम पर ज्यादती करे तो तुम भी उन पर ज्यादती करो, जैसी उसने पर ज्यादती की है
तुम
१२७
लेकिन माफ करने को इस्लाम में बदला लेने से अच्छा समझा गया है । जैनधर्म में भी क्षमा को धर्म के उत्तम लक्षणों में स्थान दिया गया है । लेकिन “जालिम का जुल्म सहन करना जुल्म को बढ़ाना है, इसलिए जालिम का मुकाबला भी करना चाहिए ।" (हजरत उमर ) जैनधर्म की अहिंसा का अर्थ यह नहीं है कि अन्याय, अत्याचारी के सामने आदमी समर्पण कर दे । आत्मरक्षा के लिए, देशरक्षा के लिए एवं मानवता की सुरक्षा के लिए हिंसा करना न्यायोचित है और ऐसे शत्रु की हत्या, हत्या नहीं कही जा सकती, हिंसा नहीं मानी जा सकती । सेना का शत्रु सेना पर आक्रमण करना हिंसा की श्रेणी में नहीं आयेगा, यदि शत्रु हम पर आक्रमण करेंगे तो हम शत्रु पर आक्रमण करेंगे । 'यशस्तिलक' ( पृ० ९६ ) में भी ऐसा ही कहा गया है
――
यः शस्त्रवृत्तिः समरे रिपुः स्याद् यः कण्टको वा निमंडलस्य । अस्त्राणि तत्रैव नृपाः क्षिपयन्ति न दीनकानीशुभाशयेषु ॥
अर्थात् अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर युद्ध भूमि में जो शत्रु बन कर आया हो, या अपने देश का दुश्मन हो, उसी पर राजागण अस्त्र प्रहार करते हैं, कमजोर, निहत्थे, कायरों तथा सदाशयी पुरुषों पर नहीं । अनेक क्षत्रिय जैन राजाओं ने इसीलिए शत्रुओं से युद्ध किये । शौर्य आत्मा का गुण है, जब वह आत्मा के द्वारा प्रकट किया जाता है तब वह अहिंसा कहलाता है और जब वह शरीर के द्वारा प्रकट किया जाता है तब वीरता कहलाता है । (जैनधर्म, पृ० १८२) ।
Jain Education International
पैगम्बर मुहम्मद साहब ने कई जंगें की, लेकिन लड़ने में पहल कभी नहीं की और न ही यह आदेश दिया कि शत्रु पर पहले वार करो, उन्होंने कहा कि जबतक शत्रु तुम पर
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org