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चतुर्थ खण्ड / ६०
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३. स्कन्धप्रदेश-जैनदर्शन के अनुसार प्रत्येक स्कन्ध की मूल इकाई परमाणु है । जब तक यह परमाणु स्कन्धगत है, तब तक वह स्कन्धप्रदेश कहलाता है।
४. परमाणु-पुद्गल के उस अंतिम अंश को जो विभाजित नहीं हो सके, परमाणु कहते हैं। परमाणु अविभाज्य, अच्छेद्य अभेद्य अदाह्य और अग्राह्य है, अनर्ध, अमध्य और अप्रदेशी है। वह सूक्ष्मता के कारण स्वयं ही प्रादि, मध्य और अन्त है।
शास्त्रों में पूर्वोक्त के सिवाय दूसरे प्रकार से भी पुद्गल के भेद इस प्रकार बताये हैं
१. अतिस्थूल-जिस पुद्गलस्कन्ध का छेदन-भेदन एव अन्यत्र वहन सामान्य रूप से हो सके, जैसे भूमि, पत्थर आदि । इसे स्थूल-स्थूल भी कहते हैं ।
२. स्थूल-जिस पुद्गलस्कन्ध का छेदन-भेदन न हो सके, किन्तु वहन हो सके, जैसे घी, तेल, जल आदि।
३. स्थूलसूक्ष्म-जिस पुद्गलस्कन्ध का छेदन-भेदन-अन्यत्र वहन कुछ भी न हो सके, जैसे छाया, पातप आदि ।
४. सूक्ष्मस्थूल-नेत्र इन्द्रिय को छोड़कर शेष स्पर्श प्रादि चार इन्द्रियों के विषयभूत पुद्गल-स्कन्ध, जैसे वायु एवं विविध प्रकार की गैसें ।
५. सूक्ष्म-अतीन्द्रिय सूक्ष्मपुद्गलस्कन्ध जैसे मनोवर्गणा, भाषावर्गणा आदि ।
६. अतिसूक्ष्म-ऐसे पुद्गल जो भाषावर्गणा मनोवर्गणा के स्कन्धों से भी अतिसूक्ष्म हों।
जैनदर्शन में पुद्गल के कुछ ऐसे भेद-प्रभेद (पर्याय) माने गये हैं, जिन्हें प्राचीनकाल के दार्शनिक पुदगल रूप में स्वीकार नहीं करते थे, किन्तु अब उनमें से बहुतों को आधुनिक विज्ञान ने पुद्गल के रूप में स्वीकार कर लिया है । जैसे शब्द, अंधकार आदि ।
पुद्गल रूपी है, इन्द्रिय ग्राह्य है । अतएव वह किसी न किसी आकार-संस्थान वाला है । वह संस्थान दो प्रकार का है-इत्थं-नियत आकार वाला, और अनित्थं-अनियत प्राकार वाला। त्रिकोण, चतुष्कोण, प्रायत, परिमंडल आदि नियत आकार-इत्थं है और बादल की प्राकृतियाँ अनियताकार -- अनित्थं है।।
पुद्गल का पूर्व में जो लक्षण बताया है, तदनुसार स्कन्ध परमाणों के संश्लेष से बनता है और परमाणु विलग होने-खंडित होने से । इसलिए संश्लेष के दो प्रमुख भेद हैंप्रायोगिक और वैस्रसिक । प्रायोगिक बंध जीवप्रयत्नजन्य है और वह सादि है। वैस्रसिक का अर्थ है-स्वाभाविक । इसमें जीवप्रयत्न की अपेक्षा नहीं होती है। इसके भी दो प्रकार हैंसादि वैससिक और अनादि वैससिक । सादि वैससिक बंध तो बनता-बिगड़ता रहता है, किन्तु उसके बनने-बिगड़ने में जीव के प्रयत्न की अपेक्षा नहीं रहती है। जैसे बादलों में चमकने वाली बिजली । इसको लेकर पुदगल के तीन भेद और हैं
१. प्रयोगपरिणत-ऐसे पुद्गल जो जीव द्वारा ग्रहण किये गये हैं । जैसे इन्द्रियाँ, शरीर आदि ।
२. मिश्रपरिणत--जो पुद्गल जीव द्वारा परिणत होकर पुनः छट चके हों। जैसे कटे हुए नख, केश आदि ।
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