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પૂજ્ય ગુરૂદેવ કવિવય પં. નાનાયબ્રેજી મહારાજ જન્મશતાહિદ સ્મૃતિગ્રંથ अन्य दर्शनों में त्रिविध साधना मार्ग
जैन दर्शन के समान ही बौद्ध दर्शन में भी विविध साधना मार्ग का विधान है। बौद्ध दर्शन का अष्टांग मार्ग भी त्रिविध साधना मार्ग में ही अर्न्तगत है। बौद्ध दर्शन के इस विविध साधना मार्ग के तीन अंग है- १ शील २ समाधि और ३ प्रज्ञा। वस्तुतः बौद्ध दर्शन का यह त्रिविध साधना मार्ग जैन दर्शन के त्रिविध साधना मार्ग का समानाथक ही हैं। तुलनास्मक दृष्टि से शील को सम्यक् चरित्र से समाधि को सम्यक् दर्शन से और प्रज्ञा को सम्यक ज्ञान से तुलनीय माना जा सकता है। सम्यक् दर्शन समाधि से इसलिए तुलनीय है कि दोनो में चित्त विकल्प नहीं होते हैं।
गीता में भी ज्ञान कर्म और भक्ति के रूप में त्रिविध साधना मार्ग का उल्लेख हैं। हिन्दू धर्म के ज्ञान योग व कर्मयोग और भक्ति योग भी त्रिविध साधना मार्ग का ही एक रूप है। हिन्दू परम्परा में परम सत्ता के तीन पक्ष सत्य, सुन्दर और शिव माने गये हैं। इन तीनो पक्षों की उपलब्धि के लिए ही उन्होंने भी त्रिविध साधना माग का विधान किया है। सत्य की उपलब्धि के लिए ज्ञान, सुन्दर की उपलब्धि के लिए भाव या श्रद्धा और शिव की उपलब्धि के लिये सेवा या कर्म माने गये हैं। गीता में प्रसंगान्तर से त्रिविध साधना मार्ग के रूप में प्रणिपात, परिप्रश्न और सेवा का भी उल्लेख है ४ । इनमें प्रणिपात श्रद्धा का परिप्रश्न ज्ञान का और सेवा कर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं। उपनिषदों में श्रवण मनन और निदिध्यासन के रूप में भी विविध साधना मार्ग का प्रस्तुतीकरण हआ है। यदि हम गहराई से देखें तो इनमें श्रवण श्रद्धा के, मनन ज्ञान के और निदिध्यासन कर्म के अन्तर्भूत हो सकते हैं।
पाश्चात्य परम्परा में भी तीन नैतिक आदेश उपलब्ध होते हैं १ स्वयं को जानो (Know thyself) २ स्वयं को स्वीकार करो (Accept thyself) और ३ स्वयं ही बन जावों (Be thyself)
पाश्चात्य चिन्तन के यह तीन नैतिक आदेश ज्ञान, दर्शन और चारित्र के ही समकक्ष हो हैं । आत्मज्ञान में ज्ञान का तत्व, आत्म स्वीकृति में श्रद्धा का तत्व और आत्म निर्माण में चारित्र का तत्त्व उपस्थित है।
जैन दर्शन
बौद्ध दर्शन
गीता
उपनिषद
पाश्चात्य दर्शन
सम्यक् ज्ञान सम्यक् दर्शन सम्यक् चरित्र
प्रज्ञा श्रद्धा शील
ज्ञान, परिप्रश्न श्रद्धा, प्रणिपात कर्म, सेवा
मनन श्रवण निदिध्यासन
Know thyself Accept thyself Be thyself
त्रिविध साधना मार्ग और मुक्ति
कुछ भारतीय विचारकों ने इस त्रिविध साधना मार्ग के किसी एक ही पक्ष को मोक्ष की प्राप्ति का साधन मान लिया है। आचार्य शंकर मात्र ज्ञान से और रामानुज मात्र भक्ति से मुक्ति की संभावना को स्वीकार करते हैं। लेकिन जैन दार्शनिक ऐसे किसी एकान्तवादिता में नहीं गिरते हैं। उनके अनुसार तो ज्ञान, कर्म और भक्ति की समवेत साधना ही मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है। इनमें से किसी एक के अभाव में मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है। उतराध्ययन सूत्र के अनुसार दर्शन के बिना ज्ञान नहीं होता और ज्ञान के अभाव में आवरण सम्यक नहीं होता है और सम्यक् आचरण के अभाव में मुक्ति भी नहीं होती है। इस प्रकार मुक्ति की प्राप्ति के लिए तीनों ही अंगों का होना आवश्यक है ।
सम्यक् दर्शन का अर्थ
जैन आगमों में दर्शन शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है और इस के अर्थ के संबंध में जैन परम्परा में काफी विवाद रहा है। दर्शन शब्द को ज्ञान से अलग करते हुए विचारकों ने दर्शन को अन्तर्बोध या प्रज्ञा और ज्ञान को बौद्धिक ज्ञान कहा है। नैतिक जीवन की दृष्टि से दर्शन शब्द का दृष्टिकोण परक अर्थ भी लिया गया है । दर्शन शब्द के स्थान पर दृष्टि शब्द का प्रयोग, उसके दृष्टिकोण परक अर्थ का द्योतक है । जैन आगमों में दर्शन शब्द का एक अर्थ तत्व श्रद्धा भी माना गया है । परवर्ती जैन
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