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कर्मयोगी भी केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
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(५) स्तम्भन
जिन ध्वनियों की वैज्ञानिक संरचना के घर्षण द्वारा मनुष्य, पशु, पक्षी, भूत, प्रेत आदि देविक बाधाओं को शत्रुओं के आक्रमण तथा अन्य व्यक्तियों द्वारा किये जाने वाले कष्टों को दूर कर इनको जहाँ के तहाँ निष्क्रिय कर स्तम्भित कर दिया जाय उन ध्वनियों के सन्निवेश को स्तम्भन मन्त्र कहते हैं ।
स्तम्भन यन्त्र
मन्त्र :- -ॐ जंभे मोहे अमुकस्य जिह्वा स्तम्भय स्तम्भय ठः ठः ठः स्वाहा ।
विधि-उपरोक्त यन्त्र को भोजपत्र पत्र गोरोचन एवं कुंकुम से लिखकर फिर कुम्हार के हाथ की मिट्टी लाकर उससे अपने प्रत्यर्थि की छोटी सी मूर्ति बनाकर उसके मुख यह यन्त्र रख दे। उस मूर्ति का मुख मजबूत काँटों से चीर कर उसको दो मिट्टी के शराबों में रख कर उपरोक्त मन्त्र से उसकी पीले पुष्पों से पूजा करे। उसके विरोधी व्यवहारी का जिला स्तम्भन होता है ।"
(६) विद्वेषण
जिन ध्वनियों की वैज्ञानिक संरचना के घर्षण द्वारा कुटुम्ब, मित्र, जाति, देश, समाज, राष्ट्र आदि में परस्पर कलह और वैमनस्य की क्रान्ति मच जाय, उन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश को विद्वेषण मन्त्र कहते हैं ।
मन्त्र — ॐ चल चल अचल प्रचल विश्वं कम्प कम्प विश्वं कम्पय कम्पय ठः ठः ठः स्वाहा ।
उपरोक्त मन्त्र का जाप करने से सिद्धि को देने वाला, कपिल आँखों वाला चटेक प्राणियों का विद्वेषण और उच्चाटन करता है।
तन्त्र----राड़ी होय सही प्रयोग है, काग की पाँख, उल्लू की पाँख, बिलाव मुखरा बाल, उंदरा मुखरा बाल मेरी गोली करीखाट पाग नीचे गालजे, स्त्रीपुरुष राड़ी होय || विद्वेष होय ॥ १० ॥ *
(७) जृम्भण
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जिन ध्वनियों की वैज्ञानिक संरचना के घर्षण द्वारा शत्रु, भूत, प्रेत, व्यन्तर आदि साधक की साधना से भयत्रस्त हो जाय, काँपने लगे, अर्थात् जिस मन्त्र द्वारा मनुष्य, पशु, पक्षी आदि प्रयोग करने वाले की सूचनानुसार कार्य करे बसे जृम्भण मन्त्र कहते हैं।
मन्त्र - ॐ नमः सहस्रजिह्व कुमुदभाजिनि दीर्घकेशिनि उच्छिष्टभक्षिणि स्वाहा ।
इस मन्त्र को पढ़ने से सांप पीछे-पीछे चलता है और 'याहि' अर्थात् जाओ, ऐसा कहने से चला जाता है ।
१. सं० पं० चन्द्रशेखर शास्त्री ज्वालामालिनी कल्प, पृ० ७२
२. उस मन्त्र का देवता
३. सं० पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, अनुभवसिद्ध मन्त्र द्वात्रिंशिका, पृ०४१
४. मन्त्र यन्त्र तन्त्र संग्रह, पृ० १
३. सं० पं० चन्द्रशेखर शास्त्री, भैरव पद्मावती कल्प, पृ० १०
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