________________
-0.
०
३८८
""
क्रूर ग्रह, जंगम-स्थावर विष बाधा, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, दुर्भिक्षादि ईतियों और चोर आदि का भय प्रशान्त हो जाय, उन ध्वनियों के निवेश को शान्ति मन्त्र कहते हैं।
शान्ति मन्त्र - णमो अमीया सवीणं" इस मन्त्र के जाप से समस्त प्रकार के उपद्रवों का शमन होता है ।
1
1
कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
६
2
Jain Education International
बाली
क्लीं पार्श्वमाथाम
१
शान्तिजा थाम
ड्रॉ श्रीं
कठौ
१
महावीर स्वामी चक्रेशानी देवी 3
ड्र
€
धरणे देय नहीं
भूत, प्रेत पिशाच, डाकण, आदि उपद्रव निवारक यन्त्र
इस यन्त्र को हड़ताल, मणसिल, हिंगुल तथा गोरोचन से लिखकर धूप देकर गले में, भुजा पर अथवा कमर पर बाँधने से उस मनुष्य के भूत, प्रेत, पिशाच, डाकण आदि सभी प्रकार के उपद्रव शान्त हो जाते हैं ।"
(२) पौष्टिक
जिन ध्वनियों की वैज्ञानिक संरचना के घर्षण द्वारा सुख सामग्रियों की प्राप्ति अर्थात् जिन मन्त्रों के द्वारा धनधान्य, सौभाग्य, यश-कीर्ति तथा सन्तान आदि की प्राप्ति हो, उन ध्वनियों की संरचना को पौष्टिक मन्त्र कहते हैं । मन्त्र - ( १ ) ॐ झोंझीं श्रीं क्लीं स्वाहा ।
(२) ॐ ह्रां ह्रीं देवाधिदेवाय अरिष्टनेमि अचिन्त्य चिन्तामणि त्रिभुवन कल्पवृक्ष ॐ ह्रां ह्रीं सर्व सिद्धये स्वाहा |
यन्त्र :--
मन्त्र यन्त्र की साधना- पुर्नवसु, पुष्य, श्रवण या धनिष्ठा नक्षत्र में १२५०० हजार जाप करने से यह समस्त जिनेश्वरों से युक्त, समस्त मन्त्रों में श्रेष्ठ पैंसठिया यन्त्र विजय दिलाने वाला है। पवित्र द्रव्यों से लिखकर शुद्ध भावों से जो स्त्री अपने अपने दायें अंग पर धारण करता है, उसको सुख को देता है । प्रयाण में, युद्ध में, वाद-विवाद में, राजा या राजा तुल्य बड़े मनुष्य को मिलने में विकट मार्ग में चिन्ता आदि का नाश करने में, धन प्राप्ति में इस यन्त्र की आराधना से अवश्य सुख-समृद्धि, जय-विजय एवं मन की इच्छाओं की पूर्ति होती है।"
बायें अंग पर तथा पुरुष एवं मांगलिक परम्पराओं
१५
१६
२२
३
६
१. सम्पादक - अम्बालाल प्रेमचन्द शाह न्यायतीर्थ, सूरि मन्त्र कल्प सन्दोह, पृष्ठ ६८
२. सम्पादक-मुनि गुणभद्रविजय, वेरनावमलमां, पृष्ठ १०१
३. सं० नरोत्तमदास साहू, अंक मंत्र सारवाने मन कीमियो पृष्ठ ५३
४.
मन्त्र यन्त्र तन्त्र संग्रह, पृष्ठ १ ।
For Private & Personal Use Only
८
१ २४
१४
७ ५ २० ५३ ६
२१
१६
१२ १० २ २५ १८ ११
तन्त्र - लखमी होणे को उपाय लिखते
मृगसिर नक्षत्रे मृगऽस्ति कीलऽगुल ७ सप्त की मंत्राणी ॥ मन्त्र ॥ ॐ छः छः ठः ठः स्वाहा ॥। १०८ मन्त्रज घर धूप देइ गाडई जे घर दूकान लक्ष्मी होय, धन वधे, व्यापार घणु होय, व्यापारी आव ग्राहक गणा आवई || १ || ४
१७
२३
४
www.jainelibrary.org.