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स्रोतों पर प्रकाश डालता है, जैसे साहित्य, स्थापत्य, क्षेत्र में अत्यन्त महत्व का कार्य किया है, यह एक कला, तत्वज्ञान, सामाजिक जीवन, धर्माचरण और बड़ा विरोधाभास है। लेकिन वस्तुस्थिति ऐसी है कि एक भारतीय भाषाओं का क्रमिक बिकास इत्यादि । इस धर्म तरफ श्रमणों ने अपने जीवन में असिधारा जैसे व्रती के विकास में चेदि कलिंग नपति खारवेल से कुषाण, जीवन का आदर्श सँभाला और साथ-ही-साथ साहित्य गुप्त, चालुक्य, राष्ट्रकूट, चोल, पांड्य, गंग, परमार, और कलाप्रेमी श्रावक-श्राविकाओं ने अपने स्वाभाविक चन्देल, यादव, होयसल, विजयनगर आदि अनेक कला प्रेम से इस धर्म के तत्वज्ञान के साथ-साथ सुसंगत राजवंश नपतियों और घनिक श्रेष्ठियों तथा श्रावक- कला साधना भी आरम्भ की। जैन धर्मावलम्बी धनिक श्राविकाओं का उल्लेखनीय योगदान रहा है। इतना श्रेष्ठियों ने स्थापत्य कला में अग्रगण्य माने जाने वाले ही नहीं मुगल सम्राट अकबर के विचारों पर भी जैन जिन-देवालय बनाये और भारतीय स्थापत्य कला को मत का प्रभाव पड़ा था। महात्मा गांधीजी की विचार- समद्ध बनाया। भगवान महावीर जी की प्रमुख कार्यधारा पर भी जैन धर्म और आचार का गहरा प्रभाव भमि बिहार राज्य थी। उनका जन्म वैशाली के निकट दिखाई पड़ता है।
कुडलपुर ग्राम में हुआ था और केवल ज्ञान की प्राप्ति
के उपरांत महावीर जी ने मगध देश की राजधानी प्राचीन भारत में इस धर्म की नींव समण (श्रमण)
राजगह में अंगदेश की राजधानी चम्पा में, विदेह के नाम से संबंधित किये जानेवाले और एक स्थान से अन्तर्गत मिथिला में तथा श्रावस्ती में अपने वर्षावास दूसरे स्थान पर अखंड परिभ्रमण करनेवाले अत्यन्त । कठिन व्रतधारी साधुओं ने डाली थी। श्रमणों की एक बहुत प्राचीन परंपरा है। प्राचीन जैन और बौद्ध जैन कला का पहला आविष्कार बाङमय में ऐसे श्रमण समुदायों का उल्लेख मिलता है:
जैन मूर्तिकला का पहला आविष्कार यथार्थ रूप से
हमको बिहार में दिखाई देता है। पटना संग्रहालय में "संबहुला नानातिथ्थिया नाना दिठिठका,
रखी एक मस्तकहीन दिगम्बर तीर्थकर प्रतिमा, जो नाना रुचिका, नानादिठिनिस्सनिस्सिता," निस्सथानस्सिता," लोहानीपुर से प्राप्त हुई थी, मौर्य भूर्तिशिल्प की तरह
चमकदार पालिशयुक्त है । बिहार में बक्सर के निकट अर्थात् "बहुत बड़ी संख्या में अनेक गुरुओं को चौसा ग्राम में पाई गई एक शताब्दी ईसा पूर्व की, माननेवाले, विविध आचार-विचार, विविध योग, कषाणकालीन ऋषभ व पार्श्वनाथ की कांस्य प्रतिमाएँ प्रवृति के विविध रुचिवाले और विविध दार्शनिक
अत्यन्त प्राचीन मानी जाती हैं । विचारधारा में विश्वास करने वाले ऐसे विविध ये दोनों प्रतिमाएँ पटना संग्रहालय में सुरक्षित हैं। सम्प्रदाय वाले भारतसमाज की पार्श्वभूमि पर बुद्ध और महाबीर दीपस्तम्भ जैसे दिखाई देते हैं। उन्होंने कलिंग, सौराष्ट्र और महाराष्ट्र की प्राचीन दीर्घ और गहरा विचार मंथन करके अपनी स्वतन्त्र जैन गुफाएँ अनुभूति से नवीन धर्म की नींव डाली। बौद्ध धर्म को माध्यम मार्ग (मज्जिमा पटिपदा) के रूप में हम सब मौर्य वर्चस्व के पश्चातू कलिंग देश के चेदि जानते हैं। जैन मत में उग्र तपस्या अभिप्रेत है। नृपति खारवेल ने ईसा पूर्व की दूसरी शताब्दी में जैन परन्तु ऐसे कठोर तपस्या मार्गी पंथ ने भी कला के धर्मी श्रमणों के लिए कलात्मक गुफा-समूह उत्कीर्ण करके
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