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- यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन दर्शन क्या तत्व का सबसे छोटा अंश भी है? अगर छोटा अंश है तो कहा गया। बहुत दीर्घ अवधि तक परमाणु को मूलभूत कण क्या वही मूलतत्त्व या मूलकण है? अगर किसी तत्त्व का सबसे माना जाता रहा। छोटा भाग मूलतत्त्व है तो वह किस प्रकार वस्तुओं का निर्माण वैज्ञानिक इस दिशा में निरंतर प्रयोग एवं निरीक्षणों का करता है? ये कैसे एक-दूसरे के साथ परस्पर जुड़े रहते है? अभ्यास करते रहे और उनके साथ मलभत कण के सन्दर्भ में वस्तुओं की भिन्नता का कारण क्या है? क्या यही मूलकण नए-नए तथ्य प्रकाशित होते रहे। वैज्ञानिकों का मूलकण इससे भिन्न-भिन्न वस्तुओं के स्वरूप का निर्धारण करता है? इत्यादि
अछूता नहीं रहा और परमाणु भी विभाजित हो गया। इसका श्रेय अनेकों प्रश्न है, जो परमाणुवाद की नींव हैं। दार्शनिकों एवं वैज्ञानिकों ।
थामसन नामक वैज्ञानिक को मिला और उसने परमाणु को दो ने इस दिशा में पर्याप्त ऊहापोह किया और विविध प्रकार के भागों में बाँटकर इसे इलेक्ट्रॉन (Electron) और प्रोटॉन (Proton) मन्तव्य प्रकाश में आए।
नाम दिया। इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन को विद्युत आवेश से युक्त प्रायः दार्शनिकों ने जगत् को पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु माना गया। विद्युत आवेश दो प्रकार का होता है-ऋणावेश तथा आकाश का एक संघात माना है। कुछ दार्शनिकों ने मात्र ४ (Negative Charge) एवं धनावेश (Postitive Charge)। इलेक्ट्रॉन तथ्यों को ही इसके लिए उत्तरदायी माना और आकाश को ऋणावेशित होता है, जबकि प्रोटॉन धनावेशित होता है। पुनः इससे अलग रखा। लेकिन इस संघात के पीछे मूलरूप से कौन इस दिशा में और अधिक अन्वेषण हुआ और परमाणु तीन भागों कार्य करता है, तथा किसे मूलतत्त्व स्वीकार किया जाए, इस में विभाजित हो गया। यह तीसरा भाग न्यूट्रॉन (Neutron) संदर्भ को लेकर दार्शनिकों के बीच एक मत नहीं रहा। किसी ने कहलाया। यह प्रोटॉन का आवेशरहित भाग है१३। मात्र भूतों को ही इसके लिए प्रभावी माना तो किसी ने अचेतन
प्रोटॉन का यह विभाजन यहीं नहीं रुका। वैज्ञानिक शोधों प्रकति को इसका श्रेय दिया। किसी ने ब्रह्म अथवा चरम सत्ता ने इस दिशा में प्रगति का क्रम निरंतर बनाए रखा। फलतः नएको इसका कारण माना तो कोई परमशक्ति को ही मूलतत्व मान
नए मूलभूत कणों की अवधारणा विकसित होती गई और मनुष्य बैठा। सचमुच मूलतत्त्व का प्रश्न भी अत्यंत गूढ़ एवं रहस्यमय न्यटीनो (Nuetrinol बीटाकण (Beta Particles) पॉजीटान (Posi. बनता गया। लेकिन इसका महत्त्व कभी कम नहीं हुआ। यह
tron) जैसे सूक्ष्म कणों से अवगत होता रहा। फोटॉन (Photon) अभी भी दार्शनिकों के समक्ष एक ज्वलंत समस्या बना हुआ है
और फोनॉन (Phonan) जैसे सूक्ष्मतम कणों की खोज ने वैज्ञानिकों जिस पर निरंतर चिंतन हो रहा है। विस्तारभय से बचने के लिए
के समक्ष मूलभूत कण के संदर्भ में एक नया मापदण्ड प्रस्तुत हम इस दार्शनिक चिंतन पर यहीं विराम लगाते हैं।
किया। लेकिन वैज्ञानिक प्रगति का क्रम यहीं अवरुद्ध नहीं हुआ। मूलकण और विज्ञान
यहाँ होने वाले प्रायोगिक अन्वेषणों के परिणामस्वरूप मेसॉन
(Meson), ग्लूकॉन (Glucon), स्टैंज (Strange) आदि के रूप में विज्ञान के समक्ष भी मूलकण का प्रश्न उपस्थित हुआ।
१०० से अधिक सूक्ष्म कण प्राप्त हो गए हैं, जिन्हें वैज्ञानिक इसके लिए यह मात्र चिंतन का ही विषय नहीं रहा, बल्कि एक
मूलकण स्वीकार करते हैं। लेकिन विज्ञान ने सूक्ष्मकण अथवा व्यवहारिक समस्या भी रही। विज्ञान अपने प्रयोग एवं निरीक्षण ,
प्रारंभिक कण के संदर्भ में अपनी खोज का क्रम गतिमान रखा तथा के लिए प्रसिद्ध रहा है और इस हेतु उसे चिंतन के धरातल के
क्वार्क (Quark) के रूप में एक ऐसे मूलभूत कण को प्राप्त कर साथ-साथ व्यवहारिक प्रयोग के क्षेत्र में भी प्रयाण करना
लिया है, जिसका प्रायः और अधिक विभाजन संभव नहीं है। पड़ता है। मूलकण के संबंध में भी वैज्ञानिकों ने इसी नीति का अनुपालन किया। सर्वप्रथम उसने मूलकण के स्वरूप का निर्धारण परमाण्विक संरचना किया और यह मत व्यक्त किया - किसी भी तत्त्व का सबसे
परमाणु चाहे कितने ही भागों में विखण्डित क्यों न हो छोटा भाग जो पुनः विभाजित नहीं हो सकता मूलकण कहलाता
जाए, इसका अस्तित्व अथवा इसकी संरचना तीन कणों पर है। प्रारंभ में इसे अणु (Molecule) कहा गया। लेकिन अणु का भी आधारित होती है। ये तीन कण हैं--इलेक्टॉन, प्रोटॉन और विभाजन हो गया और इस विभाजित कण को परमाणु (Atom)
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