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________________ द्वारा अपनी एवं आश्रितों की रक्षा प्राण देकर भी करना अनुचित नहीं है। वह अहिंसा अणुव्रत का पालन ही कहलायेगा क्योंकि उस की भावना हिंसा करने की नहीं है। भय से भागना भी उचित नहीं हिंसा आदि अशुभ भावना से अशुभ कर्मों का बंधन होता है। भावना रहित, शुद्ध, वीतराग अवस्था में किसी कर्म का बन्धन नहीं होता है। (घ) संकल्पी हिंसा मनुष्य जब विचार, संकल्प द्वारा या प्रमाद वश किसी प्राणी का जीवन नष्ट करता है, अथवा स्वाद या शौक के लिए किसी पशु को मार कर भोजन के रूप में ग्रहण करता है अथवा जो वस्तु पशु पक्षी के मारे जाने से बनती है, उसे संकल्पी हिंसा के अन्तर्गत रखा जाता है । जहाँ तक हो सके मनुष्य को संकल्पी हिंसा भी बचना चाहिये । सत्यव्रत - महावीर स्वामी ने सत्य को भगवान के रूप में माना है (तं सच्चं खु भगवं) जैन धर्म एवं दर्शन के अनुसार पारसनाथ द्विवेदी अपनी पुस्तक भारतीय दर्शन में सत्य की व्याख्या निम्न रूप से करते हैं - " सत्य का अर्थ है असत्य ( मिथ्या) का सर्वथा परित्याग अर्थात् मन, वचन और शरीर से मिथ्या आचरण का सर्वथा परित्याग करना 'सत्य' है। सत्य वह महाव्रत है जिससे हमारे जीवन में एक माधुर्य उत्पन्न होता है, नवीन स्फूर्ति एवं प्रेरणा उत्पन्न होती है, एक नया प्रकाश मिलता है। सत्य के विविध रूप हैं। क्षमा, निराभिमानता, विनम्रता, उदारता, सेवा आदि सभी सत्य के रूप हैं। राग-द्वेष, क्रोध, लोभ, मोह आदि के वश में होकर कभी मिथ्या आचरण कर बैठता है, अतः उनका सर्वथा परित्याग करना चाहिए । इस प्रकार मनसा, वाचा, कर्मणा सब प्रकार से मिथ्या आचरण का परित्याग करना 'सत्य' है। ८ चाहिये रतन लाल जैन सत्य का विश्लेषण निम्न रूप से करते हैं "अपने आर्थिक आदि लाभ के लिए दूसरों को धोखा देना या इस प्रकार कहना, संकेत करना या चुप रहना जिससे दूसरे मनुष्यों को भ्रम हो जाय या वे अन्यथा प्रकार समझ जायं असत्य आचरण है। यदि सत्य कह देने से कोई बड़ा अनर्थ होता है तो ऐसा सत्य भाषण भी उचित नहीं है। यदि किसी सत्य बात के कह देने से, किसी के घर कलह तथा आपस में मार-पीट होने की आशंका हो तो ऐसी बात को कहना कभी भी उचित नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार यदि कोई चोर, डाकू या अन्य व्यक्ति किसी के धन अपहरण करने हेतु, उस व्यक्ति के घर का भेद लेना चाहे और अपने दुष्य अभिप्राय को छिपाकर मीठी-मीठी बात बनाये, तो ऐसी अवस्था में उससे सत्य कहना कभी भी उचित नहीं कहा जा सकता। ऐसे अवसरों पर मौन धारण करना ही उपयुक्त है। दूसरे मनुष्यों के गौरव कम करने या अपयश फैलाने के हेतु उनके गुप्त दोषों को प्रगट करना या अन्य प्रकार की बुराई करना अनुचित है। सत्य व्रती के लिए उचित है कि वह सदा सत्य की खोज करे, प्रत्येक बात पर निष्पक्ष बुद्धि से विचार एवं मनन करे, सत्य के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तत्पर रहे, जो सत्य प्रतीत हो उस को अंगीकार करे, जो विचार धारणायें असत्य मालूम हो, उनको त्याग दे । ९ ७. .८. ९. Jain Education International आत्म रहस्य- रतनलाल जैन पृ. १४९ । भारतीय दर्शन, पारसनाथ द्विवेदी, पृ. ६५-६६ । आत्मा रहस्य- रतनलाल जैन, पृ. १५० - १५१ । (१७०) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210778
Book TitleJain Dharm me Vrata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA B Shivaji
PublisherZ_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf
Publication Year1992
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & Achar
File Size620 KB
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