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- यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म - पुरातात्त्विक दोनों साक्ष्यों से सिद्ध है। डॉ. एन.एन. बसु का मन्तव्य जैन और वैदिक परम्परा में प्राचीनकाल से ही उनकी है कि ब्राह्मीलिपि का प्रथम आविष्कार संभवतः ऋषभदेव ने ही उपस्थिति का जो संकेत मिलता है, वह इस बात का भी सूचक किया था। अपनी पुत्री के नाम पर इसका ब्राह्मी नाम रखा। भागवत है कि वे एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे और महावीर तथा पार्श्व के में वे विष्णु के अष्टम अवतार के रूप में प्रख्यात हुए हैं।६४ पूर्व उनकी श्रमण-परम्परा जीवित थी। संभव है कि महावीर के
सम्मुख ऋषभ और पार्श्व दोनों की परम्परा जीवित रही हो तथा ऋषभ और शिव
महावीर ने पार्श्व की परम्परा की अपेक्षा ऋषभ की परम्परा को सिन्धु घाटी में मिली मूर्तियों और सीलों की देवमूर्ति का अधिक महत्त्व दिया हो। समीकरण चाहे हम शिव से करें या ऋषभ से करें बहुत अंतर
आज हमारे पास आजीवक सम्प्रदाय का कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। ऋषभ और शिव के संदर्भ में जो कथाएँ मिलती हैं,
नहीं है, फिर भी इतना निश्चित है कि आजीवकों की परम्परा उनसे इतना स्पष्ट होता है कि दोनों वैदिक कर्म-काण्ड के
महावीर और गोशालक के पूर्व भी प्रचलति थी, संभव है कि विरोधी थे। दिगम्बर-विद्वान पं. कैलाशचन्द्रजी ने शिव और
आजीवकों की यह परम्परा ऋषभ की परम्परा रही हो। परवर्ती वृषभ में समीकरण खोजने का प्रयत्न किया है।
जैन-ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि प्रथम और अंतिम तीर्थंकर महाभारत में महादेव के नामों में शिव और ऋषभ दोनों के धर्म में समानता होती है, वह आकस्मिक नहीं है। तार्किक का उल्लेख हुआ है। अथर्ववेद के १५वें व्रात्य नामक काण्ड में आधार पर हम इतना ही कह सकते हैं कि महावीर ने पार्श्व की एकव्रात्य को महादेव भी कहा गया है। इससे सिद्ध होता है कि परम्परा की अपेक्षा आजीवकों के रूप में जीवित ऋषभ की। व्रात्यों, वातरशना मुनियों और शिश्नदेवों की कोई एक परम्परा नग्नतावादी परम्परा को ही प्राथमिकता दी और स्वीकार किया। थी, जो वैदिक काल में भी प्रचलित थी और यह परम्परा निश्चित
जैसा कि हम पूर्व में सूचित कर चुके हैं कि पं. कैलाशचन्द्रजी ही वेद-विरोधी श्रमण-धारा की थी। व्रात्य शब्द का अर्थ भी
आदि कुछ जैन-विद्वानों ने इन सब उल्लेखों के आधार पर व्रतों का पालन करने वाला, 'गी या घुमक्कड़ होता है। ये
ऋषभ एक ऐतिहासिक व्यक्ति सिद्ध करने का प्रयास किया है सभी बातें श्रमणों में पाई जाती ह। पनः अथर्ववेद में व्रात्यों को
और उनकी समरूपता शिव के साथ भी स्थापित की गई है। मागध कहा गया है, इससे भी यही सिद्ध होता है कि वे श्रमण ,
जिसके आधार निम्नलिखित हैं - परम्परा के ही लोग थे। यह सुनिश्चित सत्य है कि मगध श्रमणों का केन्द्र स्थल था। इन सब आधारों पर ऐसा लगता है कि
प्रथम तो ऋषभ और शिव दोनों ही दिगम्बर हैं। शिव का श्रमणों की यही परम्परा विकसित होकर हिन्द धर्म में शैवों वाहन नन्दी (वृषभ) है, तो वृषभ का लांछन भी वृषभ है। दोनों अर्थात् शिव के उपासकों के रूप में और श्रमण-परम्परा में ___ध्यान, साधना और योग के प्रवर्तक माने जाते हैं।६५ जहाँ शिव ऋषभ के अनुयायियों के रूप में विकसित हुई। हिन्दू-पुराणों में को कैलाशवासी माना गया है, वहाँ ऋषभ का निर्वाण भी कैलाश मार्कण्डेय पुराण, कूर्म पुराण, अग्नि पुराण, वायु पुराण, गरुड पर्वत (अष्टापद) पर बताया गया है। इसी प्रकार दोनों वैदिक पुराण, ब्रह्मांड पुराण, विष्णु पुराण, स्कन्द पुराण और श्रीमद्भागवत कर्मकाण्ड के विरोधी, निवृत्तिमार्गी और ध्यान एवं योग के में जो ऋषभदेव का वर्णन उपलब्ध होता है, उससे इतना तो प्रस्तोता हैं। यद्यपि दोनों में बहुत कुछ समानताएँ खोजी जा निश्चित ही सिद्ध हो जाता है कि ऋषभ निश्चित ही एक ऐतिहासिक सकती हैं, फिर भी परवर्ती साहित्य में वर्णित दोनों के जीवनवृत्तों पुरुष रहे हैं।
के आधार पर आज यह कहना कठिन ही है कि वे अभिन्न ___जैनपरम्परा में ऋषभदेव की मूर्तियाँ तथा पूजा के प्रमाण
व्यक्ति हैं या अलग-अलग व्यक्ति हैं; परन्तु इस समग्र चर्चा से हमें ईसा-पूर्व प्रथम शताब्दी से मिलने लगते हैं। इस आधार पर
इतना निष्कर्ष अवश्य निकलता है कि ऋषभ को भारतीय हम यह कह सकते हैं कि ईसा पूर्व में भी ऋषभदेव जैनपरम्परा
समाज और संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। यही के तीर्थंकर माने जाते थे।
कारण है कि हिन्दू-परम्परा उन्हें भगवान् के चौबीस अवतारों में
प्रथम मानवीय अवतार के रूप में स्वीकार करती है। merciariandiaaidrosarokariwarstardarovarinidr ३ ७ Haririamiricardiansarswamirsiandiardiarosarokaridra
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