________________
तीन शरीरों का नाश हो जाने के बाद उन्नत पद को प्राप्त करते हैं ।"
रामायण के अन्य पात्रों के धार्मिक आचरण
अमान (हनुमान) की उन्नत पद प्राप्ति - राम के साथ ही साथ हनुमान भी संयम धारण करते हैं । उन्हें भी राम के समान ही केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। उसके बाद वे भी राम के साथ औदरिक, तैजस और कार्मण इन तीनों प्रकार के शरीरों का नाश कर उन्नत पद प्राप्त करते हैं ।
सुग्रीव का संयमधारण - राम हनुमान आदि के साथ ही सुग्रीव भी संयम धारण करते हैं। इस प्रकार उत्तरपुराण के अनुसार ये सभी पात्र जैन धर्मावलम्बी माने गये हैं ।
विभीषण की अनुदिश प्राप्ति-आचार्य गुणभद्र-कृत उत्तरपुराण के अनुसार विभीषण भी सर्वप्रथम जैन धर्मानुरूप राम, सुग्रीव, हनुमान आदि अनेक राजाओं एवं विद्याधरों के साथ मिलकर संयम धारण करते हैं। बाद में राम व हनुमान को तो सिद्ध क्षेत्र की प्राप्ति हो जाती है, परन्तु विभीषण अनुदिश को प्राप्त करते हैं।'
सीता द्वारा दीक्षाधारण व अच्युत स्वर्ग में उत्पत्ति-जैन धर्मानुसार सीता तथा पृथ्वी सुन्दरी आदि अनेक देवियां भीतवती के समीप जाकर दीक्षा धारण करती हैं। दीक्षा धारण करने के उपरान्त वे अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न होती हैं।
लक्ष्मण का मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त करना - जैन परम्परानुसार जीवों में कई प्रकार की विचित्रताएं मानी गई हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए लक्ष्मण के विषय में कहा गया है कि वह चतुर्थ नरक से निकलकर क्रमशः संयम धारणकर मोक्ष लक्ष्मी प्राप्त करते हैं । "
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि आचार्य गुणभद्र ने जैन परम्परानुसार ही सम्पूर्ण रामकथा का वर्णन कर रामकथा का जैन रूपान्तर प्रस्तुत किया है । उनके अनुसार राम जैन धर्म के एक महानपुरुष थे, राम के माध्यम से जैन समाज के लोगों को उपदेश देना ही उनका प्रमुख उद्देश्य प्रतीत होता है । जैनीकरण के माध्यम से जैन कवियों ने रामकथा में प्राचीन समय से विद्यमान अनेक अस्वाभाविक व कृत्रिम बातों को भी स्वाभाविक बनाने का प्रयत्न किया है। उन्होंने रामकथा को व्यावहारिक बनाया है। अनेक प्रकार के जैन सिद्धान्तों का पोषण रामकथा के माध्यम से करने का प्रयास किया है। रामकथा का जैनीकरण करके उन्होंने जैन समाज के लोगों को यह उपदेश देने का प्रयत्न किया है कि जो व्यक्ति जैसा कार्य करता है परिणामस्वरूप उसे वैसे ही कर्म भोगने पड़ते हैं । सदाचारी व्यक्ति अन्त में सिद्धि को प्राप्त करता है तथा दुराचारी व्यक्ति अन्त में दुःखों को भोगता हुआ नरक की प्राप्ति करता है। जैन लेखकों ने राम-लक्ष्मण व रावण को अपने धर्म में आठवां बलदेव, नारायण व प्रतिनारायण मानकर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। राम अर्थात् बलदेव सदाचारी व शान्त प्रकृति का होने के कारण अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता है लक्ष्मण चतुर्थ नरक को प्राप्त करता है क्योंकि वह पूर्वजन्म में दुराचारी था तथा उसके पुण्य भी क्षीण हो जाते हैं। इसी प्रकार प्रतिनारायण रावण का भी दुराचारी होने के कारण नारायण के द्वारा वध किया जाता है। तथा वह सप्तम नरक को प्राप्त करता है ।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि जैन धर्म के अनुयायी कर्म तथा जीवों की विचित्रता में विश्वास रखते हैं । इनका विश्वास है कि अपने कर्मों के अनुसार ही मनुष्य भिन्न-भिन्न जन्मों में फलों का भोग करता है। राम जैसे आदर्श पात्र को अपने धर्म में स्थान देने के लिए ही इन्होंने त्रिषष्टिशलाकामहापुरुषों में राम, लक्ष्मण व रावण को स्थान दिया है ताकि जैन समाज के लोग भी राम जैसे आदर्श पात्र का अनुसरण कर अपने जीवन के अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति कर सकें। जैन परम्परानुसार 'निर्वाण' ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है। सदाचारी व्यक्ति ही क्रमशः इसे संयम धारण द्वारा प्राप्त कर पाता है। राम जैसा पुण्यशील मानव ही इसे प्राप्त करने में समर्थ हो सकता है । इसी दार्शनिक पृष्ठभूमि में गुणभद्र ने राम कथा का जैन रूपान्तर किया है।
जैन धर्म-दर्शन के सिद्धान्त
आचार्य गुणभद्र-कृत उत्तरपुराण में वर्णित रामकथा का अध्ययन करने से जैन धर्म तथा दर्शन -सम्बन्धी अनेक सिद्धान्तों का ज्ञान
१. शरीरवितयापायादवापत्पदमुत्तमम् ' उ०पू०, ६८ / ७२०
२. उ०पु०, ६८ / ७२०
३. 'वेदात्प्रादुर्भवदबोधः सुग्रीवाणुमदादिभिः । उ०पु०, ६८ / ७१०
४. उ०पु०, ६८ / ७२१
५. वही, ६८ /७१२
६. 'रामचन्द्राग्रदेव्याद्याः काश्चिदीयुरितोऽच्युतम् । उ०पु०, ६८ / ७२१
७. उ०पु०, ६८ /७२२
जैन साहित्यानुशीलन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
८५
www.jainelibrary.org