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गणिका है। इसके पूर्व 3 वाचना का संकलन हुआ था जो लिपिबद्ध नहीं मिलता। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वे वाचनायें पुनरावर्ती के रूप में मुखाग्रही करा दी गयी होंगी। यदि लेख रूप में होते तो कुछ अंशों में अवश्य मिलते। जैन आगमों के सिवाय अन्य प्रकरणों में और स्वतंत्र रूप से भी अति सूक्ष्म दृष्टि से लिखे गये ग्रन्थ संपूर्ण नहीं मिलते। उन ग्रन्थों का नाम अन्य ग्रन्थों में भी पाया जाता है। इसमें अनुमान लगाया जाता है कि कुछ असावधानी से खराब हो गये, कुछ बाहर विदेश चले गये और इसके पूर्व भारतीय दर्शन का अधिकांश भाग जैन, वैदिक आदि सभी दर्शनों सहित नष्ट कर दिया गया। इसलिये हमारे सामने जो वर्त मान में ग्रन्थ आगम आदि हैं उन्हीं के आधार पर कुछ दिग्दर्शन कराया जा सकता है। वर्तमान अनुसंधानकर्ता ( रिसर्च करने वाले) वर्तमान ग्रन्थों के आधार पर ही अंतिम] छाप लगा बैठते हैं। पर यह विचारणीय है कि अंतिम छाप तो वह लगा सकता है जो सर्वज्ञ और अंतरयामी हो । छदमस्थ यदि ऐसा करता है तो यह उसकी अनाधिकार चेष्टा है ।
वाद्यों से संबंधित ग्रंथ
स्थानाङग 4
प्रस्तुत ग्रन्थ में वाद्यों के चारों प्रकारों के वर्गीकरण का उल्लेख है । जैसे :
तत् - तंतुवाद्य, वीणा आदि,
( 1 )
( 2 ) तितत - मंढे हुये वाद्य, पटह आदि,
(3) पन कांस्यताल
(4) भुशिर शुषिर-फूंक द्वारा बजने वाले वाद्य, बांसुरी आदि ।
राजनीय सूत्र 64
प्रस्तुत ग्रन्थ में (1) शंख,
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(2) श्रृंग, (3)
शंखिका, (4) खरमुही, (5) पेया (6) पीरिविरियाशूकर-पुटावनद्धमुखोवाय विशेष (7) पणव- लघु पटह, (8) पटह, ( 9 ) होरंभ ( 10 ) महाढनका, (11) मेरी, (12) झल्लरी, ( 13 ) दुंदुभि-वृक्ष के एक भाग को भेदकर बनाया गया वाद्य (14) मुरज-शंकरमुखी, ( 15 ) मृदंग आदि 60 प्रकार के वायों का उल्लेख किया गया है ।
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बृहत्कल्प भाव्यपीठिका 24 वृत्ति
इस पुस्तक में वाद्यों के नामों का निम्न प्रकार से उल्लेख मिलता है :
(1) भंभा ( 2 ) मुकुन्द ( 3 ) मद्दल (4) कडंब झरि (6) हुडुक्क (7) कांस्पताल ( 8 ) काहल तलिमा ( 10 ) वंश ( 11 ) पणव तथा
(5)
( 9 )
(12)
शंख
स्थानाड ग 7, उ. 3 एवं अनुयोग द्वार
उपरोक्त ग्रन्थों में "संगीत" की व्याख्या विशद रूप से की गयी है । इसमें गीत के तीन प्रकार बताये गये
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में मन्द |
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(1) प्रारम्भ में मृदु (2) मध्य में ते (3) अन्त
गीत के दोष
( 1 ) भीतं - भयभीत मानस से गया जाय,
(2) इतं बहुत शीघ्र शीघ्र गाया जाय, (3) अपित्वं श्वास युक्त शीघ्र गाया जाय अथवा ह्स्व स्वर लघु स्वर से ही गाया जाय ।
(4) उत्तालं -अति उत्ताल स्वर से व अवस्थान ताल से गाया जाय ।
(5) काकस्वरं कौए की तरह कर्ण कटु शब्दों - से गाया जाय ।
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