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लिखकर प्रासुक गर्म जल से धोकर रोगी को पिलाने से रोग दूर होता है । इस यंत्र को दीप माला पर्व पर केशर सुगंधी द्रव्यों से भोजपत्र पर या कागज पर लिखे १०८ बार तिजय पडुत स्तोत्र पढ़कर उसे सिद्ध करलें, पश्चात् हमेशा पास में रखें तो अपने परिवार में समाज में सबको प्रिय हो मान प्रतिष्ठा बढ़े या लक्ष्य की प्राप्त हो ।' सुख शांति आनंद मंगल हो ।
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मंत्र व यंत्र साधना करते समय उनके सभी नियमों का पालन करने के साथ गुरु आज्ञा एवं उत्तर साधक मार्गदर्शन होना जरूरी है।
जैन दर्शन सम्मत मुक्त, मुक्ति, स्वरूप साधन
पं. देवकुमार जैन
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भारतीय दर्शनों का लक्ष्य यद्यपि भारतीय दर्शन विचारप्रणालियों की भिन्नता के कारण अनेक नामात्मक हैं। जीव और जगत् के प्रति अपना-अपना मंतव्य प्रस्तुत करते हुए भी उनका एक निश्चित उद्देश्य है कि जन्म-जरा मरण आधि व्याधि और उपाधि से सदा सर्वदा के लिये मुक्त होकर जीव को परम सुखसमाधि प्राप्त हो। इस परमसमाधि का अपर नाम मोक्ष है।
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मोक्ष और उसकी प्राप्ति के उपायों, साधनों का निरूपण करना भारतीय दर्शनों का केन्द्र बिन्दु है। महर्षि अरविन्द मोक्ष को भारतीय विचार - चिन्तन का एक महान् शद्व मानते हैं। वे कहते हैं कि यदि भारतीय दर्शनों की कोई महत्त्वपूर्ण विशिष्टता है तो वह मोक्ष का चिन्तन है । जो उनकी मौलिकता है और वह अन्य दर्शनों से उनके पृथक अस्तित्व का बोध कराता है।
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भारतीय दर्शनों ने कहा है कि संसार में चार बातें ऐसी हैं, जिनको प्राप्त करना पुरुष का कर्तव्य है । उनको पुरुषार्थ कहा है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, ये चार पुरुषार्थ कहे गये हैं। इनमें मोक्ष या मुक्ति सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ है। संसार के समस्त प्राणी आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक, इन तीन प्रकार के दुःखों से सदा संत्रस्त रहते हैं। उनसे छुटकारा पाना ही पुरुष का अंतिम लक्ष्य है, साध्य है।
भारतीय दर्शनों की इस मुक्ति विषयक सामान्य भूमिका कर दिग्दर्शन कराने के पश्चात् अब विशेष स्पष्टीकरण के साथ भारत के मूल दर्शन जैनदर्शन की मोक्ष सम्बन्धी धारणा को प्रस्तुत करते हैं ।
जैनदर्शन में मोक्षवर्णन की सामान्य रूपरेखा जैनदर्शन अध्यात्मवादी दर्शन है। उसकी प्रत्येक वृत्ति, प्रवृत्ति का परमलक्ष्य आत्यन्तिक सुख, परम समाधि प्राप्त करना है इस स्वीकृति के साथ उस सुख- समाधि को प्राप्त करने की सामान्य योग्यता का रूप क्या है? मूलतः आत्म-स्वरूप से परमशुद्ध होकर भी उससे दूर क्यों है? इसके कारण क्या हैं? उन कारणों से आत्मा किन-किन अवस्थाओं को प्राप्त करती है? ये अवस्थायें यदि औपाधिक हैं तो उपाधियों को दूर करने के कारण क्या हैं? उपाधियों के दूर
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