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स्वीकार किया गया है। यह समाजवादी चिन्तना का सर्जक है, जो वर्ण-भेद, रंग-भेद व लिंग-भेद आदि अमानवीय दुष्प्रवृत्तियों का निराकरण करने की योजना प्रस्तुत करता है। जैन दार्शनिकों ने चारित्रिक-छता, शुद्धता, अहिंसा, प्रेम, करुणा, विश्व-मंगल, सहभाव एवं समानता आदि मानवीय गुणों को अंगीकार कर उसे मानवोपयोगी सिद्ध किया है। यह न केवल मानव की मंगल कामना का इच्छुक है, अपितु प्राणीमात्र के लिए मंगल-भावना प्रस्तुत करता है । जैन-दर्शन मानव को पांच नियमों का सदुपदेश देता है— अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य व अपरिग्रह " ये पांच तत्त्व मानव को कल्याण पथ पर चलने को प्रेरित करते हैं। वह रत्नत्रय को मोक्ष व मानव-व्यक्तित्व में पूर्ण सहायक स्वीकार करता है। यह एक महिलावादी चिन्तना का सर्जक है जो विश्वकल्याण की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अहिंसा मानव का सुन्दर आभूषण है, उसे देवता भी प्रणाम करते हैं- "हे गौतम! जीव की दया, संयम, मन, वचन व काया से शुद्ध ही मंगलमय की संज्ञा है ।" मानव का कल्याण सम दृष्टि से ही सम्भव है । "हमें सबको, समस्त प्राणियों को, चाहे वे मित्र हों या शत्रु और किसी भी जाति के क्यों न हों, समान दृष्टिकोण से देखना चाहिये ।४ इस समतावादी सिद्धान्त में मैत्रीभावना को पर्याप्त बल मिला है, अन्यथा मानव का मानव के प्रति कोई सम्बन्ध न होता ।
कर्मयोगी भी केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड
जैन दर्शन में मानव का परम लक्ष्य परमार्थ को अंगीकार किया गया है। वह आत्मकल्याण, सामाजिककल्याण व उनके हितों पर भी आवश्यक बल प्रदान करता है। मानव की परोपकार-भावना से ही आत्म-विकास व सद्-द्भावना का प्रसार होता है।
जैन दर्शन समाजवादी विचारधारा का पोषक है । व्यक्ति अपने गुण, कर्म व स्वभाव से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र कहा जा सकता है, न कि मात्र जन्म से । इस दर्शन में मानव जाति की एकता, प्राणीमात्र की समता, समाज कल्याण, नीति-संवर्द्धन तथा आचार-विचार की श्रेष्ठता पर बल दिया है। समाज में वर्ग संघर्ष आदि अमानवीय प्रवृत्तियों से बचने का आदेश दिया है, जो मानवमात्र के लिए हितकारी हैं।
३. मानव और आध्यात्मिक मूल्य
जैन दर्शन की यह मान्यता है कि मानव का व्यक्तित्व संस्कारों के आवरण से प्रभावित रहता है । इन संस्कारों के प्रभाव कम होने पर ही आत्मा में ज्ञान, सुख व शक्ति की अभिवृद्धि होती है। यह दर्शन आत्म-ज्ञान पर पर्याप्त बल देता है जो नैतिक व आचार मूल्यों से ही प्राप्त होता है। 5 उसकी उद्घोषणा है कि आध्यात्मिक साधना व उसके अनुशासन से ही मानव का कल्याण संभव हो सकता है । अतः मानव की आध्यात्मिक धरोहर को न केवल जैनदर्शन ही स्वीकार करता, अपितु सभी भारतीय दार्शनिक सम्प्रदाय स्वीकार करते हैं ।
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१. (i) अहिंसा परमो धर्मः ।
(ii) जैनदर्शन में अहिंसा का महत्त्वपूर्ण स्थान है, भारतीय चिन्तन परम्परा में यही एक ऐसा सम्प्रदाय है, जो अहिंसादर्शन की वैज्ञानिक व मानवोपयोगी चिन्तना प्रस्तुत करता है। उसकी उद्घोषणा है कि "अहिंसा शक्ति माली की ताकत है, दुर्बल की नहीं।"
- तत्त्वार्थसूत्र ७।१
- तत्त्वार्थसूत्र ७।१
२. हिसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्योविरतिव्रतम् ।
३. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्ष मार्गः ।
४.
५. वही, अ० २५, गा० ३३.
६.
Jainism and Democracy : Dr. Indra Chandra Shastri, p. 40.
७. भारतीय दर्शन, आचार्य बलदेव उपाध्याय, पृ० १५०
The Concept of Man: Radhakrishnan and P. T. Raju, p. 252.
८.
उत्तराध्ययन अ० १६, गा० २६.
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