________________ जैनदर्शन के सन्दर्भ में : पुद्गल 377 ++ mr++HHHHHHorrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr++++++++++++++++++ पुद्गल के सम्बन्ध में जैन साहित्य में अत्यधिक विस्तार से चिन्तन किया गया है। आधुनिक विज्ञान भी पुद्गल के सम्बन्ध में शोधकार्य कर रहा है। आजकल विज्ञान जिसे परमाणु कहता है वह स्थूल है / जैन दृष्टि की अपेक्षा वह परमाणु नहीं, किन्तु स्कन्ध ही है / क्योंकि जैन दृष्टि से जो परमाणु है वह अच्छेद्य, अभेद्य, अग्राह्य, अदाह्य और निविभागी है। किन्तु विज्ञानसम्मत परमाणु अनेक परमाणुओं का पिण्ड है अतः वह जोड़ा व तोड़ा जा सकता है, यन्त्र विशेष की सहायता से देखा-जाना जा सकता है किन्तु जैनदर्शन का परमाणु किसी भी यन्त्र की सहायता से जाना या देखा नहीं जा सकता / वैज्ञानिकों के परमाणु में तो अनेकों इलेक्ट्रोन हैं जो बराबर एक प्रोटान के चारों ओर घूम रहे हैं / ___सारांश यह है कि पुद्गल पर इतना गम्भीर चिन्तन जैनदर्शन में किया गया है कि यदि उस पर विस्तार से लिखा जाय तो एक विराटकाय ग्रन्थ बन सकता है / मैंने बहुत ही संक्षेप में पुद्गल के सम्बन्ध में विचार व्यक्त किये हैं। मैं समझता हूँ कि मेरे ये विचार जिज्ञासुओं को गम्भीर अध्ययन करने की प्रबल प्रेरणा प्रदान करेंगे। श्री देवेन्द्र मुनि जी शास्त्री ने 'जैनदर्शनः स्वरूप और विश्लेषण' ग्रन्थ में पुद्गल पर विस्तार से विवेचन किया है, विज्ञगण विशेष जानकारी के लिए उसे पढ़ें यह मेरा नम्र सूचन है। -----पूष्क र वाणा -0--0-0-0--0--0--0----------------------- 2 ---0--0--0--0--0--0-0--0--0--0--0-0--0--- मानव जीवन एक रत्न है, विषय वासना कर्दम सम / दुर्दम है कायर को लेकिन, शूरवीर के लिए सुगम / / अस्थिर तन-धन-यौवन है फिर, स्थिर कैसे इनका अभिमान / 'जाना है' यह जाना पर क्या, जाना है जाने का स्थान / / पल का नहीं भरोसा, कल की चिन्ता करने वाले मूढ़। सरलतया कब जाना जाता, जीने का उद्देश्य निगूढ़ / / स्त्री के प्रति नर, नर के प्रति स्त्री, करती है मिथ्या अनुराग। कोई नहीं किसी का साथी, बाती जलती नहीं चिराग / / सत्संगति से शास्त्र-श्रवण से, दृढ़ हो जाता है वैराग्य / होता है वैराग्य उसी को, जिसका हो ऊँचा सौभाग्य / ---0-0--0--0--0--0--0--0--0--0-0-0--0--0-- 4-0-0--0--0-0--0--0--0--0-0--0--0--0--0--0--0--0--0--0--0--0-o-or-o-rs Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org