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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन दर्शन इस विवेचन में स्वार्थानुमान के लक्षण में एक विशेष क्योंकि इसके सींग हैं। किन्तु सींग वाले अनेक ऐसे पशु होते हैं, बात बढ़ा दी गई है, वह है स्वनिश्चित। परार्थानुमान का लक्षण जो अश्व नहीं होते। जैसे - गाय, भैंस आदि। अत: सींग वाला वही है, जो पूर्ववर्ती आचार्यों ने प्रतिपादित किया हैं। पशु अश्व होता है। ऐसी कोई प्रसिद्धि नहीं है, फिर तो अनुमान अनुमानाभास - अनुमानाभास (अनुमान + आभास) भा गल भी गलत है। का अर्थ होता है दोषपूर्ण अनुमान। अनुमान का आभास हो किन्तु (२) असद - जो हेत असत हो, जिसकी सत्ता न हो, जो सही अर्थ में अनुमान न हो। जो अनुमान साध्य के विषय में गलत सिद्ध न हो। यदि कोई गधे को अश्व कहता है, यह हेतु दिखाकर बोध कराए वही अनुमानाभास है। यह तब होता है जब अनुमान के कि वह सींग वाला है, तो ऐसा हेत सिद्ध भी नहीं है, क्योंकि गधे आधार पर या अनुमान के अवयवों में दोष होता है। आधार की के सींग होता है, ऐसा किसी ने नहीं देखा है। दृष्टि से विचार करने पर ऐसा माना जा सकता है कि जब हेतु की तो उसके द्वारा दिया गया हेत संदिग्ध है। क्योंकि जितने व्याप्ति एवं पक्ष की पक्षधर्मता में दोष होता है तब अनुमानाभास भी सींग वाले पशु हैं, वे गाय ही नहीं होते। अतः निश्चित रूप होता है। अवयव की दृष्टि से विचार करने पर हम कह सकते हैं कि से यह नहीं कहा जा सकता कि सींग वाले पशु गाय हैं। पञ्चावयव-प्रतिज्ञा, हेतु, दृष्टांत, उपनय तथा निगमन में जब दोष पाए जाएँगे तब अनुमानाभास होगा। इसमें आभास होने पर ही न्याय दर्शन - अनुमानाभास होता है। दोष होने पर प्रतिज्ञा- प्रतिज्ञाभास, हेतु इस दर्शन में पांच प्रकार के हेत्वाभास माने गए हैं।१३४ हेत्वाभास, दृष्टान्त-दृष्टान्ताभास, उपनय-उपनयाभास तथा निगमनिगमनाभास हो जाते हैं। इन सब की वजह से पूरा अनुमान ही (१) सव्यभिचार - दो विरोधी वस्तुओं में हेतु का रहना अनुमानाभास हो जाता है। इनमें से कोई भी एक आभास यदि व्यभिचार होता है। साध्य और साध्याभाव दो विरोधी पक्ष हैं। घटित होगा तो अनुमान सही नहीं हो सकता है। यदि हेतु किसी रूप में दोनों में बताया जाए, तो यह व्यभिचार वैशेषिक दर्शन - सामान्यतः अनुमान के पांच अवयव होगा। व्यभिचार युक्त व्यवस्था या व्यभिचार वाले हेतु को माने गए हैं किन्तु उनमें हेतु को अधिक प्रधानता दी गई है। सव्यभिचार कहते हैं। इसलिए बहुत से दार्शनिकों ने अनुमानाभास पर विचार करते (२) विरुद्ध - स्वीकार किए गए सिद्धान्त के विरोध में हुए केवल हेत्वाभास पर ही ध्यान दिया है। महर्षि कणाद ने भी आने वाला हेतु विरुद्ध कहा जाता है। प्रतिज्ञाभास, दृष्टान्ताभास आदि पर प्रकाश नहीं डाला है। उन्होंने (३) प्रकरणसम - "निर्णय के लिए, अपदिष्ट होने पर सिर्फ हेत्वाभास का विवेचन किया है। ऐतिहासिक दृष्टि से (कथन करने पर) भी, जिसमें प्रकरणचिन्ता बनी रहती है, उसे हेत्वाभास पर विचार करने वाले वे प्रथम व्यक्ति माने जाते हैं, न्यायसत्रकार ने प्रकरणसम कहा है।"१३५ क्योंकि उनसे पहले भारतीय न्याय शास्त्र में किसी ने हेत्वाभास (४) साध्यसम - जो हेतु सिद्ध न हो बल्कि स्वयं साध्य पर विचार नहीं किया है। उन्होंने कहा है१३२ की तरह ही साध्य हो उसे साध्यसम कहते हैं। शब्द भी बताता है "प्रसिद्धिपूर्वक त्वादपदेशस्य।" (साध्य + सम) कि जो साध्य के बराबर हो। जो हेतु प्रसिद्धि पूर्वक होता है यानी जिसमें व्याप्ति होती (५) कालातीत - साधन और साध्य को एक ही काल है, उसे ही अपदेश या सद्हेतु कहते हैं। जिस हेतु में प्रसिद्धि नहीं में होना चाहिए। जो हेतु साध्य की सिद्धि के लिए उस समय होती या जिसकी प्रसिद्धि संदिग्ध होती है, उसे असद् या असिद्ध प्रस्तुत किया जाए, जब उसका समय व्यतीत हो चुका हो, तो हेत्वाभास मानते हैं।१३३ इस प्रकार कणाद ने हेत्वाभास के तीन उसे ही कालातीत हेत्वाभास कहते हैं। प्रकार माने हैं - मीमांसा एवं वेदान्त - मीमांसासूत्र में हेत्वामास की (१) अप्रसिद्ध - जिस हेतु की प्रसिद्धि न हो। कोई चर्चा नहीं मिलती। 'शांकरभाष्य' ने भी इस पर कोई प्रकाश नहीं व्यक्ति गधे को दूर से देखकर कहता है - यह पशु अश्व है, डाला है किन्त कमारिल के विमर्श में असिद्ध अनैकान्तिक एवं Madaaraansaansorsasaraordarsanaroromotoroof ५ ६]ooranslationsansarsawaaridwardindiansudra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210649
Book TitleJain Tark me Anuman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year1999
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationArticle & Logic
File Size3 MB
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