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________________ पार्टियों (प्रीतिभोजों) में भी शराब का प्रयोग करने लगे हैं। जो व्यक्ति अपनी सन्तान तथा परिवार में सदाचार कायम रखना चाहता है उसको शराब से सदा दूर रहना चाहिये । मांस-त्याग स्थावर एकेन्द्रिय जीवों के शरीर में रक्त नहीं होता, अतः रक्त से बनने वाला मांस भी वृक्ष आदि एकेन्द्रिय जीवों में नहीं हुआ करता, न हड्डी उनके शरीर में होती है । किन्तु दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय तथा पांच इन्द्रिय जीवों के शरीर में रक्त बनता रहता है, अत: उनके शरीर में मांस तथा हड्डी भी होती है । जिस तरह रक्त में त्रस जीव उत्पन्न होते रहते हैं, उसी तरह मांस में भी सदा असंख्य त्रस जीव उत्पन्न होते रहते हैं । यह बात केवल कच्चे मांस के लिये ही नहीं है किन्तु प्रत्येक तरह के मांस के लिये है। यानी —-मांस चाहे कच्चा हो, चाहे पका हुआ हो अथवा सूखा मांस हो उसमें त्रस जीव उत्पन्न होते रहते हैं। इस कारण मांस खाने से उन असंख्य त्रस जीवों की हिंसा हुआ करती है । श्री 'अमृतचन्द्र सूरि ने 'पुरुषार्थ सिद्धयुपाय' में कहा है आमास्वपि पक्वास्वपि विपच्यमानासु मांसपेशीषु । सातत्येनोत्पादस्तज्जातीनां निगोदानाम् ||६७ || अर्थात् - कच्चे पक्के तथा सूखे हुए मांस में सदा उसी मांस जाति के अनन्त सम्मूर्छन जीव उत्पन्न होते रहते हैं । . इस कारण दयालुचित्त धार्मिक व्यक्ति को मांस भक्षण का त्याग करना अनिवार्य है । मनुष्य स्वभाव से शाकाहारी यानी अन्न, फल, दूध, घी आदि का भोजन करने वाला है । मनुष्य के दांत इस बात की साक्षो देते हैं । मांसाहारी पशुओं के दांत गोल नुकीले होते हैं, उनके चबाने वाली डाढ़े नहीं हुआ करती; किन्तु मनुष्य के दांत चपटे होते हैं। इस कारण मांस मनुष्य का प्राकृतिक आहार नहीं है। मांस भक्षण से हृदय में निर्दयता आ जाती है। अतः हिंसाजनित तामसी पदार्थ मांस का त्याग किये बिना धर्म-आचरण की भूमिका नहीं बन सकती । इस कारण मांस-त्याग एक मूलगुण है । मधु-त्याग शहद खाने का त्याग करना मधु-त्याग है। मधुमक्खियाँ फूलों का रस चूस कर लाती हैं, फिर उस चूसे हुए रस को अपने - बनाये हुए छत्ते में आकर उगल कर रख देती हैं। मधुमक्खियों के मुख से उगला गया वह फूलों का रस ही मधु कहलाता है । मक्खियों के मुख का उगाल होने के कारण मधु (शहद) में असंख्य कीटाणु उत्पन्न हो जाते हैं क्योंकि मुख से उगले हुए रस में मक्खियों की -लार होती है । अत: उसके कारण त्रस जीव शहद में पैदा हुआ करते हैं । शहद खाने से उन असंख्य त्रस जीवों की हिंसा होती है | अतः - दयालु धार्मिक मनुष्य को शहद खाने का त्याग करना उचित है। उदुम्बर-फलश्याग आम, अनार, सेब, अंगूर आदि फल लगने से पहले उन वृक्षों पर बौर, फूल आते हैं । उन फूलों के झड़ जाने पर उनके स्थान पर फल लगते हैं । समस्त फलों की उत्पत्ति प्रायः इसी प्रकार हुआ करती है । परन्तु कुछ फल ऐसे भी हैं जो बिना फूल आये ही 'पेड़ों पर उत्पन्न हुआ करते हैं। उन फलों को उदुम्बर फल या अपने पेड़ के दूध से उत्पन्न होने के कारण उन्हें क्षीरी फल भी कहते हैं । २. पीपल पर लगने वाले फल, ३. गूलर, ४. ऊमर और बहुत-से फलों को तो तोड़ने पर उनमें से उड़ते हुए जीव स्पष्ट ऐसे फल ५ होते हैं - १. बड़ वृक्ष पर लगने वाले फल, ५. कठूमर (अंजीर ) । इन फलों के भीतर बहुत-से त्रस जीव होते हैं। दीख पड़ते हैं और कुछ फलों में सूक्ष्म जीव दिखाई भी नहीं देते। इस कारण इन उदुम्बर फलों के खाने से उन जस जीवों की हिंसा होती है। सूखे हुए उदुम्बर फलों में उनके भीतर के त्रस जीव भी मर जाते हैं। सूबे हुए त्रस जीवों का शरीर मांसमय होता है । अतः सूखे हुए उदुम्बर फल भी अभक्ष्य हैं । जो व्यक्ति धर्माचरण प्रारम्भ करता है उसको मद्य, मांस, मधु की तरह इन पांचों उदुम्बर फलों का भी त्याग करना चाहिए। इस तरह इन आठ अभक्ष्य वस्तुओं के त्याग रूप आठ मूल गुण प्रत्येक धार्मिक व्यक्ति को कड़ाई के साथ आचरण करने - चाहियें । जगत में असंख्य निर्दोष भक्ष्य पदार्थ हैं, मनुष्य की भूख और जीभ की स्वाद-लालसा मिटाने के लिये वे पर्याप्त हैं । इस दशा में इन आठों अभक्ष्य वस्तुओं के खाने-पीने का परित्याग करना समुचित है । अमृत-कण Jain Education International For Private & Personal Use Only i ३७ www.jainelibrary.org
SR No.210592
Book TitleJain Achar Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationArticle & Achar
File Size3 MB
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