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साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि
तो प्रश्न उठता है कि अरिष्टनेमि के पूर्व नमि मिथिला में हुआ। इस सम्बन्ध में मेरा उनसे निवेदन है कि मागधी के जन्मे थे, वासुपूज्य चम्पा में जन्मे थे, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ सम्बन्ध में 'प्रकृतिः शौरसेनी' - (प्राकृत प्रकाश १२/२)
और श्रेयांस काशी जनपद में जन्मे थे, यही नहीं प्रथम इस कथन की वे जो व्याख्या कर रहे हैं वह भ्रान्त हैं और तीर्थंकर ऋषभदेव और मर्यादा पुरुषोत्तम राम आयोध्या वे स्वयं भी शौरसेनी के सम्बन्ध में 'प्रकृतिः संस्कृतम्' में जन्मे थे। यह सारा क्षेत्र मगध का निकटवर्ती क्षेत्र ही (प्राकृत प्रकाश १२/२) इस सूत्र की व्याख्या में 'प्रकृतिः' तो है, अतः इनकी मातभाषा तो अर्धमागधी रही होगी। का जन्मदात्री - यह अर्थ अस्वीकार कर चुके हैं। इसकी भाई सुदीप जी के अनुसार यदि शौरसेनी अरिष्टनेमी विस्तृत समीक्षा हमने अग्रिम पृष्ठों में की है। इसके प्रत्युत्तर जितनी प्राचीन है, तो फिर अर्धमागधी तो ऋषभ जितनी
में मेरा दूसरा तर्क यह है कि यदि शौरसेनी प्राकृत ग्रन्थों प्राचीन सिद्ध होती है अतः शौरसेनी से अर्धमागधी प्राचीन
के आधार पर ही मागधी के प्राकृत आगमों की रचना
हुई, तो उनमें किसी भी शौरसेनी प्राकृत के ग्रन्थ का ही है।
उल्लेख क्यों नहीं हैं? श्वेताम्बर आगमों में वे एक भी यदि शौरसेनी प्राचीन होती तो सभी प्राचीन अभिलेख संदर्भ दिखा दें, जिनमें भगवती आराधना, मूलाचार, और प्राचीन आगमिक ग्रन्थ शौरसेनी में मिलने चाहिए - षटखण्डागम. तिलोयपण्णत्ति. प्रवचनसार. समयसार किन्तु ईसा की चौथी - पाँचवीं शती से पूर्व का कोई भी नियमसार आदि का उल्लेख हुआ हो। टीकाओं में भी ग्रन्थ और अभिलेख शौरसेनी में उपलब्ध क्यों नहीं होता? मलयगिरिजी ने मात्र ‘समयपाहुड' का उल्लेख किया है
इसके विपरीत मूलाचार, भगवती आराधना और षट्खण्डागम ___नाटकों में शौरसेनी प्राकृत की उपलब्धता के आधार
की टीकाओं में और तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि, पर उसकी प्राचीनता का गुणगान किया जाता है, मैं
राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक, आदि सभी दिगम्बर टीकाओं विनम्रतापूर्वक पूछना चाहूँगा कि क्या इन उपलब्ध नाटकों
में इन आगमों और नियुक्तियों के उल्लेख हैं, भगवती में कोई भी नाटक ईसा की चौथी-पाँचवी शती से पूर्व का
आराधना की टीका में तो आचारांग, उत्तराध्ययन कल्प है? फिर उन्हें शौरसेनी की प्राचीनता का आधार कैसे
तथा निशीथ से अनेक अवतरण भी दिये हैं। मूलाचार में माना जा सकता है। मात्र नाटक ही नहीं, वे शौरसेनी
न केवल अर्धमागधी आगमों का उल्लेख है, अपितु उनकी प्राकृत का एक भी ऐसा ग्रन्थ या अभिलेख दिखा दें, जो ।
सैकड़ों गाथाएँ भी हैं। मूलाचार में आवश्यकनियुक्ति, अर्धमागधी आगमों और मागधी प्रधान अशोक, खारवेल, आतरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, चन्द्रवेध्यक, उत्तराध्ययन, आदि के अभिलेखों से प्राचीन हो । अर्धमागधी के अतिरिक्त दशवैकालिक आदि की अनेक गाथाएँ अपने शौरसेनी जिस महाराष्ट्री प्राकृत को वे शौरसेनी से परवर्ती बता रहे शब्द रूपों में यथावत् पायी जाती हैं। हैं, उसमें हाल की गाथा सप्तशती लगभग प्रथम शती में
दिगम्बर परम्परा में जो प्रतिकमण सूत्र उपलब्ध हैं, रचित है और शौरसेनी के किसी भी ग्रन्थ से प्राचीन है।
उसमें ज्ञातासूत्र के उन्हीं १६ अध्ययनों के नाम मिलते हैं, ___मैं डॉ. सुदीप के निम्न कथन की ओर पाठकों का जो वर्तमान में श्वेताम्बर परम्परा में उपलब्ध ज्ञाताधर्मकथा ध्यान पुनः दिलाना चाहूँगा, वे प्राकृत विद्या जुलाई-सितम्बर में उपलब्ध हैं। तार्किक दृष्टि से यह स्पष्ट है कि जो ग्रन्थ '६६ में लिखते हैं कि दिगंबरों के ग्रंथ उस शौरसेनी जिन-जिन ग्रन्थों का उल्लेख करता है, वह उनसे परवर्ती प्राकृत में हैं, जिससे ‘मागधी' आदि प्राकृतों का जन्म ही होता है, पूर्ववर्ती कदापि नहीं। शौरसेनी आगम या
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जैन आगमों की मूल भाषा : अर्धमागधी या शौरसेनी ? |
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