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'उत्तरेण परिक्रम्म जम्बूद्वीपं दिवाकरः। जम्बूद्वीप की पूर्व दिशा में क्रमशः भागीरथी, सरयू देश्यों भवति भूयिष्ठं शिखरं तन्महोच्छमम् । आदि नदियाँ, ब्रह्ममाल, विदेह, मगध आदि देश
-(रामा. ४/४०/५८/५६) तत्पश्चात् लवणसमुद्र, यवद्वीप (जावा), सुवर्णरूप्यक / 'तेषां मध्ये स्थितौ राजा मेरुसत्तमपर्वतः ।' द्वीप (बोनियो', शिशिर पर्वत, शोणनद, लोहित।
-(रामा. /४२/३८) समुद्र, कूटशाल्मली, क्षीरोदसागर, ऋषभपर्वत, 'अन्वीक्ष्य परदाश्चैव हिमवन्तं विचिन्वय'
सुदर्शन तडाग, जलौद-सागर, कनकप्रभ पर्वत, उदय - (रामा. ४-४३-१२) पर्वत तथा सौमनस पर्वत । इसके पश्चात् पूर्व दिशा 'उत्तराःकुरवस्तत्र कृतपुण्यपरिश्रमाः ।'
अगम्य है । अन्त में देवलोक है। -(रामा. ४-४३-२८) ।
जम्बूद्वीप के दक्षिण दिशा में क्रमशः विन्ध्यपर्वत / जैन परम्परा में उत्तरकुरु को भोगभूमि कहा नर्मदा, गोदावरी आदि नदियाँ, मेखल, उत्पल, गया है। रामायण के तिलक टीकाकार भी उत्तर- दशार्ण, अवन्ती, विदर्भ, आन्ध्र, चोल, पाण्ड्य, केरल कुरु को भोगभूमि कहते हैं
आदि देश, मलय पर्वत, ताम्रपर्णी नदी, महानदो, KG 'तत आरम्य उत्तरकुरुदेशस्य भोगभूमित्वकथनम्' महेन्द्र, पुष्पितक, सूर्यवान्, वैद्य त एवं कुमार नामक
- (रामा० ४-४३-३८ पर तिलक टीका) पर्वत, भोगवती नगरी, ऋषभ पर्वत, तत्पश्चात् यम जैन साहित्य में भोगभूमि का जैसा वर्णन प्राप्त की राजधानी पितृलोक । होता है वैसा ही वर्णन उत्तरकुरु का रामायण के जम्बूद्वीप के पश्चिम में क्रमशः सौराष्ट्र, बाहबाईस श्लोकों (४-४३-३८ से ६०) में उपलब्ध है। लीक, चन्द्रचित्र (जनपद), पश्चिम समुद्र, सोमगिरि, उनमें से कुछ श्लोक इस प्रकार हैं
पारिमाल, वज्रमहागिरि, चक्रवात तथा वराह 'नित्यपुष्पफलास्तत्र नगाः पत्रस्थाकुलाः । (पर्वत) प्राग्ज्योतिषपुर, सर्व सौवर्ण, मेरु एवं अस्ता-13 दिव्यगन्धरसस्पर्शाः सर्वकामान स्रवन्ति च ।। चल (पर्वत) और अन्त में वरुण लोक। नानाकराणि वासांसि फलन्त्यन्ये नगोत्तमाः । इसी प्रकार जम्बूद्वीप के उत्तर में क्रमशः हिमसर्वे सुकृतर्माणः सर्वे रतिपरायणाः । वात् (पर्वत) भरत, कुरु, भद्र, कम्बोज, यवन, शक सर्वे कामार्थसहिता वसन्ति सहयोषितः ।। (देश), काल, सुदर्शन, देवसखा, कैलास, क्रौंच, 69 तत्र नामुदितः कश्चिन्मात्र कश्चिदात्प्रियः । मैनाक (पर्वत), उत्तरकुरु देश तथा सोमगिरि और अहन्यहविवर्धन्ते गुणास्तत्र मनोरमाः ।। अंत में ब्रह्मलोक ।।
-(रामा. ४-४३, ४३-५२) महाभारतीय भूगोल-महाभारत के भीष्म प्रो० एस० एम० अली, भूतपूर्व अध्यक्ष, भूगोल आदि, सभा, वन, अश्वमेघ एवं उद्योग पों में भारत विभाग, सागर विश्वविद्यालय, रामायणीय-जम्बू- का भौगोलिक वर्णन उपलब्ध है । तदनुसार जम्बूद्वीप की स्थिति पृथ्वी के बीच में मानते हैं जो कि द्वीप और क्रौंच द्वीप मेरु के पूर्व में तथा शक द्वीप भूगोल की जैन परम्परा से पर्याप्त मेल खाती है। मेरु के उत्तर में है।
रामायण के किष्किन्धाकाण्ड में जम्बूद्वीप का महाभारतीय भूगोल में पृथ्वी के मध्य में मेरु । जो वर्णन उपलब्ध होता है वह इस प्रकार है- पर्वत है। इसकी उत्तर दिशा में पूर्व से पश्चिम तक
१ श्री एस० एम० अली एफ० एन० आय० 'दि ज्याग्रफी आफ दि पुरान्स,' पीपुल्स पब्लीशिंग हाउस, नई
दिल्ली, १६४३, पृष्ठ २१-२३ । (संक्षिप्त रूप-'जियो० आफ पुराणास)' ।
पंचम खण्ड : जैन साहित्य और इतिहास : 538 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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