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________________ २३४ डा. हरीन्द्र भूषण जैन जैन परम्परा के अनुसार भी मेरु के उत्तर में तीन वर्षधर पर्वत हैं-नील, रुक्मी और शिखरी। दोनों (जैन-वैदिक) परम्पराओं में केवल नील पर्वतमाला का ही नाम सादृश्य नहीं है अपितु रुक्मी [श्वेत] और शिखरी [शृङ्गवान्] पर्वतमाला का भी नाम सादृश्य है। इन पर्वतों की आधुनिक भौगोलिक तुलना भी हम विभिन्न पर्वतमालाओं से कर चुके हैं। ___इन पर्वतमालाओं तथा उत्तरी समुद्र [आर्कटिक ओशन] अर्थात् लवण समुद्र के बीच क्रमशः, नील और श्वेत [रुक्मी] के बीच रम्यक या रमणक [जैन परम्परा में रम्यक] वर्ष, श्वेत और शृङ्गवान् [ जै० प० में शिखरी ] के बीच हिरण्यक [ जै० प० में हैरण्यवत् ] तथा शृङ्गवान् और उत्तरी समुद्र-लवण समुद्र के बीच उत्तरकुरु या शृङ्गासक [ जैन परम्परा में ऐरावत ] नाम के वर्ष क्षेत्र हैं।' जम्ब द्वीप का उत्तरी क्षेत्र सबसे पहले हम रम्यक क्षेत्र को लेते हैं । जैन परम्परा में भी इसका नाम रम्यक वर्षक्षेत्र है । इसके दक्षिण में नील तथा उत्तर में श्वेत पर्वत है। हमारी पहचान के अनुसार नील, नूरताउ-तुर्किस्तान पर्वतमालाएँ हैं और श्वेत, जरफशान-हिसार पर्वत मालाएँ हैं । - यह प्रसिद्ध है कि एशिया के भूभाग में अति प्राचीन काल में दो राज्यों की स्थापना हुई थी-आक्सस (Oxus River) नदी के कछार में बेक्ट्रिया राज्य (Bactria) तथा जरफशान नदी और कशका दरिया (River Jarafshan and Kashka Darya) के कछार में सोगदियाना राज्य ( Sogdiana ) आज से २५०० या २००० वर्ष पूर्व ये दोनों राज्य अत्यन्त घने रूप से बसे थे।। यहाँ के निवासी उत्कृष्ट खेती करते थे। यहाँ नहरें थीं। व्यापार और हस्तकला कौशल में भी ये राज्य प्रवीण थे। ऐसा कहा जाता है कि 'समरकंद' की स्थापना ३००० ई० पू० हुई थी। अतः ‘सोगदियाना' को हम मानव संस्थिति का सबसे प्राचीन संस्थान कह सकते हैं । 'सोगदियाना' का नील और श्वेत पर्वतमालाओं से तथा पड़ोसी राज्य, बेक्ट्रिया ( केतुमाल ), जिसका हम आगे वर्णन करेंगे, से विशेष संबंधों पर विचार करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि पौराणिका 'रम्यक' वर्ष प्राचीनकाल का 'सोगदियाना' राज्य है। बुखारा का एक जिला प्रदेश जिसका नाम 'रोमेतन' ( Rometan ) है, संभवतः 'रम्यक' का ही अपभ्रंश है। दूसरा क्षेत्र, जो कि श्वेत और शृङ्गवान् पर्वतमालाओं के मध्य स्थित है, हिरण्यवत् है ।। हिरण्यवत् का अर्थ है सुवर्णवाला प्रदेश। जैन परम्परा में इसे 'हैरण्यवत्' कहा गया है । इस क्षेत्र में बहने वाली नदी का पौराणिक नाम है 'हिरण्यवती' । आधुनिक जरफशान नदी इसी प्रदेश में बहती है । जैन परम्परा के अनुसार इस नदी का नाम सुवर्णकला है। यह एक महत्त्वपूर्ण बात है कि हिरण्यवती. सुवर्णकला और जरफशान तीनों के लगभग एक ही अर्थ हैं-हिरण्यवती का अर्थ है-जहाँ सुवर्ण प्राप्त हो, सुवर्णकूला का अर्थ है-जिसके तट पर सुवर्ण हो और जरफ शान का अर्थ है--सुवर्ण को फैलाने वाली ( Sea Heres of gold ). १. डा० एस० एम० अली Geo. of Puranas अध्याय ५ Regions of Jambu Dwip-Northernal Regions पृ० ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210512
Book TitleJambudwip aur Adhunik Bhaugolik Manyatao ka Tulnatmaka Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherZ_Parshvanath_Vidyapith_Swarna_Jayanti_Granth_012051.pdf
Publication Year1994
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & Comparative Study
File Size791 KB
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