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________________ -- यतीन्द्रसूरी स्मारक ग्रन्थ : इतिहासआदि को छोड़कर) ने न तो स्वयं कोई ग्रन्थ लिखा है और न ही मुनि कल्याणविजयगणि, संपा., श्री पट्टावलीपरागसंग्रह किन्हीं ग्रन्थों की प्रतिलिपि कराई, बल्कि प्रतिमाप्रतिष्ठापक के (कल्याणविजय शास्त्रसंग्रह-समिति, जालोर, ई.सन् 1966) रूप में अपनी भूमिका निभाते रहे। धनेश्वरसूरि, भुवनचन्द्रसूरि, देवभद्रसूरि और जगच्चन्द्रसूरि को छोड़कर इस गच्छ में ऐसा 3. A.P. Shah Catalogue of Sanskrit and Prakrit Mss Muni Shri Punyavijayajis Collection (L.D. कोई प्रभावक आचार्य भी नहीं हुआ, जो श्वेताम्बर श्रमणपरंपरा Series No. 2, Ahamedabad, 1963 A.D.) Part I, P.P. में विशिष्ट स्थान प्राप्त कर सकता / ई. सन् की 18 वीं शताब्दी 131, No.2554 के प्रथम चरण के बाद इस गच्छ से संबद्ध साक्ष्यों के अभाव से यह सुनिश्चित है कि इस समय के बाद इस गच्छ का स्वतंत्र 4. |bid, Part I, P 93, No. 1464 अस्तित्व समाप्त हो गया और इस गच्छ के अनुयायो किन्ही 5 bid. part I p83.No. 1018 अन्य गच्छों में सम्मिलित हो गए होंगे। 6. द्रष्टव्य, पादटिप्पणी, क्रमांक 2 सन्दर्भ 7. त्रिपुटी महाराज, जैनतीर्थोनो इतिहास, (श्री चारित्र-स्मारक 1. अगरचन्द्र नाहटा-'जैन-श्रमणों के गच्छों पर संक्षिप्त ग्रन्थमाला, अहमदाबाद, 1949 ई.) पृष्ठ 385 और आगे. प्रकाश' यतीन्द्रसरि-अभिनंदन-ग्रन्थ (आहोर, 1958 8. G.C. Choudhary. Political History of Northern Inई.) पृष्ठ 147 पर श्री नाहटा द्वारा उद्धृत मुनि बुद्धिसागर का dia (Sohanlal Jaindharma Pracharak Samiti, मत। Amritsar, 1954 A.D.) P.P. 172-173. मुनि कान्तिसागर, शत्रुञ्जय वैभव (कुशल संस्थान, जयपुर, 9. पूरनचन्द्र नाहर, सम्पा. जैनलेखसंग्रह, भाग-२ (कलकत्ता 1990 ई.) पृष्ठ 269 1927 ई.), लेखाङ्क 1942 तथा 2. तपागच्छीय देवेन्द्रसूरि-कृत श्राद्धदिनकृत्यप्रकरण की विजयधर्मसूरि, संग्राहक-प्राचीनलेखसंग्रह (यशोविजय जैन प्रशस्ति Muni Punyavijay- Catalogue of Palm Leaf . ग्रंथमाला, भावनगर, 1929 ई.) लेखाङ्क 39. Manuscripts in the Shanti Nath Jain Bhandara, 10. मुनि जयन्तविजय, संपा., अर्बुद प्राचीन जैन, लेख-संदोह Canbay (g.o.s. no. 149 Part two, Baroda, 1966, A.D.) PP 263-265. उज्जैन वि.सं. 1994) लेखाङ्क 535. तपागच्छीय क्षेमकीर्तिसूरिकृत बृहत्कल्पसूत्रवृत्ति (रचनाकाल वि.सं. 1322/ ई. सन् 1256) की प्रशस्ति। 11. त्रिपुटी महाराज-जैन तीर्थोनों इतिहास, पृष्ठ 385 और आगे C. D. Dalal -A. Desciptive Catalogue of Manu- 12. मुनि बुद्धिसागरसूरि संपा., जैन धातुप्रतिमालेखसंग्रह भागscripts in the jain Bhandars at pattan (G.O.S. 2, (श्री अध्यात्मज्ञानप्रसारक-मंडल, पादरा, ई. सन् 1924) No. LXXVI, Baroda, 1937 A.D.) PP 354-356. लेखाङ्क 754 तपागच्छीय विभिन्न पावलियों के सन्दर्भ में दृष्टव्य 13. आचार्य विजयधर्मसूरि-पूर्वोक्त, लेखाङ्क 428-429 त्रिपुटी महाराज, संपा., पट्टावलीसमुच्चय, भाग-१-२ 14. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ 57-71. (चारित्र-स्मारक, ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क, 22 एव 44, 15 मनि जिनविजय-संपा.. प्राचीन जैनलेखसंग्रह. भाग-२. अहमदाबाद 1933-1950 ई.) (जैन आत्मानंद, सभा, भावनगर, 1921 ई.) लेखाङ्क 398. मुनि जिनविजय, संपा.,विविधगच्छीयपट्टावली-संग्रह पूरनचंद नाहर, पूर्वोक्त, भाग-१, लेखाङ्क 830. (सिंधी जैन-ग्रन्थमाला, ग्रन्थाङ्क 53, बंबई 1961 ई.) 16. द्रष्टव्य, पादटिप्पणी, क्र.५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210491
Book TitleChaitra Gaccha ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year1999
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Sangh
File Size2 MB
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