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चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति का पर्यवेक्षण प्राणि जगत् के आह्लाद का जनक चन्द्र है इसलिए चन्द्र दर्शन की परम्परा प्रचलित है।
चन्द्र के पर्यायवाची अनेक हैं उनमें कुछ ऐसे पर्यायवाची हैं जिनसे इस पृथ्वी के समस्त पदार्थों से एवं पुरुषों से चन्द्र का प्रगाढ़ सम्बन्ध सिद्ध है।
कुमुद बान्धव जलाशयों में प्रफुल्लित कुमुदिनी का बन्धु चन्द्र है इसलिए यह "कुमुद बान्धव" कहा जाता है।
कलानिधि चन्द्र के पर्याय हिमांशु, शुभ्रांशु, सुधांशु की अमृतमयी कलाओं से कुमुदिनी का सीधा सम्बन्ध है। इसकी साक्षी है राजस्थानी कवि की सूक्ति
दोहा-जल में बसे कुमुदिनी, चन्दा बसे आकाश । जो जाहु के मन बसे, सो ताहु के पास ।।
औषधीश जंगल की जड़ो-बूटियाँ "औषधि" हैं - उनमें रोगनिवारण का अद्भुत सामर्थ्य सुधांशु की सुधामयी रश्मियों से आता है।
___ मानव आरोग्य का अभिलाषी है, वह औषधियों से प्राप्त होता है इसलिए औषधोश चन्द्र से मानव का घनिष्ट सम्बन्ध है ।
निशापति निशा = रात्रि का पति-चन्द्र है। श्रमजीवी दिन में "श्रम" करते हैं और रात्रि में विश्राम करते हैं।
आह्लादजनक चन्द्र की चन्द्रिका में विश्रान्ति लेकर मानव स्वस्थ हो जाता है। इसलिए मानव का निशानाथ से अति निकट का सम्बन्ध सिद्ध होता है। जैनागमों में चन्द्र के एक "शशि" पर्याय की ही व्याख्या है।
१. ससी सदस्स विसिट्टऽत्थं.... प्र० से केणट्टेणं भंते । एवं वुच्चइ-चंदे ससी, चंदे ससी ? उ० गोयमा ! चंदस्स णं जोइसिंदस्स जोइसरण्णो मियंके विमाणे, कंता देवा कंता देवा कंताओ,
देवीओ कताई आसण सयण-खंभ भंडमत्तोवगरणाई, अप्पणा वि य णं चंदे जोतिसिंदे जोइसराया सोमे कंते सुभए पियदंसणे सुरूवे, से तेणट्रेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-"चंदे ससी चंदे ससी"।
भग. सू. १२, उ. ६. सु. ४ । शशि शब्द का विशिष्टार्थप्र० हे भगवन् ! चंद्र को "शशि" किस अभिप्राय से कहा जाता है ? उ० हे गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र के मृगांक विमान में मनोहर देव, मनोहर देवियां,
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