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________________ गुहा मन्दिर और विशाल तीर्थकर प्रतिमा समूह भार- बहुत प्रसार हुआ। वि. सं. 1314 से 1324 के तीय पुरातत्व की अद्वितीय उपलब्धि हैं। बाबर के मूर्तिलेखों युक्त सैकड़ों जैन मूर्तियाँ नरवर में प्राप्त शासन काल में खण्डित ये जैन प्रतिमाएँ आज भी हुई हैं। जज्ववेल राजाओं के अधिकांश शिलालेखों के आकर्षक एवं मनोज्ञ स्वरूप लिये हैं तथा इनका अत्य- प्रशस्तिकार जैन मुनि हैं। यहाँ के बड़े जैन मन्दिर में धिक ऐतिहासिक एवं पुरातत्विक महत्व है। उरवाई वि. सं. 1475 (सन् 1418 ई.) का एक ताम्रपत्र द्वार पर स्थित आदिनाथ की प्रतिमा इस सम्पूर्ण मध्य भी उपलब्ध है जिसमें महाराजाधिराज वीरमेन्द्र तथा भारतीय क्षेत्र में स्थित विशालतम प्रतिमा है तथा एक उनके मंत्री साधु कुशराज का उल्लेख है। नरवर के पत्थर की बावड़ी पर स्थित गुहा मन्दिर एवं विशाल जैन मन्दिरों में जैन साहित्यकारों की अनेकों प्राचीन मूर्तियों का समूह देश में अद्वितीय है। इतनी विशाल रचनाएँ व धर्मग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं जो इस क्षेत्र में प्रतिमाएँ इतनी बड़ी संख्या में एक स्थान पर एक साथ जैन संस्कृति के विकास के अध्ययन की दृष्टि से महत्वकहीं नहीं मिलती। पूर्ण हैं। ग्वालियर में बने जैन मन्दिरों में भी अनेकों प्राचीन च चन्देरी (गुना)एवं भव्य मन्दिर हैं, जिनमें प्राचीन प्रतिमाएँ एवं गुना जिले में चन्देरी और तुमैन जैन कला के साहित्य उपलब्ध है । इस प्रकार ग्वालियर नगर स्वयं महत्वपूर्ण केन्द्र थे। चन्देरी में अनेकों प्राचीन एवं भी जैन संस्कृति का एक प्रमुख केन्द्र रहा है तथा उसके विशाल जैन मन्दिर स्थित हैं। चन्देरी और उसके सांस्कृतिक विकास में जैनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही समीपवर्ती क्षेत्र में इस काल की पाषाण मूर्तियाँ बहुत बड़ी संख्या में प्राप्त हुई हैं। उनमें तीर्थंकरों और नरवर देवियों के अतिरिक्त अन्य मूर्तियाँ भी हैं, जिनमें बहुत-सी अभिलिखित हैं। लगभग 1400 ई. में चन्देरी पट्र की शिवपूरी जिले में शिवपुरी से 40 किलोमीटर स्थापना हुई। श्री भटारक देवेन्द्र कीर्ति और उनके उत्तर-पूर्व स्थित नरवर नगर नल और दमयन्ती के उत्तराधिकारियों ने उस क्षेत्र में जैन धर्म के प्रसार में काल में नल द्वारा बसाया गया नगर माना जाता है। महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। विदिशा जिले का सिरोंज, प्राचीन उल्लेखों में इसे नलपुर कहा गया गया है । यहाँ चन्देरी के भट्रारकों के कार्यक्षेत्र में आता था। इन अनेक जैन मन्दिरों और मूर्तियों का निर्माण हुआ । इन मन्दिरों में बहुत-सा प्राचीन साहित्य एवं अभिलेख भी मन्दिरों और मूर्तियों के उपयोग में आए श्वेत पाषाण उपलब्ध है। पर यहाँ इतना अच्छा पालिश किया गया कि वह संगमरमर-सा दिखता है। नरवर के यज्वपाल, गोपाल उपलब्ध प्रचुर सामग्री के संरक्षण एवं शोध की आवश्यकतादेव और आसल्ल देव नामक राजाओं ने कला के विकास में व्यापक योग दिया। तेरहवीं और चौदहवीं इस प्रकार ग्वालियर और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों शताब्दी में नरवर और इसके आसपास जैन धर्म का में जैन संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार रहा है, और 5. जैन कला एवं स्थापत्य, खण्ड 1, भाग 6, भारतीय ज्ञानपीठ; वास्तु स्मारक एवं मूर्तिकला (1300 से 1800 ई.) अध्याय 27-मध्य भारत, पृष्ट 356 । 6. जैन कला एवं स्थापत्य, खण्ड 2, भाग 6, वास्तु स्मारक एवं मूर्तिकला (1300 से 1800 ई.) अध्याय 27, मध्य भारत पृष्ठ 356 भारतीय ज्ञानपीठ । ३२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210469
Book TitleGwalior evam uske Nikatvarti Kshetro me Sthit Jain Sanskrutik Kendra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV V Lal
PublisherZ_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
Publication Year
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Culture
File Size2 MB
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