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प्राचीन ग्रन्थों में नाग सम्राटों की राजधानी क्रान्तिपुरी इसी नगरी का ऐतिहासिक नाम है । यहाँ स्थित माता के मन्दिर के चारों ओर तथा निकटवर्ती अन्य मन्दिरों में पहली से पन्द्रहवीं शताब्दी के मध्य पुरातत्विक अवशेष भरे पड़े हैं, इनमें अनेकों जैन धर्म से सम्बन्धित हैं, अभी तक इन पर पर्याप्त शोध के अभाव में इनके बारे में बहुत से तथ्य अज्ञात हैं । यहीं ग्वालियर के तोमर राजा वीरमदेव के समय में बना विशाल एवं भव्य चैत्रनाथ मूर्ति समूह अभी भी सुरक्षित है । इसमें चैत्रनाथ की जैन मूर्ति पर वि. सं. 1467 ( सन् 1410 ई.) का एक शिलालेख अंकित है ।
बकुण्ड ( श्यौपुर ) -
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मुरैना जिले में ही श्योपुर तहसील में स्थित दूवकुण्ड नामक स्थान भी जैन संस्कृति का प्राचीन केन्द्र रहा है । यहाँ भी कई प्राचीन जैन मूर्तियों के अवशेष प्राप्त होते हैं । यहाँ प्राप्त वि. सं. 1145 ( सन 1088 ई.) के विक्रमसिंह के शिलालेख से प्रतीत होता
है कि इस क्षेत्र के कच्छपघात राजाओं का प्रश्रय भी जैन सूरियों को प्राप्त हुआ था । शान्तिषेण सूरि और उनके शिष्य विजयकीर्ति द्वारा एक प्रशस्ति लिखी गई थी ।" यहाँ के जैन मन्दिर के शिलालेख वि. सं. 1152 (सन् 1095 ई.) से ज्ञात होता है कि यहाँ काष्ठा संघ के महाचार्यवर्य श्री देवसेन के पादुका चिन्ह की पूजा होती थी । "
पवाया (पद्मावती) --
ग्वालियर जिले में डबरा के निकट स्थित पवाया नामक ग्राम ऐतिहासिक दृष्टि से इस सारे क्षेत्र में स्थित
प्राचीनतम नगरों में से एक है । अनेकों इतिहासकारों के अनुसार भारतीय वेदों में वर्णित पद्मावती नामक ऐतिहासिक नगरी यही पवाया हैं । यहाँ अत्याधिक प्राचीन पुरातत्विक सम्पदा उपलब्ध है । उपलब्ध अवशेषों में से कुछेक इस क्षेत्र में जैन संस्कृति के प्रचुरतापूर्ण प्रसार की साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं । यहाँ उपलब्ध प्राचीन अवशेषों पर अभी पर्याप्त शोध की आवश्यकता है । यहाँ प्राप्त मूर्तियों में एक मूर्ति विचित्र प्रकार की उपलब्ध हुई है जिसमें एक व्यक्ति अपने सिर के ऊपर एक ध्यानस्थ नग्न आकृति की प्रतिमा को विराजमान किये हुए है। यह प्रतिमा जैन प्रतिमा प्रतीत होती है, जो अब तक उपलब्ध प्रतिमाओं की तुलना में विचित्रताएँ लिये हुए एवं अनूठी है । इसके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रतिमाएं आदि भी उपलब्ध हैं ।
अमरौल तथा सोहजना -
ग्वालियर जिले में ही ग्वालियर के दक्षिण पूर्व में
स्थित अन्य ग्राम अमरौल में भी अनेकों उल्लेखनीय प्रतिमाएँ उपलब्ध हुई हैं । इनमें पूर्व मध्यकाल की पार्श्वनाथ और आदिनाथ की प्रतिमा का सूक्ष्मता के साथ प्रतिरूपण हुआ है जिसमें तीर्थंकर के चारों ओर यक्षों की वामन आकृतियां पद्म पीठों पर सुखासन मुद्रा में बैठी हुई दर्शायी गयी हैं । पद्मपीठ कमलपत्रावली द्वारा भव्य रूप से अलंकृत 14
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ग्वालियर -
ग्वालियर नगर स्वयं भी जैन संस्कृति के प्राचीनतम केन्द्रों में से एक । यहाँ जैन संस्कृति से सम्बन्धित
1.
आर्को सर्वे रि. भाग 2, पृ. 396 1
2. ग्वालियर राज्य अभिलेख, क्र. 54
3. ग्वालियर राज्य अभिलेख, क्र. 58 1
4. जैनकला एवं स्थापत्य, खण्ड 1, भारतीय ज्ञानपीठ, भाग 4, वास्तु स्मारक एवं मूर्तिकला ( 600 से 1000 ई. | अध्याय 16, मध्य भारत कृष्णदेव । पृ. 177-78
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