________________ गुणस्थान-विश्लेषण | 255 000000000000 000000000000 F 30 तहियाणं तु मावाणं सब्भावे उवएसणं / भावेण सद्दहंतस्स सम्मत्तं तं विहाइयं / - उत्तरा० 28-15 / 31 तत्त्वार्थाधिगम, भाष्य पृ० 10-14 / 32 सत्तण्हं उबसमदो, उवसमसम्मो खया दु खइयो य / वितियकसायुदयादो असंजदो होइ सम्मो य ।।-गो० जी० 26 33 स्थिरायां दर्शनं नित्यं, प्रत्याहारवदेव च / कृत्यमभ्रान्तमनवद्य सूक्ष्म बोध समन्वितं // (योगदृष्टि सं० 52 हरिभद्र) 34 जो तसबहाउ विरदो अविरदओ तय थावरबहादो। एक्कसमयम्हि जीवो, विरदाविरदो जिणेक्कमई ।।-गो० जी० 31 35 संजलण णोकसायाणुदयादो संजमो हवे जम्हा / मलजणण पमादो वि य, तम्हाहु पमत्त विरदो सो ॥-गो० जी० 32 विकहा तहा कसाया इंदियणिद्दा तहेव पणयो (प्रणयस्नेह) य / चदु चदु पणगेगं होंति पमादा हु पण्णरस / / - गो० जी० 34 वा अज्ञान, संशय, मिथ्याज्ञान, मतिभ्रंश, धर्म मा अनादर राग, द्वेषयोगकादुष्प्रणिधान / 37 संजलणणो कसायाणुदओ मंदो जदा तदा होदि / अपमत्त गुणो तेणय, अपमत्तो संजदो होदि ।।-गो० जी० 45 38 णट्ठासेसपमादो, वयगुणसीलेलि मंडिओ णाणी। अणुवसमओ अखवओ झाणणिलोणोहु अपमत्तो ॥४५॥-गो० जी० 36 भिण्णा समयट्ठियेहिंदु, जीवेहिं ण होदि सब्बदासरिसो। करणेहिं एक्कसमयटिठ्येहि सरिसोविसरिसो वा ॥-गो० जी० 52 40 एदह्मि गुणट्ठाणे विसरिससमयट्ठियेहि जीवेहि / पुव्वमपत्ता जह्मा, होति अपुव्वा हु परिणामा ॥-गो० जी० 51 41 (अ) गुणसेढीदलरयणाऽणु समयमुदयादसंख गुणणाए / एय गुणापुण कमसो असंखगुण निज्जरा जीवा ||-कर्मग्रन्थ, देवेन्द्र सूरि, भाग 5 / 83 (आ) उवरिल्लिओ द्वितिउ पोग्गलधेतूण उदयसमये थोवा / पक्खिवति, वितियसमये असंखेज्ज गुणा जीव अन्तोमुहुत्तं // (इ) टीका यशोविजय-अधुनागुणश्रेणिरूपमाह यत्तिस्थिति कण्डक घातयति तन्मध्यादलिक गृहीत्वा उदयसमयादार भ्यानन्तर्मुहर्त समयं यावत् प्रतिसमयमसंख्येय गुणनयाअतिक्षिपति ।-कम्मपयडि-उपशमनद्वार / 42 एकालिकाल समये संठाणादीहिं जहंणिवट्टति ण / णिवट्टन्ति तहावियपरिणामेहिमिहो जेहिं // होति अणियट्टिणो ते अंडिसमय जोसिमेक्क परिणामा / विमलवर झाण हुयवह सिहाहिंसद्दिढकम्मवणा ॥-गो० जी० 56-57 43 धुदकोसुंमयवत्थं, होदि जहा सुहमराय संजुत्त / एवं सुहुम कसाओ, सुहुम-सरागोति णादव्वो।-गो० जी० 58 44 कदक्कं फलजुदजलं वा सहरासरवाणियं व णिम्मलयं / सयलोवसंतमोहो, उवसंत कसायओहोदि ॥-गो० जी० 56 45 अण दंसणसगइत्थि वेद छक्कं च पुरिस वेतं च / दो दो एगंतरिते सरिसेसरिसं उवसमेति ॥-वि० भा० 1285 46 तत्तो य दंसण त्तिगं तओऽणुइण्णं जहन्नखेयं / ततोवीयं छक्कं तओय वेयं सयमुदिन्तं ।।-वि० मा० 1285 47 अणमिच्छमीससम्मं तिआउइग विगल थीणतिगुज्जोवं। तिरिनरयथावरदुगं साहारायवअड नपुत्थिए ।-कर्मग्रन्थ, देवेन्द्र सूरि 5266 Jamunicatiomintment