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४५. पं. जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड
का उल्लेख है। यहां महत्त्व की बात यह है कि उन्हें किसी 'नूलचन्दिल' राजवंश का कहा गया है। गोल्लाचार्य के गरु का उल्लेख नहीं है, पर उन्हें महेन्द्रकीति के शिष्य वीरणंदी की परम्परा में बताया गया है। यहां गोल्लाचार्य की शिष्य परम्परा उपरोक्त (२) के अनुसार दी गई है ।
सतिगन्धावरण वसति के मंडप में शक् १०६८ (ई० ११४६) के लेख में उपरोक्त मेधचन्द्र विद्य की परम्परा में हुए प्रभाचन्द्र का उल्लेख है। इस लेख में वे प्रथम ४१ पद्य नहीं हैं जो एरडुकट्टे वसति के लेख में हैं । इनमें गोल्लाचायं सम्बन्धी श्लोक भी है।
कर्णाटक में ही एक अन्य स्थान में एक भग्न स्तम्भ पर बारहवीं सदी का एक लेख है। इसमें गोल्लाचार्य, उनके शिष्य गुणचन्द्र व उनके शिष्य इन्द्रनन्दि, नन्दिमुनि व कन्ति का उल्लेख है। लेख या उसका शब्दशः अनुवाद उपलब्ध नहीं हो सका है।
फलतः यहाँ पर इतना जान लेना पर्याप्त है कि गोल्लाचार्य गोल्लादेश के थे व नत्लचंदिल वंश के थे। चंदिल स्पष्ट ही चंदेल का रूपान्तर है। इसी प्रकार से खण्डेलवाल को खडिल्लवाल कहा गया है । नूल नन्नुक का रूपान्तर जान पड़ता है, ये चंदेल राजवंश के स्थापक माने गये हैं। अतः गोल्ल या गोल्लादेश चंदेलों के राज्य में होना चाहिये । गोल्लापूर्व गोलालारे व गोलसिंघारे जातियों का मूल स्थान
इन जैन जातियों के बारे में ऐसा माना जाता रहा है कि इनका प्राचीन काल में कुछ सम्बन्ध था। आगे के अध्ययन से स्पष्ट है, यह धारणा सही मालूम होती है। इसके इतिहास के अध्ययन से गोल्लादेश के निर्धारण में भी मदद मिलती है।
किसी भी जाति के प्राचीन निवासस्थान को जानने के लिये निम्न विन्दुओं का अध्ययन उपयोगी है :
१. जाति के नाम का विश्लेषण : जातियों के अध्ययन से यह मालूम होता है कि लगभग सभी जातियों का नाम स्थानों के नाम पर आधारित है। उदाहरणार्थ, अग्रवाल अगरोहा (अग्रोतक) के, श्रीमाल (ब्राह्मण व बनिया) श्रीमाल के, श्रीवास्तव (कायस्थ आदि) श्रावस्ती के, जुझौतिया ब्राह्मण जुझौत (जैजाकभुक्ति) के वासी रहे हैं । इस कारण एक ही स्थान से निकली कई वर्ग की जातियों का नाम एक ही है। उदाहरण के लिये :
कनौजिया (कान्यकुब्ज) : ब्राह्मण, अहीर, बहना, भड़भूजा, भाट, दहायत, दर्जी, धोबी, हलवाई, लुहार, माली, नाई, पटवा, सुनार व तेली।
जैसवाल (जैस, जिला रायबरेली): बनिया, बरई (पनवाड़ी), कुरमी, कलार, चमार व खटोक । श्रीवास्तव (श्रावस्ती) : कायस्थ, भड़भूजा, दर्जी, तेली । खंडेलवाल (खंडेला) : ब्राह्मण, बनिया। बघेल (बघेलखंड) : भिलाल, गोंड, लोधी, माली, पंवार ।
२. बोली: जब एक जाति के लोग अन्यत्र जाकर बस जाते है, तब कई पीढ़ियों तक अपने पूर्वजों की भाषा का प्रयोग करते रहते हैं।
३. विस्थापन की दिशा: बहुत से परिवारों में सौ या दो सौ वर्ष पूर्व के पूर्वजों के स्थान की स्मृति बनी रहती है। एक ही जाति के अनेक परिवारों के इतिहास से यह मालूम हो सकता है कि यह किस दिशा से आकर बसी है।
४. वर्तमान में निवास : किसी जाति के दूर-दूर तक फैल जाने पर भी अक्सर उसके केन्द्रीय स्थान में उसका निवास बना रहता है। उदाहरणार्थ, हरियाणा के आसपास आज भी अग्रवाल काफ़ी संख्या में हैं।
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