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समृद्धमभजद्राज्यं स समस्तनयामलम् । कामोव कामिनीकायं स समस्तनयामलम् ॥ १५४ राजीमती - राजीमती काव्य की अभागी नायिका है | वह शीलसम्पन्न तथा अतुल रूपवती है । उसे नेमिनाथ की पत्नी बनने का सौभाग्य मिलने लगा था, किन्तु क्रूर विधि ने, पलक झपकते ही उसकी नवोदित आशाओं पर पानी फेर दिया। विवाह में भोजनार्थ भावी व्यापक हिंसा से उद्विग्न होकर नेमिनाथ दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं । इस अकारण निकरारण से राजीमती स्तब्ध रह जाती है । बन्धुजनों के समझाने-बुझाने से उसके तप्त हृदय को सान्त्वना तो मिलती है, किन्तु उसका जीवन - कोश रीत चुका है । अन्तत: वह केवलज्ञानी नेमिनाथ की देशना से परमपद को प्राप्त करती है ।
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उग्रसेन - भोजपुत्र उग्रसेन का चरित्र मानवीय गुणों से ओतप्रोत है । वह उच्चकुलप्रसूत नीतिकुशल शासक है । वह शरणागत वत्सल, गुणरत्नों की निधि तथा कीर्तिलता का कानन है । लक्ष्मी तथा सरस्वती, अपना परम्परागत द्वेष छोड़ कर उसके पास एक साथ रहती हैं । विपक्षी नृपगण उसके तेज से भीत होकर कन्याओं के उपहारों से उसका रोष शान्त करते हैं ।
अन्य पात्र
शिवादेवी नेमिनाथ की माता है । काव्य में उसके चरित्र का पल्लवन नहीं हुआ है। प्रतीकात्मक सम्राट मोह तथा संयम राजनीतिकुशल शासकों की भांति आचरण करते हैं । मोहराजदूत कैतव को भेजकर संयम नृपति को नेमिनाथ का हृदय दुर्ग छोड़ने का आदेश देता है । दूत पूर्ण निपुणता से अपने स्वामी का पक्ष प्रस्तुत करता है । संयमराज का मन्त्री शुद्ध विवेक दूत की उक्तियों का मुँहतोड़ उत्तर देता है ।
प्रकृति चित्रण - नेमिनाथकाव्य के प्रकृति को व्यापक स्थान प्राप्त हुआ है।
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विस्तृत फलक पर वस्तुत: नेमिनाथ
महाकाव्य की भावसमृद्धि तथा काव्यमत्ता का प्रमुख कारण इसका मनोरम प्रकृति-चित्रण है । कीर्तिराज ने महाकाव्य के अन्य पक्षों की भाँति प्रकृति-चित्रण में भी अपनी मौलिकता का परिचय दिया है । कालिदासोत्तर महाकाव्यों में प्रकृति के उद्दीपन पक्ष की पार्श्वभूमि में उक्ति वैचित्र्य के द्वारा नायक-नायिकाओं के विलासितापूर्ण चित्र अङ्कित करने की परिपाटी है। प्रकृति के आलम्बन पक्ष के प्रति वाल्मीकि तथा कालिदास का सा अनुराग अन्य संस्कृत कवियों में दृष्टिगोचर नहीं होता । कीर्तिराज ने यद्यपि विविध शैलियों में प्रकृति का चित्रण किया है, किन्तु प्रकृति के सहज-स्वाभाविक चित्र प्रस्तुत करने में उनका मन अधिक रमा है और इन स्वभावोक्तियों में ही उनकी काव्यकला का उत्कृष्ट रूप व्यक्त हुआ है ।
प्रकृति के आलम्बन पक्ष के चित्रण में कीर्तिराज ने सूक्ष्म पर्यवेक्षण का परिचय दिया है । वर्ण्यविषय के साथ तादात्म्य स्थापित करने के पश्चात् प्रस्तुत किये गये ये चित्र अद्भुत सजीवता से स्पन्दित हैं । हेमन्त में दिन क्रमशः छोटे होते जाते हैं तथा कुहासा उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है । उपमा की सुरुचिपूर्ण योजना के द्वारा कवि ने हेमन्तकालीन इस प्राकृतिक तथ्य का मार्मिक चित्र afisa fear है ।
उपययौ शनकैरिह लाघवं दिनगणो खलराग इवानिशम् । ववृधिरे च तुषारसमृद्धयोऽनुसमयं सुजनप्रणया इव ॥ ८४८
शरत्कालीन उपकरणों का यह स्वाभाविक चित्र मनोरमता से ओतप्रोत है ।
आपः प्रसेदुः कलमा विपेचुर्ह साश्च कूजुर्जहसुः कजानि । सम्भूय सानन्दमिवावतेरु: शरद्गुणाः सर्वजलाशयेषु ||८८२
इस श्लेषोपमा में शरत का समग्र रूप उजागर करने में कवि को आशातीत सफलता मिली है ।
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