________________ कामनाओं का अन्त करना ही दुःख का अन्त करना है मानव मुनि भगवान महावीर के समय में धर्म के नाम पर यज्ञों में पशुओं की और कभी कभी मनुष्यों की भी बलि दी जाती थी। यज्ञों में जो बलि दी जाती है, वह हिंसा नहीं है, क्योंकि यज्ञों से धर्म होता है, यह अन्धविश्वास था। भगवान महावीर के द्वारा ही अहिंसा के प्रचार के कारण इस बलि प्रथा में बहुत कमी हुई है, फिर भी किसी न किसी रूप में यह बलि प्रथा आज चली जा रही है, हिन्दू अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिये बलि देते हैं। क्या इस प्रकार से बलि देना उचित है ? क्या इससे धर्म होता है ? आज भी हमें कभी समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलता है कि अमुक व्यक्ति ने सन्तान पाने की इच्छा से एक बालक की बलि दे दी, अमुक व्यक्ति ने धन पाने की इच्छा से एक मनुष्य की बलि दे दी। इन उपरोक्त तथ्यों से साबित हो जाता है कि बलि देने और कुर्बानी देने का तात्पर्य तो यही है कि दुर्भावनाओं की, अपनी झूठी माया ममता की, अपनी विषय वासनाओं की और अपने अन्दर छिपी पशुवृत्ति की बलि दो, ऐसा करने से ही आत्मा पवित्र व उन्नत होगी, और सच्चे सुख का मार्ग प्रशस्त होगा। निर्दोष मूक पशुओं की बलि धर्म के नाम पर करना अन्धविश्वास है, अज्ञानता है, महापाप बन्धन को बांधना है। इसलिये सभी धर्मों में अहिंसा परधोधर्म माना है। हिंसा कभी भी धर्म नहीं हो सकती, विश्व के सभी प्राणी वे चाहे कोई भी हों, मरना नहीं चाहते, सबको अपना जीवन प्यारा है। स्वयं भी जियो और दूसरों को भी जीने दो। इन नियमों को मानने वाले संसार में सब ओर शांति, प्रेम, अभय और विश्वास का वातावरण होगा। अहिंसक आचरण धर्म ही नहीं है, यह जीने की कला है, जिसमें हमें स्वयं को सुख मिलता है, और दूसरों को भी। भगवान महावीर ने बताया है कि अहिंसा का पालन करना तो धर्म है ही, पर दूसरों के कष्ट को दूर करने के लिये हमको कुछ त्याग करना पड़ता है। अपने समय का त्याग, अपने धन का त्याग, अपने सुख का त्याग, जैसे किसी रोगी व्यक्ति की सेवा करना, उसको अपने धन से दबा दिलाना, इसी प्रकार कसाई से प्राणी को मुक्त करवा कर अभय दान देना, पशु बलि बन्द करवाना धन का सद्उपयोग करना है। इच्छा आकाश के समान अनन्त है, तृष्णा से ही हिंसा होती है, अन्याय अत्याचार होता है, इसलिये भगवान महावीर ने कहा है कि "कामनाओं का अन्त करना ही दुःख का अन्त करना है।" भगवान महावीर के सपूतों उठो। आगे कदम बढ़ाओ व अहिंसा परमोधर्म का ध्वज हाथ में उठाओ व दुन्दुभि बजाओ। ताकि अब विज्ञान का युग है, हिंसा नहीं होगी, शोषण नहीं होगा, अनीति अत्याचार नहीं होंगे, व्यापार में व्यवहार शुद्धि होगी, मिलावट नहीं होगी, मैत्री, करुणा, प्रेम, सदाचार का साम्राज्य होगा, यह तभी होगा, जब हम त्याग, संयम एवं व्रतों को जीवन में धारण करेंगे, तो ही दुनिया पर प्रभाव डाल सकेंगें, व विश्व को अहिंसा के द्वारा शान्ति का सन्देश दे सकेंगे / कोई भी राष्ट्र अहिंसा के बिना शान्ति स्थापित नहीं कर सकता। ___धर्म प्रेम व मोहब्बत सिखाता है, धर्म बाह्य क्रियाकाण्ड नहीं है, धर्म जीवन दर्शन है, जो इन्सान को इन्सानियत, मानव को महामानव, महात्मा व परमात्मा बना देता है / वह महापुरुष बन जाता है, महावीर हो जाता है। वी. नि. सं. 2503 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org