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साटक
sto प्रेम सुमन जैन
जह तिवयं कीयं जेयइ-गुरुमाणि पाविओ मुक्खो ।
जं कुणहि भविय ते पुणो लहंति सिववास निच्छयइओ ।। ७९५ ।। पुव्व कहाअनुसरिरइयं हरीराज मलयावरचरियं । मस्स छेउ हेमप्पह वीरजिणचंदो ।। ७९६ ।।
सुक्ख
सोऊणं भवपुव्वदिक्खमहिया सुरेणं वीरेणे वा । काऊणं कम्मखयं गया सिवपयं पच्छासु पउमा सुयु ॥ लद्धणं मलयामहत्तरपयं जाइगयं सासिवं ।
पहरिया कियं पडलए सुक्खं चउहिंकारा ।। ७९७ ।। संवत् १६२८ चेतवदि ९ सोम ।
पाण्डुलिपि - परिचय
पूना भण्डार की इस प्रति में कुल २८ पृष्ठ हैं । प्रत्येक पृष्ठ पर लगभग १४ पंक्तियां हैं एवं प्रत्येक पंक्ति में लगभग ४० शब्द हैं । प्रति की स्थिति अच्छी है । किन्तु भाषा की दृष्टि से प्रति काफी अशुद्ध है । संयुक्त अक्षरों को प्रायः सरल अक्षरों में ही लिखा गया है । = अथि, तत्थ = तथ, जत्थ = जथ, हुत्तो = हुतो, पिच्छेइ - पिछे इत्यादि ।
यथा - अस्थि
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इस पाण्डुलिपि में ग्रन्थ को चार भागों में विभक्त किया गया है । मलयसुन्दरी के जन्म - वर्णन तक की कथा १३० गाथाओं तक वर्णित है । इसे प्रथम स्तवक कहा गया है । " इसके बाद उसका यौवन- वर्णित किया गया है । आगे ३८३ गाथाओं तक मलयसुन्दरी के पाणिग्रहण का वर्णन है । इसे द्वितीय स्तवक कहा गया है । इसके आगे की गाथाओं में ५२७ गाथा तक महाबल एवं मलयसुन्दरी के अपने नगर एवं गृह में प्रवेश करने का वर्णन है । इसे तृतीय पडल कहा गया है । अन्तिम चतुर्थ स्तवक को चतुर्थ पडल कहा गया है, जो ७९७ गाथा पर समाप्त हुआ है। इसमें मलया के शिवपद की प्राप्ति तक की कथा वर्णित है । इस तरह यह स्पष्ट है कि प्रस्तुत रचना मूल प्राकृत मलयसुंदरीचरियं का संक्षिप्त रूप है । क्योंकि मूल ग्रन्थ में लगभग १३०० प्राकृत गाथाएँ हैं जबकि इसमें कुल ७९७ गाथाएँ हैं ।
प्रस्तुत पाण्डुलिपि की अंतिम प्रशस्ति में इसका रचना या लेखन समय सं० १६२८ चैत वदि ९ सोमवार दिया हुआ है । इससे यह पाण्डुलिपि विशेष महत्त्व की हो गयी है । यह अलग बात है कि सं० १६२८ को रचनाकाल माना जाय या लेखनकाल ? इसका समाधान ग्रन्थकार के परिचय पर विचार करने से हो सकेगा ।
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१. सुश्रावकश्रीहेमराजार्थे कविहरिराज विरचिते ज्ञानरत्नउपाख्याने मलयसुन्दरीचरिते मलयसुन्दरीजन्मवर्णनो नाम प्रथमः स्तवकः ।
२. लढूण मलयामहत्तरपयं जाइगयं सा सिवं ।
हेप्पहरिया कियं पडलए सुक्खं चउहिंकारा ।।७९७ ॥
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