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प्रत्येक द्रव्य स्वयं चालित है और यह त्रैकालिक वैज्ञानिक व्यवस्था है।
कर्म का भेद - विज्ञान
जीव जो अनेक प्रकार के भाव या विचार करता है उसे विकल्प कहते हैं । विकल्प ही कर्म है और विकल्प का करने वाला कर्ता है । इस प्रकार जो जीव विकल्प सहित है, उसका कर्ता-कर्म भाव कभी नाश को प्राप्त नहीं होता है । जब जीव विकल्प करता है, उसी समय ज्ञानावरणादि कर्म द्रव्य कर्म रूप परिणमन करते हैं । इस प्रकार भाव कर्म व द्रव्य कर्म रूप कर्म के भेद किये जाते हैं । कर्म के द्रव्य कर्म, भाव कर्म व नोकर्म ( शरीर आदि संबंधी कर्म) रूप तीन भेद भी किये जाते हैं । कर्म के शुभ (पुण्य) व अशुभ (पाप) ऐसे दो भेद भी किये जाते हैं । पुण्य कर्म से स्वर्गादि की प्राप्ति होती है और पाप से नरकादि की, लेकिन दोनों ही संसार के कारण हैं। जैसे लोहे की बेड़ी बंधन है, वैसे ही सोने की बेडी भी बंध का ही कारण है ।
सामान्यतया कर्मों को आठ भागों में बांटा जाता हैज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र, अंतराय । वैसे इन ८ कर्मों के १४८ भेद भी किये जाते हैं । सचमुच देखा जाय तो कर्म के भेद तो अनंत हैं, जितने प्रकार के विकल्प होते हैं, उतने ही कर्म के भेद हो सकते हैं। जिनवाणी में कर्म का सूक्ष्म से सूक्ष्म विश्लेषण देखने को मिलता है ।
कर्म के भेद एवं विश्लेषण के पीछे एक अनोखा वैज्ञानिक सत्य छिपा हुआ है और वह एक शुद्धात्मा या सिद्ध समान आत्मा का रहस्य उद्घाटन । जब विकल्प ही कर्म है तो विकल्प रहित अवस्था ही कर्म रहित अवस्था है । सिद्ध भगवान् के आटों कर्मों का नाश है क्योंकि उनकी सकल कर्मों से रहित की अवस्था है। कर्म के घाति व अघाति रूप में भेद किया जाता है। उक्त आठ कर्मों में प्रथम चार को घातिकर्म कहते हैं व शेष चार को
कर्म सिद्धांत की वैज्ञानिकता
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जैन संस्कृति का आलोक
अघाति, जो आत्मस्वभाव का घात करते हैं अर्थात् प्रगट न होने में बाधक या निमित्त होते हैं उन्हें घाति और जो बाधक नहीं हैं उन्हें अघाति । प्रथम चार के नाश होते ही अरहंत दशा प्रगट होती है और अन्य चार के नाश होते ही सिद्ध दशा की प्राप्ति होती है। हर कर्म के प्रतिपक्ष में आत्मा के एक गुण का प्रतिपादन है । अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, सम्यक्त्व, अनंतवीर्य, अगुरुलघुत्व, अवगाहनत्व सूक्ष्मत्व, अव्याबाधत्व। इस प्रकार कर्म के अवलम्बन से शुद्ध या सिद्ध आत्मा का प्रतिपादन ही जिनवाणी का लक्ष्य है । कर्म या कर्मफल में अति सावधान जीव की प्रवृत्ति कर्मचेतना या कर्म फल-चेतनारूप है, जो संसार का कारण है, यह अज्ञानचेतना है । इसका विनाश कर ज्ञान चेतना में प्रवृत्त होना मोक्षमार्ग है और उसका फल साक्षात् मोक्ष है ।
कर्म के नाश का उपाय सरल व सहज है । जैसे अंधकार का नाश करने अंधकार को मारना पीटना, भगाना, अनुष्ठान, उत्सव आदि करने की आवश्यकता नहीं है । अंधकार के बारे में ज्यादा सोचने या विचारने से भी अंधकार नहीं मिटता । मात्र प्रकाश या दीपक से अंधकार का नाश होता है। उसी प्रकार कर्म के अंधकार या आवरण से आत्मा दिखाई नहीं देता । जैसे ही जीव ज्ञानरूपी दीपक को अपने भीतर जलाता है, कर्म का अंधकार उसी समय नाश को प्राप्त होता है । विकल्प, विचार, बुद्धि व्यवसाय, मति, विज्ञान, चित, भाव या परिणाम - ये सब एकार्थवाची है । यह जीव स्व-पर के भेद विज्ञान के अभाव में, एक में दूसरे की मान्यतापूर्वक अनेक परिणाम करता रहता है जो झूठे हैं। जिनेन्द्र भगवान् ने अन्य पदार्थों में ऐसे आत्मबुद्धि रूप विकल्प छुडायें हैं, यही कर्म का नाश है। यही वैज्ञानिकता है - कर्म के सिद्धांत की । जैसे प्रकाश के उदय से अंधकार का नाश सहज व सरल है, वैसे ही ज्ञान के उदय से कर्म का नाश सहज व सरल है। कर्म स्वयं भाग जाता है, अंधकार की भांति ।
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