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कर्म का सर्वमान्य अर्थ है, मनुष्य दिनभर में जो कार्य करता है वह और मरण तथा उसके सुख और दुःख उसके कर्म पर ही आश्रित है। के धर्म से है अथार्त उसकी धारणा सें मनोवृत्ति से अथवा ज्ञान से निवृत्ति का देवी और असुरी प्रवृत्ति का धर्म और अधर्म का ज्ञान प्राप्त चाहिये। यह करने से ही मनुष्य का कर्म श्रेष्ठ हो सकता है।
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कर्म सिद्धान्त
कर्म तो क्षणिक होता है, व्यक्ति जब कर्म करता है तो वह केवल उसी समय वह कार्य करता है और उसका परिणाम मनुष्य के पूरे जिन्दगीभर रहता है।
मनुष्य याने कि उसका जीव कर्म करता है पर जीव अभुर्त है वह मनुष्य के शरीर में भलें ही विराजमान हो, कभी कभी वह शरीर की पर्वा किये बगैर कर्म करता है इसलिए जीव के लिए कोई बंधन नही है। कर्म तो मूर्त है, वह हम देख सकते है इससे यह सिद्ध होता है कि जीव अमूर्त है और कर्म मूर्त है, तो जीव और कर्म का मेल कभी भी नही हो सकता ।
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गीता में कर्म का सिद्धांत है "कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।" मनुष्य अपने कर्म करने के लिये बाध्य होता है। उसे उस कर्म के फल की अपेक्षा नही करनी चाहिये । गीता में बताया है, 'कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर हे इन्सान जैसा कर्म करेगा
वैसा फल देगा भगवान।' फल देना इश्वर के हाथ मे होता है। उसे बुरा फल मिलता है तो उसे बुरा कर्म नही करना चाहिये उसे श्रेष्ठ फल मिलता है।
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कुसूमबेन मांडवगणे
M.A.B.ED.
कर्म । मनुष्य के जन्म कर्म का संबंध मुनष्य है अतः मनुष्य को करके ही कर्म करना
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अपने पास बचा हुआ
एक बात अनिर्णित रहती है, अच्छा कर्म कौनसा है और बुरा कर्म कौनसा है? इससे एक छोटी कहानी मुझे याद आती है। 'एक योगी तप के लिये बडी धूप में जंगल मे केवल लंगोटी पहन के बैठे थे। उधर से एक ग्वाला मस्का बिक कर आ रहा था। उसके बर्तनमे थोडा मस्का बाकी था। उसने देखा एक योगी कड़ी धूप मे तपस्या मे धूप में फटा जा रहा है, उसके मनमे दया उत्पन्न हुई और वह मनमे थोडासा मस्का अगर योगी के काम आ जाये तो क्या बुराई है उसने मस्का योगी के शरीर को लगा दिया उसे नमस्कार करके अपने रास्ते चला गया। कुछ समय बाद मस्के की गंध से वहा बहुत सारी पिंटियाँ योगी के शरीर को नोचने लगी। उससे योगी को यातना होने लगी। इतने मे वहाँ से एक गुंडा जा रहा था, जो भगवान या योगी के नामसे भी चिढता था। उसके हाथ में एक गन्ना था। वह योगी के पास बैठा और उसकी खिल्ली उड़ाने लगा। उसे गालियाँ भी देने लगा। और साथ-साथ वह गन्ना खाके योगी के बदनपर खाया हुआ गन्ना फेंकने लगा और जी भरके योगी को सताकर अपनी राह चला गया। इससे यह हुआ कि योगी के बदनपर जो जो चिंटियों उसे नोच रहीं थी वह गन्ने की मिठास से गन्ने पर चली गयी ।
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कोई बुरा कर्म करता है तो कोई श्रेष्ठ कर्म करता है तो
मन जब लागणी के घाव से घवाता है तब कठोर बन ही नहीं सकता।
लीन है, उसका शरीर सोचना लगा कि मेरा
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