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________________ का कुछ प्रयत्न होता दिखाई दे रहा था, आज तो वह भी दिखाई नहीं देता। ___ ओसवाल जाति का संगठन जैनाचार्यों ने समय की पुकार और भावी कल्याण की दृष्टि से किया था। इससे यह एक बड़ा लाभ हुआ कि जैन संस्कार जैन जातियों में इतने दृढ़ हो गये कि अनेक बुराइयों और पापों से वे सहज ही बच सकें / माँसाहारियों के शासन-सम्पर्क और पड़ोस में रहते हुये भी जातीयसंगठन के कारण मांस-मदिरा निषेध आदि संस्कारों को वे दीर्घजीवी और व्यापक बना सके / हिंसा को कम-से-कम जीवन में स्थान देना पड़े, इसलिये जैन जाति के लोगों ने व्यापार आजीविका का प्रधान साधन बना लिया। अब तो उन संस्कारों को सुरक्षित रखने का प्रयास बहुत ही आवश्यक हो गया है / क्योंकि जैन युवकों में जैन संस्कार समाप्त होते जा रहे हैं / ___ ओसवाल जाति में समय-समय पर अनेक विशिष्ट व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने भारतीय इतिहास को नया मोड़ दिया है / अनेक राज्यों के संचालन में ओसवालों का बड़ा हाथ रहा है / प्रधान मन्त्री, सेनापति, कोषाध्यक्ष, आदि विशेष पदों पर रहते हुवे उन्होंने देश, जाति एवं धर्म की बड़ी सेवाएं की हैं। इतिहास उसका साक्षी है / साहित्य और कला के क्षेत्र में भी उनकी सेवाएं अनुपम हैं / कई ओसवाल कवि और ग्रन्थकार हए हैं। लाखों हस्तलिखित प्रतियाँ लिखवाकर उन्होंने ग्रन्थों को सुरक्षित रखा। अनेकों कवियों और विद्वानों को आश्रय, सहायता एवं प्रोत्साहन दिया। अनेकों भव्य मूर्तियों और मन्दिरों का निर्माण किया / उन्होंने सार्वजनिक हित के अनेकों कार्य किये / उन सबका लेखा-जोखा यतकिचित् भी संग्रह किया तो भावी पीढ़ी के लिये वह काफी प्रेरणादायक होगा / अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धावनत होना प्रत्येक कृतज्ञ मनुष्य के लिये आवश्यक होता है / हमारा वह जीवन अनेक जन्मों-जन्मान्तरों, संस्कारों और परम्पराओं से प्रभावित है। सत्पुरुषों से सदा सत्-प्रेरणा मिलती रही है, इसीलिये उनका नाम-स्मरण और गुण स्तवन किया जाता है / इतिहास के द्वारा हमें अपनी पूर्व परम्परा का वास्तविक बोध होता है, दिशा मिलती है / अतः अपेक्षा करना उचित नहीं। जिस प्रकार पूर्वकालीन इतिहास को जानना आवश्यक है .उसी प्रकार वर्तमान स्थिति की जानकारी भी जरूरी है। आज ओसवाल समाज के लोग किन-किन दिशाओं और बातों में, कौन-कौन अग्रणी हैं, इसकी जानकारी हमें और हमारे बच्चों को होनी चाहिये। इतिहास निर्माताओं पर हमारी दृष्टि रहनी ही चाहिथे / समाज के विशिष्ट व्यक्तियों को सामने लाना व उन्नति के इच्छुक व्यक्तियों को आगे बढ़ाना जरूरी है / राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक तथा धार्मिक सभी क्षेत्रों में हमारे पूर्वजों ने जो उच्च स्थान प्राप्त किया उसे बनाये रखना ही नहीं और अधिक द्युतिमान करना हमारा कर्तव्य है / पारस्परिक सहयोग, स्वधर्मवात्सल्य और दीर्घ दृष्टि की अत्यन्त आवश्यकता है। देश, समाज, धर्म के अनेकों क्षेत्रों में हमारी सेवाएं बहुत ही जरूरी होती हैं हमारे पास समय और श्रम, साधन हैं पर उसका सही और अधिकाधिक उपयोग हम नहीं कर पा रहे हैं। भावी पीढ़ी के निर्माण के लिये हम सजग नहीं हैं, यह अवश्य ही चिन्ता का विषय है / ओसवाल सम्मेलन जैसी संस्था को हम जीवित नहीं रख सके तो हमें कम-से-कम मंच पर बैठकर विचार विनिमय कर भावी उन्नति का मार्ग खोजते हुए अब भी ठोस कार्यों को कार्यान्वित करने का प्रयत्न तो अवश्य ही करना चाहिये। ओसवाल समाज में आज धनिकों की कमी नहीं, बुद्धिशाली भी व्यक्ति अनेक हैं / पर सही दिशा की ओर ले जाने वाला नेता नहीं है। इसलिये आज हम छिन्न-भिन्न नजर आते हैं। समाज के धन का उपयोग लोक हितों के कार्यों में कम होता है, रूढ़ि दिखावा और कीति आदि में अधिक है। धार्मिक संस्कारों में दिनों-दिन ढील पड़ती जा रही है / यदि इसकी ओर शीघ्र ध्यान नहीं दिया गया तो उज्ज्वल भविष्य की आशा नहीं की जा सकती और हमारे पूर्वजों से महान विरासत में जो संस्कृति हमें प्राप्त हुई है, वह दीर्घकालीन साधना का परिणाम है / हमारे पूर्वजों ने सबको धर्म की प्रेरणा के लिये जो अनेकों मंदिर, उपासरों आदि धार्मिक स्थान बनाये हैं, उनकी उचित देखभाल अत्यन्त आवश्यक है / उन्होंने लाखों रुपये खर्च करके जगह जगह पर ज्ञान-भण्डार स्थापित किये, उनमें ग्रन्थों की सुरक्षा और उनका अध्ययन करके लाभान्वित होना बहुत ही जरूरी है। हमारे बालक-बालिकाओं में संस्कार और नैतिक एवं धार्मिक शिक्षा बहुत ही जरूरी है। बेकार और आश्रयहीन व्यक्तियों को काम में लगाना, असहाय व्यक्तियों की सहायता करना, समाज के प्रति सेवाभावों को विकसित होने का पूर्ण अवसर एवं सहयोग देना भी उतना ही आवश्यक है / विधवा, बूढ़ों, अपंग व्यक्तियों, की सार सम्भाल तो हमारा कर्तव्य ही होना चाहिये / ओसवाल समाज के कर्णाधार मेरे ओसवाल नवयुवक समिति कलकत्ते के विशेषांक में प्रकाशित लेख और इस लेख में दिये गये सुझावों पर गम्भीरता से शीघ्र ही विचार कर ठोस कदम उठावें, यही अनुरोध है। प्राप्त दौलत से सुकृत करो, वह तुम्हें आगे भी सहायक सिद्ध हो सकेगा। -राजेन्द्र सुरि वी.नि.सं. 2503 145 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210335
Book TitleOswal Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherZ_Rajendrasuri_Janma_Sardh_Shatabdi_Granth_012039.pdf
Publication Year1977
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & History
File Size539 KB
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