SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ // श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ / चिन्तन के विविध बिन्दु : 568 : शाह के स्वर्गवास का समय 1541 निर्धारित किया है। ये सभी प्रमाण एक-दूसरे से भिन्न हैं / इनमें 1541 का काल ही उचित लगता है। उनके स्वर्गवास के विषय में भी अनेक धारणाएँ प्रचलित हैं। कोई तो उनकी स्वाभाविक मृत्यु मानते हैं। कोई उन्हें विरोधियों द्वारा विष देकर मारा गया बताते हैं / इनमें दूसरे 'विष-प्रसंग' के प्रमाण अधिक पुष्ट मिलते हैं। एक प्रमाण में उनका स्वर्गवास स्थान अलवर माना गया है। श्री पारसमल प्रसून भी उनकी मृत्यु विष प्रसंग से मानते हैं। इस प्रकार प्रचलित इन विभिन्न विचारधाराओं से हम किसी भी निष्कर्ष पर तब तक नहीं पहँच सकते हैं जब तक कि कोई पुष्ट प्रमाण उपलब्ध न हो। फिर भी हमें वि० सं० 1546 में मृत्यु होना कुछ विश्वसनीय लगता है / पता-डा० तेजसिंह गौड़ छोटा बाजार, उन्हेल, जिला उज्जैन (म०प्र) ---------------- जिनकी शताब्दी है। जैन दिवाकर चौथमलजी महाराज गुणवान / जिनकी शताब्दी है, चमके वे सूर्य समान ॥टेर।। महा मालव में "नीमच" नगरी सुन्दर है। "गंगारामजी" पिता है, माता "केशर" है॥ "चौरडिया कुल" धन्य हो गया पा ऐसी संतान / / 1 / / जीवन में यौवन गुलाब सा मुस्काया। विवाह किया पर रति-पति नहीं लुभा पाया / सुन्दर पत्नी छोड़ के निकले ले उद्देश्य महान // 2 // सदियों में कोई ऐसे संत नजर आते / जिनके चरणों में पर्वत भी झुक जाते / / वाणी में जिनकी जादू हो, मन में जन-कल्याण ||3|| पतितों को पावन कर, प्रभू से जोड़ दिया। वाणी सुनकर पाप पंथ कई छोड़ दिया / / अग्नि शीतल नीर बनाई, पिघलाये पाषाण // 4 // तन जैसा ही मन निर्मल, उन्नत विशाल था। करुणा भरा हृदय था कोमल, भव्य भाल था / / आत्मानन्द की आभा देती मधुर वदन मुस्कान / / 5 / / योगी-तपसी-पंडित कई मिल जाते हैं। सतगुरु "केवलमुनि" पुण्य से पाते हैं / जिनका कुटिया से महलों तक गूजा गौरवगान / / 6 / / -श्री केवलमुनि 0-0--0--0--0--0--0--0 ---------------- 40 हमारा इतिहास, पृष्ठ 101 41 मुनिश्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृष्ठ 183 Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.210330
Book TitleAetihasik Charcha Dharmveer Lokashah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTejsinh Gaud
PublisherZ_Jain_Divakar_Smruti_Granth_012021.pdf
Publication Year1979
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & History
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy