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ऋषिभाषित और पालि जातक में प्रत्येक बुद्ध की अवधारणां
उसकी गणना का उल्लेख भी मिलता है, और आवश्यक - नियुक्तिकार का इस प्रकार का कथन भी है कि उनकी ऋषिभाषित पर भी निर्युक्ति रचने की योजना थी । वस्तुतः ऋषिभाषित उपलब्ध जैन आगम का अंग नहीं है और श्वेताम्बर - दिगम्बर किसी भी परम्परा में इसे स्थायी स्थान नहीं प्राप्त हुआ । ' डॉ० सागरमल जैन जी का यह अनुमान सत्य प्रतीत होता है कि अपनी विकासशील प्रारम्भिक अवस्था में जैन परम्परा को विशुद्ध रूप से आध्यात्मिक उपदेशों का ही संकलन होने के कारण ऋषिभाषित को अपने आगम में स्थान देने में कोई बाधा नहीं प्रतीत हुई होगी; परन्तु जब जैन संघ ने एक सुव्यवस्थित एवं रूढ़ परम्परा का रूप ग्रहण कर लिया, तब उसके लिये अन्य परम्पराओं के साधकों को आत्मसात् कर पाना कठिन हो गया । फलतः एक प्रकीर्णक ग्रन्थ के रूप में उसकी गणना की जाने लगी और उसकी प्रामाणिकता सुरक्षित रखने के लिये उसे प्रत्येक-बुद्ध भाषित माना गया ।
ऋषिभाषित में ऋषि, परिव्राजक, ब्राह्मण परिव्राजक अर्हत्, ऋषि, बुद्ध, अर्हत् ऋषि, अर्हत् ऋषि आदि विशेषणों से युक्त विभिन्न साधकों के वचनों का उल्लेख हुआ है । इन विशेषणों में प्रत्येक-बुद्ध का अभाव है । पर यह उल्लेखनीय है कि ऋषिभाषित के अन्त में प्राप्त होने वाली संग्रहणी गाथा' में एवं ऋषिमण्डल में सभी को प्रत्येक बुद्ध कहा गया है और यह भी चर्चा है कि इनमें से २० अरिष्टनेमि के, १५ पार्श्वनाथ के और शेष महावीर के शासन काल में हुए । " समवायांग में ऋषिभाषित के महत्त्वपूर्ण उल्लेख में इन ऋषियों को "देवलोक से
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ऋषिभाषित की स्थिति के लिये विस्तार से देखें : शूविंग द्वारा सम्पादित “इसिभासियाई” IT भूमिका भाग और जैन, सागरमल : ऋषिभाषित - एक अध्ययन, पृष्ठ १-४ ।
जैन, सागरमल : उपरोक्त, पृष्ठ १० - ११ ।
पत्तेय बुद्धमिसिणो वीसं तित्थे अरिट्ठणेमिस्स । पासस्स य पण्णस्स वीरस्स विलीणमोहस्स ॥ १ ॥ नारद - वज्जिय- पुत्ते असिते अंगरिसि- पुप्फसाले य । वक्कलकुम्मा केवल कासव तह तेतलिसुत्ते य ॥ २ ॥ मंखली जण्णभयालि बाहुय महु सोरियाण विदूविपू । वरिसकण्हे आरिय उक्कलवादी य तसणे य ।। ३ ।। गद्दभ रामे य तहा हरिगिरि अम्बड मयंग वारता । तंसो य अ य वद्धमाणे वा तीस तीमे ॥ ४ ॥ पासे पिंगे अरुणे इसिगिरि अदालए य वित्तेय | सिरिगिरि सातियपुत्ते संजय दीवायणे चेव ।। ५ ।। तत्तो य इंदणागे सोम यमे चेव होइ वरुणे य । वे समणे य महत्या चत्ता पंचेव अक्खाए ॥ ६ ॥
- इसिभासियाई संग्रहिणी गाथा परिशिष्ट । आचारांग चूर्णि में ऋषिमण्डल स्तव ( इसिमण्डलत्थउ ) नामक ग्रन्थ का उल्लेख है । इसमें ऋषिभाषित के अनेक ऋषियों एवं उनके उपदेशों का संकेत है, जो इस बात का परिचायक है कि ऋषिमण्डल का कर्त्ता ऋषिभाषित से अवश्य अवगत था ।
देखिए जैन, सागरमल : वही, पृ० ११ ।
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