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________________ दशरथ गोंड २३७ प्रत्येक बुद्ध कल हमारा निमन्त्रण स्वीकार करें ।" निमन्त्रण के लिये उत्तर दिशा की ओर फेंके ये पुष्पों पर ही प्रत्येक बुद्ध विचार करते थे, क्योंकि उसी दिशा में उनका निवासस्थान है, और पुष्पों का लौटकर न आना इस बात का संकेत माना जाता था कि प्रत्येक बुद्धों ने निमन्त्रण स्वीकार कर लिया है । ऐसा विश्वास था कि उपोसथ अंगों (दान, शील, सत्य, आदि ) से युक्त होने पर जो पुष्प फेंके जाते, वे अवश्य प्रत्येक-बुद्धों पर जाकर गिरते थे । ध्यान से प्रत्येक बुद्ध यह जान लेते थे कि अमुक व्यक्ति ने सत्कार करने के लिये हमें आमन्त्रित किया है । वे समूहों में अपने विशिष्ट आकाश मार्ग से वहाँ पहुँचते थे । वहाँ सत्कार की प्रक्रिया सात दिनों तक चलती रहती, उसमें सब परिष्कारों का दान दिया जाता और प्रत्येक-बुद्ध दानानुमोदन कर अपने स्थान को पुनः लौट जाते । दानानुमोदन में वे इस प्रकार उपदेश करते कि "यह संसार जरा और मरण से जल रहा है, दान देकर इससे मुक्ति प्राप्त करो; जो दिया जाता है वही सुरक्षित होता है, इत्यादि" । वर्णित रूप में प्रत्येक बुद्धों को निमन्त्रित करके उनका आदरसत्कार करने की उपर्युक्त विधि अतिरंजित रूप में और अलंकारिक शब्दावली में वर्णित है, परन्तु इससे यह स्पष्ट है कि विशिष्ट निमन्त्रण देकर प्रत्येक बुद्धों का आदर-सत्कार किया जाता था और अपने दानानुमोदन में वे उपासकों को ज्ञान और वैराग्य का उपदेश देते थे । प्रत्येक बुद्धों के अपने विश्वस्त कुल-उपासक भी होते थे जो उनकी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे । तेलपत्त जातक' से यह ज्ञात होता है कि कुल विश्वस्त उपासक उनसे अपनी भविष्य सम्बन्धी बातें भी पूछते से । महाजनक जातक सूचना देता है कि नित्य-भोजन ग्रहण करने वाले प्रत्येक बुद्ध के सम्मान में उनका विश्वस्त कुल उपासक राजा प्रत्येक-बुद्ध के आवागमन की सीमा क्षेत्र के सोलह स्थानों पर निधि गाड़ कर रखता । वे सोलह स्थान थेराजद्वार, जहाँ प्रत्येक बुद्ध की अगवानी की जाती और जहाँ से उन्हें विदा किया जाता, राजभवन के बड़े दरवाजे की देहली के नीचे, देहली के बाहर, देहली के अन्दर, मंगल- हाथी पर चढ़ने के समय सोने की सीढ़ी रखने के स्थान पर उतरने के स्थान पर, चारमहासाल अर्थात् राजशैय्या के चारों शालमय पौवे के नीचे, शैया के चारों ओर युग भर की दूरी में, मंगलहाथी के स्थान पर, उसके दोनों दाँतों के सामने के स्थान पर, मंगल-घोड़े की पूँछ उठने के स्थान पर, मंगल-पुष्करिणी में तथा शाल वृक्ष के मण्डलाकार वृक्ष की छाया के अन्दर । छद्दन्त जातक' से यह भी विदित होता है कि विश्वस्त कुल-उपासक की मृत्यु होने पर कुल के सदस्य प्रत्येक बुद्ध के पास जाकर यह आग्रह करते कि "भन्ते ! आपकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला दाता अमुक कारण से मृत्यु को प्राप्त हुआ है, आप उसके शव को देखने के लिए आयें" । प्रत्येक-बुद्ध उस स्थान पर पहुँचते । वहाँ उनसे शव की वन्दना करायी जाती, तत्पश्चात् शव को चिता पर रख कर जला दिया जाता, और प्रत्येक बुद्ध रात भर चिता के पास सूत्र पाठ करते । १. जातक ९६, खण्ड १, पृ० ५५८ । २. जातक ५३९, खण्ड ६. पृ० ४२ और ४६-४७ । ३. जानक ५१४, खण्ड ५ पृ० १४१-१४२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210308
Book TitleRushibhashit aur Palijatak me Pratyek Buddha ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDashrath Gond
PublisherZ_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf
Publication Year1991
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size2 MB
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