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________________ ओर पहले अप्सराओंकी मूत्तियाँ विविध भावभंगिमाओंमें लगी हुई थीं जिनकी पीठिकायें वितानके निचले भागमें अब भी द्रष्टव्य हैं । गूढ़मण्डपके पिछले द्वारको पार करनेपर दर्शक गर्भगृहके सम्मुख अन्तरालमें प्रवेश करता है और उसके उपरान्त चौकोर गर्भगृहमें जिसके ऊपर शिखर बिलकुल नष्ट हो चुका है। गर्भगृहके द्वारका अलंकरण वैसा ही है जैसा कि गूढ़मण्डपके द्वारोंका है और इसके भी ललाटबिम्ब पर तीर्थकरकी प्रतिमा और उसके ऊपर पाँच रथिकाओंमें जैन यक्षियोंका प्रतिरूपण मिलता है ।। - इस मन्दिरसे उपलब्ध दो दिगम्बर जैन प्रतिमाओंको कई दशक पूर्व इन्दौर संग्रहालयमें सुरक्षित रखनेके लिए पहुँचा दिया गया है। इनमेंसे एक मत्ति तीर्थकर शान्तिनाथकी है जिसकी पीठिका पर विक्रम संवत् १२४२ (११८५ ई०) की तिथि अंकित है। कायोत्सर्ग मुद्रामें निर्मित यह प्रतिमा सम्भवतः चौबारा डेरा नं० २ के जैन मन्दिरमें स्थापित थी जिससे इस मन्दिरका निर्माण काल निश्चित रूपसे ११८५ ई० ज्ञात होता है। ग्वालेश्वर मन्दिर यह जैन मन्दिर ऊन ग्रामके दक्षिणमें एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है और यह आज भी पूजाउपासनाके लिए प्रयोगमें आता है। सम्प्रति इसे शान्तिनाथ मन्दिरके नामसे जाना जाता है। मन्दिरके ANSAR चित्र-५. ग्वालेश्वर मन्दिर, १३०० ई०, ऊन बाहरी और भीतरों भागोंका जीर्णोद्धार इस प्रकार किया गया है जिससे मन्दिरकी प्राचीनता लुप्तप्रायः हो गयी है और उसकी वास्तविक पहचान तभी हो पाती है जब इसके मौलिक भागोंका सूक्ष्मतासे निरीक्षण किया जाय (चित्र-५)। विशेषतया मन्दिरके गूढ़मण्डप और मूलप्रसादका सूक्ष्म दृष्टिसे अध्ययन करनेपर इस प्राचीनताके चिह्न पहचाने जा सकते हैं। इस प्रकार इस मन्दिरको तलयोजना पूर्वोल्लिखित चौबारा डेरा नं० २ के समान ही रही होगी जिसका अनुमान प्राचीन अवशिष्ट भागोंको देखकर लगाया जा सकता है किन्तु बाहरी शिल्प अलंकरणमें यह अपेक्षाकृत सादा है। सामनेका मौलिक अर्धमण्डप अब शेष नहीं -३३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210303
Book TitleUnke Prachin Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakeshdutt Dwivedi
PublisherZ_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf
Publication Year1980
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirth
File Size3 MB
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