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आकारके कारण विशेष रूपसे महत्त्वपूर्ण है । गूढ़मण्डपके दोनों पावोंमें एक-एक द्वार है जिनके सामने स्तम्भों पर आधारित मुखमण्डप अथवा मुखचतुष्की होनेके संकेत मिलते हैं (चित्र १ )
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चित्र १. चौबारा डेरा नं० २, १२०० ई०, ऊन
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चित्र २. चौबारा डेरा नं० २ : पीठ तथा वेदीबन्धकी अलंकृत पट्टिकायें
मन्दिरके बाह्य और आन्तरिक दोनों अलंकरण बड़े प्रभावपूर्ण हैं । उँचाईपर स्थित मन्दिरकी ओर अधिक ऊँचाई प्रदान करनेके लिये उसके निम्न भागमें पीठ और वेदीबन्धका संयोजन किया गया है। जिनकी विविध पट्टिकायें अपने अलंकरणके लिये सराहनीय हैं। पीठकी निम्नतम दो सादी पट्टिकाओंके ऊपर अलंकृत पट्टिकाओं की रचना की गई है जिनको प्राचीन स्थापत्य ग्रन्थों में (नीचे की ओरसे) क्रमश: नाड़यकुम्भ, कर्णिका, ग्रासपट्टी, गजपीठ और नरपीठ नाम दिये गये हैं । इनके ऊपर वेदी बन्धकी पट्टिकायें हैं जिन्हें कुम्भ,
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