________________
आलंकारिक दृष्टि से श्री उत्तराध्ययनसूत्र : एक चिन्तन /१११
—जैसे हथिनी के प्रति प्राकृष्ट, कामगुणों में प्रासक्त रागातुर हाथी विनाश को प्राप्त होता है।
इसी प्रकार रूप, शब्द, गंध, रस, तथा स्पर्श भोगों में प्रासक्त जीव भी विनाश को प्राप्त होता है। इन सबमें उदाहरण है।
गाथा-३४-४७-६०-७३-८६-९९-'न लिप्पइ भवमझे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं।'
इन्द्रियविषयों एवं भाव में जो मनुष्य शोक-रहित होता है वह संसार में रहता हुआ भी लिप्त नहीं होता है, जैसे-जलाशय में कमल का पत्ता जल से अलिप्त रहता है। इन गाथाओं में भी उदाहरण है।
गाथा १०४.-'इन्दियचोरवस्से'-इन्द्रिय रूपी चोर । रूपक । 'वियारे--अमियप्पयारे ।'........ छेकानुप्रास ।।
अध्ययन ३४--गाथा ४--इसमें कृष्णलेश्या के वर्ण स्निग्ध अर्थात सजल मेघ, महिष शृग, अरिष्टक, खंजन, अंजन और नेत्र तारिका के समान काला बताया है। मतः उपमा है। 'नयण' शब्द दो बार पाया, अतः यमक भी है।
गाथा ५.—इसमें नीललेश्या का वर्ण-नील अशोक वृक्ष, चासपक्षी के पंख और स्निग्ध वैडूर्यमणि के समान नीला बताया है, अत: उपमा है।
गाथा ६—इसमें कापोतलेश्या को अलसी के फूल, कोयल के पंख और कबूतर की ग्रीवा के वर्ण के समान कुछ काला और कुछ लाल जैसा मिश्रित बताया है। उपमा है।
गाथा ७—इसमें तेजोलेश्या का वर्ण हिंगुल, धातु-गेरु, उदीयमान तरुण सूर्य, तोते की चोंच, प्रदीप की लौ के समान लाल बताया है । अत: उपमा है।
गाथा ---इसमें पद्मलेश्या का वर्ण हरिताल और हल्दी के खण्ड तथा सण और असन के फल के समान पीला बताया है। उपमा है।
गाथा ९-शुक्ललेश्या का वर्ण-शंख, अंकरत्न (स्फटिक जैसा श्वेत रत्नविशेष) कुंद पुष्प, दुग्धधारा, चाँदी के हार के समान श्वेत बताया है, अतः उपमा है।
गाथा १०-कृष्णलेश्या का रस वैसा ही कड़वा है जैसा तुम्बा, नीम, कड़वी रोहिणी का रस कडुवा होता है । अतः उदाहरण है। तथा 'कडुय' शब्द दो बार इसलिए यमक है और 'कड्यतुम्बगरसो निबरसो' में छेकानुप्रास है।
गाथा ११-नीललेश्या का रस वैसा ही तीखा होता है जैसा त्रिकट और गजपीपल का रस होता है । अत: उदाहरण एवं 'रसो' शब्द दो बार, अतः यमक भी है।
गाथा १२–कापोतलेश्या का रस कसैला होता है जैसा कच्चे आम और कच्चे कपित्थ का होता है । अतः उदाहरण तथा 'रसो' शब्द दो बार पाया है, अतः यमक है।
गाथा १३-तेजोलेश्या का रस वैसा ही खट-मीठा होता है जैसा पके हुए आम और पके हुए कपित्थ का रस होता है। इसमें भी उदाहरण और 'रसो' शब्द दो बार आया है, अत: यमक भी है।
सम्मो दीयो संसार समुद्र में धर्म ही दीय है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org