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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
सल्लेखना " दो प्रकार की है
(क) भाव सल्लेखना - कषायों को भली प्रकार से कृश करना ।
(ख) द्रव्य सल्लेखना - भाव सल्लेखना के लिए काय- क्लेशरूप अनुष्ठान करना ।
सल्लेखना योगीगत है जब कि आत्म-हत्या भोगीगत । योगी तो अपने प्रत्येक जीवन में शरीर
को सेवक बनाकर अन्त समय में सल्लेखना द्वारा उसका त्याग करता हुआ प्रकाश की ओर चला जाता है। और भोगी अर्थात् आत्म-हत्यारा अपने प्रत्येक जीवन में उसका दास बनकर अन्धकार की ओर चला जाता है ।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूचो :
1. अपभ्रंश वाङ्मय में व्यवहृत पारिभाषिक शब्दावलि, आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', महावीर प्रकाशन, अलीगंज, एटा, ( उ० प्र०), सन् 1977, पृष्ठ 11
2. जैन हिन्दी पूजा काव्य में व्यवहृत पारिभाषिक शब्दावलि, आदित्य प्रचण्डिया 'दीनि', सप्तसिन्धु, अगस्त 1978, पृष्ठ 29 ।
3. जैन कवियों के हिन्दी काव्य का शास्त्रीय मूल्यांकन, डॉ० महेन्द्र सागर प्रचण्डिया, डी० लि० का शोध प्रबन्ध, सन् 1974, पृष्ठ 3 ।
4. अपभ्रंश भाषा का पारिभाषिक कोश, डॉ० आदित्य प्रवण्डिया 'दीति', जैन शोध अकादमी, सन् 1981, पृष्ठ 2 |
5. बृहत् हिन्दी कोश, सम्पादक कालिकाप्रसाद आदि, ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी, पृष्ठ 1312 ।
6. अपभ्रंश वाङमय में व्यवहृत पारिभाषिक शब्दावलि, आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', परामर्श (हिन्दी), वर्ष 5, अंक 4 सितम्बर, 1984, पुणे विश्वविद्यालय प्रकाशन, पृष्ठ 322 | 7. सुप्तिङ्त्तमपदम् ।
-अष्टाध्यायी, आचार्य पाणिनि, 1, 4, 14
8. पारिभाषिक शब्द, डॉ० रघुवीर, संग्रहीत ग्रन्थ --- पारिभाषिक शब्दावलि कुछ समस्याएँ सम्पा० डॉ० भोलानाथ
तिवारी, प्रथम संस्करण 1973, शब्दकार 2203 गली डकोतान, तुरकमानगेट, दिल्ली-6, पृष्ठ 9 ।
9. पारिभाषिक शब्दावलि और अनुवाद, श्री महेन्द्र चतुर्वेदी, संग्रहीत ग्रंथ - पारिभाषिक शब्दावलि कुछ समस्याएँ, पृष्ठ 6 ।
10. Story of Language, Page 271.
11. Foreword to the Comprehensive English-Hindi Dictionary by Dr. Raghuvira.
12. हिन्दी शब्द रचना, माईदयाल जैन, पृष्ठ 206 |
13. संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ, पृष्ठ 8941
14. (i) बृहद् जैन शब्दार्णव, भाग 2, मास्टर बिहारीलाल, पृष्ठ 629
(ii) तत्त्वार्थसूत्र, उमास्वाति, 7/21
(iii) जैन हिन्दी पूजाकाव्य परम्परा और आलोचना, डॉ० आदित्य प्रचण्डिया 'दीति', जैनशोध अकादमी अलीगढ़, पृष्ठ 365
आर्ष ग्रन्थों में व्यवहृत पारिभाषिक शब्दावलि और उसका अर्थ अभिप्राय : डॉ० आदित्य प्रचंडिया | १६६
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