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________________ उल्लेख मिलता है, जिससे स्पष्ट है कि पूज्यपाद स्वामी का कोई चिकित्सा विषयक ग्रन्थ पूर्वकाल में विद्यमान था जिसमें से ये योग उद्धृत कर संकलित किए गए हैं । अतः यह तो स्पष्ट है कि यह ग्रन्थ पूज्यपाद द्वारा रचित नहीं है । इसकी भाषा शैली भी पूज्यपाद की विद्वत्ता के अनरूप नहीं है। अतः वे योग अविकल रूप से उद्धृत किए गए हों यह भी नहीं कहा जा सकता। यह भी अभी तक अज्ञात ही है कि इस ग्रन्थ का वास्तविक रचयिता या संग्रहकर्ता कौन है ? उपर्युक्त ग्रंथों के अतिरिक्त हर्षकीति सूरि विरचित योग चिन्तामणि, हस्तिरुचि द्वारा लिखित वैद्य बल्लभ, अनन्तदेवसूरिकृत रस चिन्तामणि, श्री कण्ठसूरिकृत हितोपदेश वैद्यक, हंसराज कृत हंसराज निदान, कवि विश्राम द्वारा लिखित अनुपान मंजरी आदि ग्रन्थों के प्रकाशित होने की जानकारी भी प्राप्त हुई है । कन्नड़ भाषा में भी आयुर्वेद के एक ग्रंथ के प्रकाशित होने की सूचना प्राप्त हुई है। यह ग्रंथ है श्री मंगराज द्वारा रचित खगेन्द्रमणिदर्पण । इस ग्रन्थ को मद्रास विश्व विद्यालय ने कन्नड भाषा एवं कन्नड लिपि में कन्नड सीरीज के अन्तर्गत प्रकाशित किया था। किन्तु मुद्रणातीत होने से वर्तमान में यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। इसी प्रकार उपयुक्त प्रकाशित ग्रन्थों में से अधिकांश ग्रन्थ मद्रणातीत हो जाने के कारण वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। पुनः उनका प्रकाशन किया जाता है अथवा नहीं, यह कह सकना कठिन है। अतः इस दिशा में भी पर्याप्त ध्यान दिया जाना अपेक्षित है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जैनाचायों द्वारा लिखित आयुर्वेद के ग्रथों की संख्या प्रचुर है । किन्तु उन ग्रंथों की भी वही स्थिति है जो जैनाचार्यों द्वारा लिखित ज्योतिष के ग्रंथों की है। विद्वद्जनों, समाज एवं संस्थाओं की उपेक्षा के कारण जैनाचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थों की प्रचुरता होते हुए भी यह सम्पूर्ण साहित्य अभी तक अन्धकारावृत्त है। अब तो स्थिति यह होती जा रही है कि जैनाचायों द्वारा प्रणीत जिन ग्रंथों की रचना का पता चलता है उनमें से अधिकांश का अस्तित्व ही हमारे सामने नहीं है। संभव है किसी ग्रन्थ भण्डार में किसी की एकाध प्रति मिल जाय । अनेक स्थानों पर स्वामी समन्तभद्र के वैद्यक ग्रंथ का उल्लेख मिलता है, किन्तु वह ग्रंथ अभी तक अपाप्य है। आयर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ योगरत्नाकर में भी पूज्यपाद के नाम से अनेक योग उद्धृत हैं। किन्तु आज पूज्यपाद का वह प्रथ उपलब्ध नहीं है। इसी प्रकार "वसव राजीयम्" नामक आयुर्वेदीय ग्रंथों में भी पूज्यपाद के नाम से अनेक योग उल्लिखित हैं। किन्तु अत्यधिक प्रयत्न किए जाने पर भी पूज्यपाद द्वारा रचित चिकित्सा योग सम्बन्धी कोई ग्रथ हस्तगत नहीं हुआ है। कुछ वर्तमान कालीन विद्वानों ने जैनाचार्यों द्वारा रचित कुछ ग्रंथों का विवरण तो दिया है, किन्तु यह उल्लेख उन्होंने नहीं किया कि वह ग्रंथ वर्तमान में कहां है और उसकी जानकारी का स्रोत क्या है ? इससे ग्रन्थ को खोजने में परेशानी होना स्वाभाविक है। भाषा की दष्टि से भी जैनाचार्यों का योगदान अति महत्वपूर्ण है। जैनाचार्यो की यह विशेषता रही है कि तत्कालीन नोवा को ध्यान में रखकर ही उन्होंने ग्रंथों की रचना की है ताकि उनके द्वारा रचित ग्रन्थं लोकोपयोगी हो सके और जनसामान्य भी उससे लाभ उठा सके । वर्तमान में जिन ग्रन्थों की जानकारी प्राप्त हुई है उसके अनुसार चार भाषाओं में जैनाचायों ने आयुर्वेद के ग्रन्थों प्रणयन किया है। यथा-प्राकृत, संस्कृत, कन्नड़ और हिन्दी। इनमें से कन्नड़ भाषा में रचित ग्रन्थों में कन्नड़ लिपि का प्रयोग किया मया है और शेष तीन भाषाओं प्राकृत, संस्कृत और हिन्दी के ग्रन्थों में देवनागरी लिपि व्यवहृत है। संभव है बंगाली, पंजाबी, तमिल, संस्कृत. तेलग, मलयालम आदि भाषाओं में भी ग्रन्थ रचना हुई हो, किन्तु अभी उसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। एक यह जानकारी आवश्यक प्राप्त हुई है कि मेघमुनि रचित 'मेघ विनोद' की एक मूल प्रति मोतीलाल बनारसी दास प्रकाशन संस्था के मालिक मदरलाल जी जैन के पास गुरमुखी लिपि (पंजाबी भाषा) में थी, जिनका उन्होंने हिन्दी में अनुवाद कराकर अपने यहां से प्रकाशन कराया है। श्री अगरचन्द नाहटा ने जैनाचार्यों द्वारा लिखित आयुर्वेद के ग्रन्थों की एक विशाल तालिका तैयार की है जो जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग-४, किरण-२ में प्रकाशित हुई है। उस तालिका के द्वारा अनेक कृतियों की जानकारी प्राप्त होती है। तालिका निम्न प्रन्यनाम १. योग चिन्तामणि रचनाकाल सं० १६६२ श्वेताम्बर जैन वैद्यक ग्रन्थ प्रन्थकार भाषा मूल हर्षकीर्ति सूरि संस्कृत भाषा टीका नरसिंह खरतर हर्ष कीतिसूरि संस्कृत जयरत्न संस्कृत हस्तिरुचि संस्कृत लक्ष्मीचन्द्र हिन्दी सं० १६६२ २. वैद्यक सारोद्धार ३. ज्वरपराजय ४. वैद्यवल्लभ ५. सुबोधिनी वैद्यक जैन प्राच्य विद्याएं १७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210252
Book TitleAyurved ke Vishay me Jain Drushtikon aur Janacharyo ka Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumar Jain
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & Medicine
File Size2 MB
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