________________ द्रव्य की जरुरत है उसका केवल करीब दस प्रतिशत द्रव्य ही विश्व में खोजा गया है। तो क्या विश्व का विस्तार निरंतर जारी रहेगा? कुछ वैज्ञानिक तो अभी यही धारणा रखे हैं। पर कुछ के अनुसार द्रव्य की लीलाएँ बड़ी विचित्र हैं। विश्व का काफी द्रव्य अभी हम सबके लिए अदृश्य है। और इसी परिकल्पना पर द्रव्य की खोज में 'ब्लैक होल' थ्योरी प्रकाश में आ रही है। यदि विश्व में सचमुच और द्रव्य हैं जिससे गुरुत्वाकर्षण बल इसका विस्तार रोक देगा तो फिर यह आदिम महाविस्फोट की घटना होगी। और यदि ऐसा नहीं है तो सारी मंदाकिनियाँ विश्व से पलायन के रास्ते पर रहेंगी। इस क्रम में विश्व का तापमान गिरेगा और धीरे-धीरे उसकी मृत्यु होगी। कोई यह प्रश्न पूछ सकता है कि भविष्य में मानव-समाज की क्या स्थिति होगी? विश्व चाहे जैसा भी हो बंद या खुला, आगे के सालों में मनुष्य अपना अस्तित्व कायम रख सकता है पर बहुत दूर भविष्य के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। अभी तो यही चिंता है कि मानव कहीं अपने हाथों ही अपना अस्तित्व न मिटा दे। श्री जैन विद्यालय, कोलकाता अभी करीब पाँच दशक पहले एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि हुई। इसे समझने के लिए द्रव्य तथा ऊर्जा की स्थितियों पर विचार करना होगा। प्रारम्भिक अवस्था में उस अतिघनीभूत द्रव्य का तापमान बहुत ऊँचा रहा होगा। यह इसलिए होगा कि इस समय द्रव्य के साथ- साथ प्रचूर मात्रा में विद्युत चुंबकीय विकिरण भी मौजूद रहा होगा। इतना ही नहीं एक समय में द्रव्य और विकिरण का संतुलन भी होगा। परंतु कालान्तर में, विश्व के विस्तार के साथ, उस आदिम विकिरण का भी फैलाव होता गया और इस तरह उसका तापमान निरंतर घटता गया। बिग बैंग के बाद की 15 से 20 अरब सालों की लंबी अवधि में उस विकिरण का तापमान इतना घट गया कि अब उसके अवशेष 'माइक्रोवेव' के रूप में पहचाने जा सकते हैं। __अवशिष्ट माइक्रोवेव की परिकल्पना 'जार्ज गेमोव' ने काफी पहले ही प्रस्तुत कर दी थी। समूचे विश्व में व्याप्त ऐसे माइक्रोवेव की खोज 1964 में खगोल विद 'आरनो पेजियाज' और 'राबर्ड विल्सन' ने की। इसका तापमान करीब 3 डिग्री केल्विन (-27008) है। इन सबूतों के कारण विश्वोत्पत्ति संबंधी 'बिग बैंग' मॉडल को ज्यादा उपयुक्त माना गया। इसका यह भी मतलब नहीं है कि हमें सारे सवालों के हल प्राप्त हो गये हैं। वस्तुत: इस सिद्धान्त की कई बातें अभी स्पष्ट नहीं हो पायी हैं। हम यह नहीं जानते कि यह महाविस्फोट क्यों हुआ। उस समय या उसके पहले दिक, काल, द्रव्य या ऊर्जा की क्या स्थिति रही है। इन सब प्रश्नों पर विचार करने पर वैज्ञानिकों ने पहले यह पता लगाना चाहा कि उस आदिम महाविस्फोट की घटना के 15-20 अरब वर्षों बाद विश्व की स्थिति कैसे बदली और किस तरह इस रूप में आयी। वैज्ञानिकों के अनुसार यदि आज की स्थिति के बारे में सोचें तो द्रव्य तथा ऊर्जा के संतुलन के बारे में किसी निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं और उस समय उसमें असंतुलन क्यों हुआ इसके बारे में कोई धारणा बना सकते हैं। सारांश यह कि विश्वोत्पत्ति के आरम्भिक क्षणों की परिस्थितियों के बारे में यकीन के साथ कुछ बताया नहीं जा सकता। यह सही है कि महाविस्फोट के बाद ही दिक् और काल अस्तित्व में आए हैं, मगर 'शून्य काल' में या उसके पहले दिक्काल और द्रव्य ऊर्जा की क्या स्थिति रही है, इसके बारे में फिलहाल केवल परिकल्पनाएँ ही प्रस्तुत की जा सकती हैं। अब जरा आगे की कल्पना की जाय। प्रश्न यह है कि विश्व खुला है या बंद? इसे जानने का क्या उपाय है? विश्व में मौजूद समस्त द्रव्य की मात्रा और घनत्व की जानकारी यदि हमें मिल जाय तो इसके बारे में कहा जा सकता है। यदि द्रव्य का संचय एक निश्चित मात्रा से अधिक है तो गुरुत्वाकर्षण शक्ति देर-सबेर विश्व के विस्तार को पूर्णत: रोक देगी और उसके बाद मंदाकिनियाँ एक दूसरे के निकट पहुँचने लगेंगी। पर यह पता चला है कि गुरुत्वाकर्षण द्वारा रोक लगाने के लिए जितने 0 अष्टदशी / 1150 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org