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आ. हरिभद्र के ग्रन्थों में दृष्टान्त व न्याय / १३१
को इष्ट उचित बताते हुए वर्ण्य विषय का समर्थन करते हैं, जब कि ज्ञात/दृष्टान्त उदाहरण सामान्य घटनाएँ होती हैं जिनके साम्य पर वर्ण्य विषय या प्रतिपाद्य सिद्धान्त की स्पष्टता, पुष्टि या समर्थन करना अभीष्ट होता है।
दृष्टान्तों की महत्ता/उपयोगिता
___ दृष्टान्तों की संख्या अनगिनत है। प्रत्येक दृष्टान्त में यह क्षमता होती है कि वह श्रोता की बुद्धि को अनुकूल या वशीभूत कर ले । ६ इसी दृष्टि से दृष्टान्त को एक दीपक की उपमा दी गई है जो विषय-वस्तु को पूर्णतः स्पष्ट कर देता है । ३६ जैन प्राचार्यों ने विषयवस्तु को अधिक रोचक व सहजगम्य बनाने हेतु यत्र-तत्र विविध दृष्टान्तों का प्रचुर प्रयोग किया है। नन्दी सूत्र में श्री संघ की रथ, कमल, चन्द्र, सूर्य, समुद्र, मेरु आदि दृष्टान्तों से विशेषताओं को उजागर किया गया है । ३८ इसी प्रकार, नन्दीसूत्र 38 में मल्लक-दृष्टान्त, प्रतिबोधक दृष्टान्त प्रादि का प्रयोग किया गया है। नियुक्ति में सर्प, पर्वत, अग्नि आदि के दृष्टान्तों से मुनि की विशेषता का निरूपण हया है जो अधिक प्रभावकारी बन पड़ा है। पादिपुराणकार प्राचार्य जिनसेन (ई. ८००-८४८) ने श्रोता के विविध प्रकारों को समझाने हेतु मिट्टी, चलनी आदि विविध उपमानों को प्रयुक्त किया है जिससे वर्णन में सहज रोचकता पैदा हो गई है।४०
प्रस्तुत निबन्ध में प्रा. हरिभद्र के ग्रन्थों में प्रयुक्त प्रमुख न्यायों तथा दृष्टान्तों को प्रस्तुत करते हुए, सम्बद्ध वर्ण्य-विषय में उनके उपयोग पर प्रकाश डाला जा रहा है:
१. चारिसंजीविनीचार न्याय
यह न्याय योगबिन्दु ( पद्य सं. ११९) में निर्दिष्ट है।४१ यह न्याय निम्नलिखित घटना/कथा को इंगित करता है-एक महिला की इच्छा थी कि उसका पति उसके वश में रहे । उसे एक तान्त्रिक ने दो प्रकार की जड़ी-बूटी दी। पहली जड़ी-बूटी खाने वाला मनुष्य से बैल बन जाता था, और दूसरी जड़ी-बूटी खिलाने से बैल मनुष्य हो जाता था। वह महिला अपने पति को पहली जड़ी खिला कर बैल बना देती, और जब चाहती तब दूसरी जड़ी खिला कर पुनः मनुष्य बना देती थी। एक दिन वह दूसरी जड़ी-बूटी की पहचान भूल गई, अतः उसके लिए यह कठिन हो गया कि जंगल में उस जड़ी-बूटी को कैसे पहचान कर निकाले । उसके लिए अपने पति को पुन: मनुष्य बनाना कठिन हो गया। ऐसी स्थिति में उस स्त्री को किसी समझदार ने यह सलाह दी कि अपने बैल रूपी पति को उस जंगल में चरने के लिए खुला छोड़ दे, कभी न कभी वह जड़ी उसके मुंह में पड़ जाएगी तो उसका पति बैल से मनुष्य बन जाएगा। उस स्त्री ने वैसा ही किया और उसका पति एक दिन बैल से मनुष्य बन गया।
__ उक्त कथा या घटना-विशेष के आधार पर यह सिद्धान्त स्थिर किया गया है कि जहाँ विविध वस्तुओं में अभीष्ट वस्तु को पहचानना कठिन हो, वहाँ उन सभी वस्तुओं को प्रयोग में लाते रहना चाहिए, कभी न कभी उन वस्तुओं में ही अभीष्ट वस्तू हाथ लगेगी और अपना चमत्कार स्वयं प्रकट करेगी। प्रा. हरिभद्र ने उक्त न्याय के माध्यम से यह समझाने का प्रयास किया है कि कौन वन्दनीय है और कौन अवन्द्य-इसका निर्णय कर पाना कठिन हो,
धम्मो दीयो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है
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