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________________ आगमिक गच्छप्राचीन त्रिस्तुतिक गच्छ का संक्षिप्त इतिहास २५७ इसी प्रकार आगमिकगच्छीय जयतिलकसूरि,' मलयचन्द्रसूरि,२ जिनप्रभसूरि, सिंहदत्तसूरि आदि की कृतियाँ तो उपलब्ध होती हैं, परन्तु उनके गुरु-परम्परा के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिलती है। अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा भी इस गच्छ के अनेक मुनिजनों के नाम तो ज्ञात होते हैं, परन्तु उनकी गुरु-परम्परा के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिलती। यह बात प्रतिमालेखों की प्रस्तुत तालिका से भी स्पष्ट होती है १. कर्मग्रन्थ-रचनाकाल वि० सं० १४५० मलयसुन्दरीकथा-रचनाकाल अज्ञात [ यह कृति प्रकाशित हो चुकी है ] सुलसाचरित-[ प्राचीनतम प्रति वि० सं० १४५३ ] कथाकोश [वि० सं० १५वीं शती का मध्य ] २. स्थूलभद्रकथानक-यह कृति प्रकाशित हो चुकी है ३. मल्लिनाथचरित-रचनाकाल १३वीं शती के आसपास ४. स्थूलभद्रास-रचनाकाल १६वीं शती के प्रथम चरण के आसपास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210167
Book TitleAgamik Gaccha Prachin Trustutik Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherZ_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf
Publication Year1991
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Sangh
File Size2 MB
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