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________________ २५६ डॉ० शिव प्रसाद ___ साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर आगमिक गच्छ के जयानन्दसूरि, देवरत्नरि, शीलरत्नसरि, विवेकरत्नसरि, संयमरत्नसूरि, कुलवर्धनसूरि, विनयमेरुसरि, जयरत्नगणि, देवरत्नगणि, वरसिंहसूरि, विनयरत्नसूरि आदि कई मुनिजनों के नाम ज्ञात होते हैं। इन मुनिजनों के परस्पर सम्बन्ध भी उक्त साक्ष्यों के आधार पर निश्चित हो जाते हैं और इनकी जो गुर्वावली बनती है, वह इस प्रकार है जयानन्दसूरि [वि० सं० १४७२-१४९४] देवरत्नसरि [वि० सं० १५०५-१५३३]] प्रतिमालेख शीलसिंहसूरि [कोष्ठकचिन्तामणि स्वोपज्ञटीका] विवेकरत्नसूरि [वि.सं. १५४४-७९] [श्रीचन्द्रचरित प्रतिमा लेख वि० सं० १३९४१ वि० सं० १५७१ में । यतिजीतकल्प रचनाकार संयमरत्नसूरि [वि० सं० १५८०-१६१६] प्रतिमालेख जयरत्नगणि कुलवर्धनसूरि [वि० सं १६४३-८३] प्रतिमालेख विनयमेरु [वि० सं० १५९९] प्रतिमालेख देवरत्नगणि वरसिंहसरि [आवश्यकबालावबोधवृत्ति] वि० सं० १६८१ विनयरत्नसूरि [वि० सं० १६७३ माघसुदी १३ भगवतीसूत्र की प्रतिलिपि आगमिकगच्छ के मुनिजनों की उक्त तालिका का आगमिकगच्छ की पूर्वोक्त दोनों शाखाओं (धंधकीया शाखा और विडालंबीया शाखा) में से किसी के साथ भी समन्वय स्थापित नहीं हो पाता, ऐसी स्थिति में यह माना जा सकता है कि आगमिकगच्छ में उक्त शाखाओं के अतिरिक्त भी कुछ मुनिजनों की स्वतंत्र परम्परा विद्यमान थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.210167
Book TitleAgamik Gaccha Prachin Trustutik Gaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherZ_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf
Publication Year1991
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationArticle & Jain Sangh
File Size2 MB
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