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शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षाएं
करते थे। पद्मासन, पर्यंकासन, वीरासन, गोदोहि(१) अनन्तवर्तिता-जीव आदि अनादि है, कासन तथा उत्कटिका इन्हीं आसनों पर ध्यान 6 अनन्त योनियों में भटका है और अभी तक इस
सम्पन्न किया। भगवान् यह बात अच्छी तरह जानते af संसार से इसकी मुक्ति नहीं हो सकी है। यह जीव
थे कि वाक् और स्पंदन का परस्पर गहरा सम्बन्ध चारों गतियों (नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव) में
है। इसीलिए ध्यान से पूर्व मौन रहने का संकल्प
कर लेते थे। कायिक, वाचिक, मानसिक जिस चक्कर लगाता रहा है । ऐसा विचार अनन्तवर्तिता
ध्यान में भी लीन होते, उसमें रहते थे। द्रव्य या
पर्याय में किसी एक पर स्थित हो जाते । उनकी (२) विपरिणामानुप्रेक्षा अधिकांश परिणाम
ध्यान मुद्रा बड़ी प्रभावशाली होती थी। एक स्थान (ई विपरिणाम हैं। पदार्थों की विभिन्न अवस्थाएँ प्रति
पर आचार्य हेमचन्द्र लिखते हैं-भगवान् तुम्हारी पल विपरिणामों में घटित हो रही हैं।
ध्यान मुद्राएँ कमल के समान शिथिलीकृत शरीर (३) अशुभानुप्रेक्षा-जो शुभ नहीं वह अशुभ और नासाग्र पर टिकी हुई स्थिर आँखों में साधना है। जो उत्तम नहीं वह अपवित्र है । अशुद्ध शब्द ही का जो रहस्य है वह सबके लिए अनुकरणीय है। अशुभता का परिचायक या वाचक है ।
पेढाल ग्राम के पलाश नामक चैत्य में एक (४) अपायानुप्रेक्षा-मन-वचन-काया के योग रात्रि की प्रतिमा की साधना की। तीन दिन का से आस्रव के द्वारा ही इन योगों को अशुभ से शुभ उपवास प्रारम्भ में किया । तीसरी रात को कायोकी ओर प्रवृत्त करना अपायानुप्रेक्षा है। त्सर्ग करके खड़े हो गये । दोनों पैर सटे हुए थे और ___ध्यान के विषय में उपर्युक्त विवरण अत्यन्त उनसे सटे हुए हाथ नीचे की ओर झुके हुए थे। संक्षेप में वर्णन किया गया है। ध्यान के सम्बन्ध में स्थिर दृष्टि थी। किसी एक पूद्गल (बिन्दु) पर 119) विस्तृत विवेचन नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य, आगम तथा स्थिर और स्थिर इन्द्रियों को अपने-अपने गोलकों में NET आगमेतर ग्रंथों में प्राप्त होता है, इसके अतिरिक्त स्थापित कर ध्यान में लीन हो गये। विद्वान आचार्यों ने भी ध्यान के सम्बन्ध में बहुत सानुसट्ठिय ग्राम में भद्र प्रतिमा की साधना लिखा है जिससे ध्यान विषयक सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त प्रारम्भ की। उन्होंने कायोत्सर्ग की मुद्रा में पूर्वकिया जा सकता है।
उत्तर-पश्चिम-दक्षिण चारों दिशाओं में चार-चार - ___ भगवान महावीर की साधना-मौन, ध्यान एवं प्रहर तक ध्यान किया। इस प्रतिमा में उन्हें कायोत्सर्ग
अत्यन्त आनन्द की भी प्रतीति हुई थी और इसी
शृंखला में महाभद्र प्रतिमा की साधना की। चारों ___ आत्मसाक्षात्कार के लिए ध्यान ही एकमात्र
दिशाओं, चारों विदिशाओं, ऊर्ध्व और अधः दिशाओं उपयुक्त साधन है। भगवान् ने ध्यान की निधि
में एक-एक दिन-रात तक ध्यान करते रहे। इस साधना के लिए आत्मदर्शन का अवलम्बन लिया।
प्रकार सोलह दिन रात तक निरन्तर ध्यान प्रतिमा भगवान् महावीर ने सालम्बन और निरावलम्बन
की साधना की। दोनों ही प्रकार के ध्यान का प्रयोग किया। वे एक प्रहर तक अनिमेष दृष्टि से ध्यान करते रहे, इससे
ध्यान की परम्परा अक्षुण्ण है । वेदों का प्रसिद्ध
गायत्री मंत्र मन्त्र ध्यान की ओर ही संकेत करता उनका मन एकाग्र हुआ। ध्यान के लिए भगवान् । नितान्त एकान्त स्थान का चयन करते हए खड़े होकर तथा बैठकर दोनों ही स्थितियों में ध्यान श्वेताश्वतरोपनिषद् (१.११) में आत्मा को
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तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन C.
60 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थR) 6850
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