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स्व: मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ
अवधिज्ञान की व्यारव्या इस प्रकार है - इन्द्रियों और मन की सहायता के बिना अमुक मर्यादा पर्यन्त रूपी द्रव्यों-पदार्थों का जिसके द्वारा ज्ञान होता है, उसे अवधिज्ञान कहा
जाता है ।
द्रव्याणि मूर्ति मन्त्येव विषयो यस्य सर्वतः । नैयन्य रहितं ज्ञानं तत्स्या अवधि लक्षणम ।।
अवधिज्ञान की व्याख्या निम्नोक्त प्रकार से दी गई है ।
(१) अवशब्दोधः शब्दार्थ अव अर्धे विस्मृत वस्तु धीयते परिच्छिद्यते ऊने नेत्यवधिः। (२) अवधिमर्यादा रूपष्वेव द्रव्येषु परिचते दकतया प्रवृत्तिरूपा तदुपलक्षितं ज्ञान मायवधिः । (३) अवधानमात्मानोड र्थः साक्षात्कारण व्यापारो अवधिः
ज्ञान के दो प्रकार बतलाये गये है । (१) प्रत्यक्ष ज्ञान और ( २ ) परोक्ष ज्ञान । मन और इन्द्रियों के आलंबन बिना, आत्मा अपने उपयोग से द्रव्यों को पदार्थों को साक्षात देखे और जाने उसे प्रत्यक्ष ज्ञान कहा जाता है। मन और इन्द्रियों की सहायता से जो ज्ञान हो उसे परोक्ष ज्ञान कहा जाता है । अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केबलज्ञान- ये प्रत्यक्ष ज्ञान हैं । मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परोक्ष ज्ञान हैं ।
केवली भगवत छः द्रव्य प्रत्यक्ष रूप में जानते है और देखते है अर्थात केवलज्ञान सब से प्रत्यक्ष ज्ञान है । मनः पर्यवज्ञानी मनोवर्गणा के परमाणुओ को प्रत्यक्ष जानते है और देखते है तथा अवधिज्ञानी पुदगल द्रव्य को प्रत्यक्ष जानते है और देखते हैं । अर्थात मनः पर्यवज्ञान और अवधिज्ञान देश प्रत्यक्ष ज्ञान है । वर्त्तमान समय में टेलीविजन की शोध ने दुनिया में बहुत अधिक क्रान्ति की है । उसी प्रकार कम्प्युटर की शोध ने भी किया है। इस से व्यापार उद्योग में बहुत सा परिवर्त्तन आगये हैं । जीवन शैली पर इसका बड़ा भारी प्रभाव पड़ा है जोकि टेलीविजन और अवधिज्ञान में लाख योजन का अंतर है तो भी अवधिज्ञान को समझने में टेलीविजन का उदाहरण कई अंशो में सहायक हो सकता है। अलबत्ता आध्यात्मिक दृष्टि से टी. वी. के माध्यम की उपयोगिता का किसी भी प्रकार से समर्थन या अनुमोदन नहीं हो सकता ।
मनुष्य की दृष्टि मर्यादित है । अपने ही घर के दूसरे खण्ड में होने वाली घटना को वह नजरोनजर नहीं देख सकता उसीप्रकार हजारो मील दूर बननेवाली घटना को नही देख सकता । किन्तु अब टी. वी . केमेरा की सहायता से मनुष्य अपने खण्ड मे बैठे बैठे घर
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