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इसी प्रकार का अन्य प्रयोग है
वाक्य में भी यही संरचना है
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दुट्टु कलत्तु व भुत्तु
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भरहु चवन्तु
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इस वाक्य के पूर्व कर्म आ चुका है, यहाँ कर्ता का स्थानी 'दुट्टु कलत्तु' है अत: क्रिया ' भुत्तु' भी 'दुट्ट कलत्तु' की अनुवर्तनी है। इस वाक्य की संरचना है
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V
S
O S
दिट्ठी - V---
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अपभ्रंश में वाक्य - संरचना के साँचे
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गंगाणइ
1o. v.
पुण्णेण होइ विहओ
V.
O.
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णिवारिउं ___V----
v.
O.
O.
Ins-G-N-P
Ins
V
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कर्मवाच्य संरचना में O. S. V साँचा भी हो सकता है, जैसे निम्नलिखित वाक्य मेंसायरबुद्धि विहीसणेण परिपुच्छिउ - ( १८ )
—0—— -S
-V
जंत एण —S—
अहि
-S
कर्मवाच्य संरचनाओं में S. O और V के क्रम की यह स्वतन्त्रता योगात्मक भाषाओं में
ही सम्भव है ।
- [ मुनि कनकामर ] ( १९ )
O.
V.
S.
v.
O.
भाववाच्य में क्रिया सदैव एक व० पुल्लिंग में रहती है ।
रज्जें गम्मई णिच्च –V¢- –AT -
राए
-S
V.
- [ मुनि रामसिंह ] ( २० )
इस प्रकार देखा जा सकता है कि कर्मवाच्य की वाक्य संरचना के तीन प्रमुख अवयव हैं -SO. और V । संयोगात्मक भाषाओं में इनके निम्नलिखित क्रम सम्भव हैं
1.
S.
2.
S.
3.
4.
- (१६)
- ( १७ )
गोयहों
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८३
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- ( २१ /
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राष्
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उपाय अगदी सामान आमद
श्री आनन्द
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