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गच्छ के साधुओं की कृपा का फल था। इस समय इस गाथाएं २२० हैं। इसमें २४ तीर्थंकरों के पूर्वभव-संख्या, गच्छ के नेता जिनभद्रसूरि थे, इसलिए उनपर इनका अनुराग द्वीपक्षेत्र, विजय, नगर, नाम और आयु आदि ७० बातों और सद्भाव स्वभावतः ही अधिक था। इन दोनों भाइयों की सूची है। ने अपने-अपने ग्रन्थों में इन आचार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा जिनभद्रसूरि का शिष्य समुदाय बड़ा और प्रभावकी है।
शाली था। इन भ्राताओं ने जिनभद्रसूरि के उपदेश से एक विशाल
__जिनभद्रसूरि को एक पाषाणमय मूर्ति जोधपुर राज्य सिद्धान्तकोश लिखवाया था। यह सिद्धान्तकोश आज
के खेड़गढ़ के पास जो नगर गांव हैं, वहां के मूमिगृह में विद्यमान नहीं। पाटण के भण्डार में भगवतीसूत्र की प्रति
स्थापित है। यह मूर्ति उकेश वंश के कायस्थकुल वाले मंडन के सिद्धान्तकोश की है। इस प्रति के अन्त में मण्डन
किसी श्रावक ने संवत् १५१२ में बनवायी थी। को प्रशस्ति है। जिनभद्रसूरि ने विद्वत्ता के प्रमाण में ग्रन्थों की रचना
जिनभद्रसूरि बहत भाग्यवान और तेजस्वी थे। की है ऐसा प्रतीत नहीं होता। इनका बनाया हुआ मुनि श्री चतुरविजयजी ने जैन सोत्र संदोह भाग २ एक ग्रन्थ मेरे दृष्टिगोचर हुआ है, इसका नाम 'जिनसत्तरी की प्रस्तावना में जिनभद्रसरिजी को अन्य रचनाओं, प्रकरण' है। यह प्राकृत में गाथाबंध है। इसको कुल पादुकाओं, शिष्यों आदि का अच्छा विवरण दिया है।
आचार्य प्रवर श्रीजिनभद्रमूरि जी के हाथ की लिखी हुई सुन्दरों अक्षरों वाली एक प्रति कलकत्ता के श्री पूरणचंह नाहर के संग्रह में हमारे अवलोकन में आई जो सं० १५११ आषाढ़ बदि १४ बुधवार की लिखी हुई है । योग विधि पद स्थापना विधि की यह प्रति वा० साधुतिलक गण को प्रसादी कृत है। इसके अन्तिम पत्र की प्रति कृति नीचे दी जा रही है। जिससे पाठकों को सूरिजी की अक्षर- हेतु के दर्शन हो जायेंगे।
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